जैसे-जैसे नए शोधों का आगाज हो रहा है, डायबिटीज के ईलाज की दुरुहता बढ़ती जा रही है। 5 अक्टूबर 2019 को बर्लिन (जरमनी) में इ.ए.एस.डी. (यूरोपियन सोसाईटी फॉर स्टडी ऑफ़ डायबिटीज) एवं ए.डी.ए. (अमेरीकन डॉयबिटीज एसोसिएशन) का सम्मिलित गाईडलाईन डायबिटीज के ईलाज के लिए जारी हुआ. वैसे सभी देशों ने ऐसे ही गाईड लाईन बना रखें हैं मगर वस्तुतः ई.ए.एस.डी. एवं ए.डी.ए. का गाईड लाईन ही प्रमाणिक माना जाता है। भारत में तो इसी का डंका बजता है। ऐसे गाईड लाईन्स चिकित्सकों को दिशा- निर्देश देते हैं कि किस तरह डायबिटीज के मरीजों का ईलाज किया जाए।

एक ओर जहाँ यह नया गाईड लाईन आधुनिकतम शोधो के निचोड़ से ओतप्रोत हैं किन्तु इसने ईलाज को बिजनेस क्लास एवं इकोनॉमी क्लास में बॉट दिया है। इसका कारण यह है कि सन् 2007 में न्यू इंग्लैण्ड जरनॉल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध ने डायबिटीज के ईलाज की दिशा ही बदल दी. उस शोध को डायबिटीज के ईलाज में मील का पत्थर या टर्रनिंग प्वाइन्ट कहा जाता है।

डायबिटीज की अत्यन्त उपयोगी दवा रोजीग्लीटाज़ोन को डॉ. निसेन के मेटा-एनालिसिस ने दिखाया कि यह हार्ट ऐटैक का रिस्क बढ़ा देती है। इस शोध ने रातों रात पूरी दुनिया में अरबों डॉलर के इसके मारकेट को तहस-नहस कर दिया। अमेरिकन एफ.डी.ए. (फूड एवं ड्रग एडमिनिशट्रैशन) ने तब यह दिशा निर्देश जारी किये कि डायबिटीज की कोई भी दवा बिना कार्डिओ वासकुलर सुरक्षा की प्रमाणिकता सिद्ध किए नही बेची जाएगी।

यही समय था जब दशकों पूराने मेटफारमिन एवं सल्फोनिल यूरिया ग्रुप (ग्लीबेनक्लामाईड, ग्लीमीपेराआईड) के बाद ग्लिपटीन (सिटाग्लीपटीन, विलडाग्लीपरीन) , एस. जी ,एल .टी .इन्हिबिटर (एम्पाग्लिफोजीन, कानागलीफोजीन ,डापागलीफोजीन) एवं जी.एल.पी. वन एगोनिस्ट (लीराग्लुटाईड) का बाजार में पदार्पण हो रहा था (2007 से 2010)। फिर शुरू हुआ अरबों डॉलर शोधों में लगाकर दवाइयों की हार्ट एवं किडनी की सुरक्षा को लेकर ट्रायल का दौर.

सन् 2015 में एम्पाग्लिफोजीन (एस.जी.एल.टी-2 इन्हीबीटर) पर किया गया ऐतिहासिक एमपारेग ट्रायल प्रकाशित हुआ और डायबिटीज की दुनिया यह जानकर हक्की बक्की रह गयी कि यह दवा न केवल हृदय के लिए सुरक्षित थी बल्कि कार्डिओ वासकुलर डेथ को 38 प्रतिशत तक कम करने में सक्षम थी। इसी ग्रुप में कानागलीफोजीन पर हुआ कैनवास ट्रायल (2017) एवं डापागलीफोजीन) पर हुआ ट्रायल डिक्लेयर टीमी (2018) ने लगभग ऐसे ही रिजल्ट दिखाए.इन दवाइयों ने किडनी फेल होने की संभावना भी घटती दिखाई। 2018 में मेदान्ता दिल्ली के डॉ अमबरीश ग्रुप ने शोध इन दवाइयों द्वारा लीबर में चर्बी घटने की क्षमता का खुलासा किया और यह शोध पूरी दुनिया में हेडलाईन बना। इन दवाइयों के प्रभाव से करीब साढ़े तीन किलो तक वजन भी कम जाता है जो डायबिटीज के लिए वरदान है।

ठीक इसी तरह के मिलते – जुलते परिणाम इन्जेक्शन द्वारा दी जाने वाली दवा जी.एल.पी. (वन) एगोनिस्ट (लीराग्लुटाईड, डुलाग्लुटाईड, सीमाग्लुटाईड) द्वारा भी शोधों द्वारा सामने आया । वजन की कमी कराने एवं सुरक्षात्मक दृष्टि से इनको सर्वोत्तम पाया गया। साइन्स जब यह सब दिखा रहा था और जब यह फैक्ट पता है कि डायबिटीज के मरीजों में साठ प्रतिशत मौत का कारण कार्डिओ वासकुलर डिजीज है तो फिर यह स्पष्ट है कि मरीजों को वही दवा दी जानी चाहिए जो शुरुवाती दौर से उनके हृदय एवं किडनी की रक्षा करे। यही वह कारण है कि डायबिटीज के ईलाज में जी.एल.पी. (वन) एगोनिस्ट (इन्जेक्शन द्वारा) एवं एस. जी ,एल .टी .इन्हिबिटर के टेबलेट को इ. ए .एस.डी. एवं ए.डी.ए. के नवीनतम गाईडलाईन ने मेटफारमिन दवा के बाद कम से कम हृदय की बीमारी एवं ज्यादा वजन वाले मरीजों में तुरत शुरू करने की सलाह दी है।

अब विडम्बना यह है कि एवं एस. जी ,एल .टी .इन्हिबिटर के टेबलेट की एक गोली 45 से 50 रूपये में आती है और जी.एल.पी. (वन) एगोनिस्ट की सुई का खर्चा प्रतिमाह चार-पॉच हजार रूपये आता है। स्पष्ट है कि चाहे जितना भी आकर्षण हो इनका ,साधारण जनों के लिए इसे वहन करना सम्भव नहीं है। नए गाईड लाईन ने साफ दिखाया है कि यदि मामला पैसा नहीं होने का हो तो मेटाफारमिन के बाद ग्लीमीपेराइड एवं पायोग्लीटाजोन ही शुरू की जाए। यह है इकानॉमी क्लास का कान्सेप्ट। अजीब बात है कि कम पैसा वाले डायबिटीज के मरीजों में भी 60 प्रतिशत डेथ हृदय की बीमारी से ही होगी मगर उनके लिए अलग गाईड लाईन ईजाद हुए हैं।

ग्लीमीपेराइड साफ सुथरी प्रभावकारी एवं सस्ती दवा है मगर यह वजन कम नही करती और शरीर में सुगर घटने का खतरा बना रहा है और इसके साथ कोई कार्डिओ वासकुलर ट्रायल नहीं हुआ है। पायोग्लीटाजोन बहुत अच्छी दवा है मगर वजन बढ़ा सकती है और हृदय के फेलयर में नहीं दी जा सकती, हड्डी कमजोर होने का खतरा और आँख में मेकुलर एडिमा (सूजन ) कर सकती है। बहरहाल इसके द्वारा मुत्र की थैली में कैन्सर होने का जो तमाशा था, वह थम गया है।

इन सबके बीच ग्लीपटीन ग्रुप की दवाइयों (सीटाग्लिप्टीन एवं लीनाग्लीपटीन खासकर) पर हुए कार्डिओ वासकुलर सेफ्टी ट्रायल ने यह दिखाया है कि यह सुरक्षित हैं मगर यह हृदय की बीमारी को कम करने की क्षमता नहीं रखता। ग्लीपटीन ग्रुप भी 40 से 45 रुपये एक गोली की कीमत होने से मंहगा है। यह वजन बढाती नहीं और न ही कम करती है। इस ग्रुप में टेनालीग्लीपटीन केवल 7 से 10 रुपये में आती है और यह दवा आज भारत में आंधी की तरह बिक रही है। इस दवा के साथ कोई कारडिएक सेफ्टी ट्रायल नहीं हुआा है और यह यूरोप एवं अमेरीका में ईस्तेमाल नहीं की जाती। मजे की बात है कि यह जापान में ईजाद की गयी दवा है एवं स्वयं जापान में इसका ईस्तेमाल नहीं के बराबर होता है।

दवाइयों के इस घमासान के बीच दशकों पुरानी एवं सबसे सस्ती दवा मेटफारमीन नम्बर वन के पोजीशन पर बनी हुई है। गुणों से भरी है , थोड़ा वजन भी घटाती है, दृदय के लिए सुरक्षित है, और आपकी आयु भी बढ़ाती है। यह सरताज दवा है और इसके बिना डायबिटीज की दुनिया वीरान मानी जाती है।

अगले दशक में डायबिटीज की दुनिया पूर्णतः बदल जायगी और शायद इस तरह के गाईडलाईन्स की जरूरत ही नहीं होगी। यह प्रिसिजन मेडिसिन के आने के बाद संभव होगा जब क्लिनीक में दस मिनट में मरीज की जेनेटिक मैपिंग की जाएगी और क्या दवा मरीज के लिए हितकारी है यह कम्प्यूटर बताएगा।

यह यक्ष प्रश्न है कि इतनी वैज्ञानिक उड़ान के बाद भी डायबिटीज के महा भयानक प्रवाह को रोकना सम्भव नहीं दिख रहा है। महामारी के तौर पर हमारे युवा इसका शिकार हो रहा हैं। यहां सारा साइन्स फेल हो गया है।

इसका सबसे बड़ा कारण है कि सही भोजन एवं पर्याप्त शारीरिक व्यायाम की महिमा से हमारा समाज कोसों दूर हो गया है। दुनिया में इस समय एरोबिक , रेसिसटेन्स, स्ट्रेचिंग एवं योग आदि व्यायामों द्वारा डायबिटीज को रिवर्रस गियर में लाने के शोध चल रहे हैं और यह दिन ब दिन स्पष्ट होता जा रहा है कि एक घण्टा का व्यायाम डायबिटीज को रोकने का सबसे बड़ा हथियार है। सितम्बर 2018 में ब्रिटिश मेडिकल जरनल में छपे एक शोध में कुछ ऐसे रोगियों का जिक्र किया जो थेराप्यूटिक फास्टिंग के तहत हप्ते में तीन दिन खाना बन्द कर देते थे। ऐसे मरीजों डायबिटीज की बीमारी ही लगभग खत्म होने लगी। कुछ शोधों ने यह दिखाया कि यदि 15 किलो वजन घटा दिया जाए तो डायबिटीज की अवस्था ही खत्म हो जाती है।

जब डायबिटीज की चिकित्सा धीरे-धीरे पूर्रणतः डिजिटल होने के कगार पर है और आपका मोबाईल ही आपके सुगर और दवा को नियन्त्रित करने में समर्थ होगा तब भी जो चमत्कार सही भोजन एवं एक घण्टा पैदल चलने का है, उसे कोई मात नहीं दे सकता। यह वह माया है जो बिजनेस एवं इकोनामी क्लास का फर्क नहीं करती और आपकी निष्क्रियता और सक्रियता ही सही मंजिल तय करेगी।