चीनी कम से आपकी जिन्दगी वीरान नहीं होगी।

डायबिटीज के मरीजों के लिए आने वाले दिनों में कई नयी दवाइयों एवं तकनीकों का तोहफा मिलने वाला है। इन चीजों का लेखा-जोखा हर साल अमेरिकन डायबीटीज एशोशिऐशन के सम्मेलन में होता है। यह संस्था पूरी दुनियां में सबसे ज्यादा प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जाती है। भारत में भी जो गाइडलाइन हम उपयोग में ला रहे हैं वह एडीए यानि अमेरिकन डायबिटीज एशोसियेशन द्वारा ही निर्धारित है। हर साल नये शोधों के बाद नये मानक बनाये जाते हैं।

मेडीसिन की सबसे अहम प्राथमिकता।

पहले फास्टिंग ब्लड सुगर 140 मिग्रा के बाद असमान्य समझा जाता था मगर अब 126 मिग्रा के बाद ही डायबिटीज रेन्ज में माना जा रहा है। इस तरह की कई मान्यताओं में आमूल परिवर्तन साइन्स में होता रहता है और इसीलिए यह सोचना कि आज जो चिकित्सा विधि है वही परम है, बिल्कुल भ्रम में रहने जैसी स्थिति है। जो चिकित्सा विधि आज सबसे वैग्यानिक मानी जा रही है, हो सकता है अगले दशक में वह भारी बलन्डर समझी जाए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ब्लडप्रेशर को लेकर हमारी मान्यता । साठ के दशक तक ज्यादा ब्लडप्रेशर अच्छा माना जाता था, यह सोचकर एक समय अमेरिका के तात्कालीन राष्ट्रपति रुजवेल्ट का ऊपरी ब्लड प्रैशर 230 का कोई ईलाज नहीं किया गया। आज मगर किसी भी उम्र में रक्तचाप 130-80 ज्यादा नहीं हो, यह मेडीसिन की सबसे अहम प्राथमिकता है।

तकनीक का विकास।

डायबिटीज के मरीजों के लिए आज उच्च कोटि की दवाईयाँ एवं इन्सुलीन की सुई के आरामदायक तरीके सर्वत्र उपलब्ध हो गए हैं। मगर फिर भी सुई लेना कितना दुरुह है, यह मरीज ही समझ सकते हैं। पिछले कई सालों से इन्सुलिन के इनहेलर की चरचा हो रही है। इन्सुलिन के इन्हेलर के प्रभावकारी होने की सूचना डायबिटीज के मरीजों का पूरा आउटलुक चेन्ज कर सकती है। एक्जेबुरा एवं एरेक्स आइडीएमएस नाम से बाजार में इन्सुलिन के जो इन्हेलर आये हैं उनकी गुणवत्ता एवं प्रभाव उसी तरह पाये गए हैं जैसा कि चमड़े के नीचे इन्सुलिन की सुई का होता है।

दमा के मरीजों के लिए जिस तरह अस्थॉलीन एरोकोटॆ, सिरोफ्लो, आदि इन्हेलर अत्यंत उपयोगी हैं। उसी तरह खाने के बाद इन्सुलीन का इन्हेलर लेने से इन्सुलीन फेफड़े में चला जाता है एवं वहां से अवशोषित होकर रक्त में जाता है और सुगर को बढ़ने नहीं देता है। शुरुआती दौर में ही मँहगा होने के कारण फाइजर कम्पनी को अमेरीकी बाजार से इसे हटाना पङा । शीघ्र कुछ नयी दवाईयां भी बाजार में उपलब्ध होगीं। ग्लुलागोन लाईक पेप्टाइड (जीएलपी) एक ग्रुप की कुछ दवाईयां आशा का केन्द्र बनी हुई हैं। विलडागलीपटीन एक ऐसा रसायन है जो जीएलपी वन को इनएक्टीवेट होने से बचाता है और सुगर को अच्छी तरह नियन्त्रित करता है।

रिमोनावेन्ट ऐसी दवा है जो केवल ब्लड सुगर ही नियन्त्रित नहीं करता बल्कि वजन कम करने, कमर की मोटाई कम करने एवं क्लोरेस्टरॉल को कम करने में भी प्रभावी पायी गया है। जीएलपी-वन एनॉलाग लिराग्लुटाइड पैनक्रियाज के बीटा सेल्स की संख्या शरीर में बढ़ा पायें तो स्वतः इन्सुलिन की मात्रा शरीर में नियन्त्रित हो जाएगी। एक नई मान्यता के अनुसार एडीए का कहना है कि डायबिटीज के मरीज का कोलेस्टरॉल यदि सामान्य भी रहे तब भी स्टेटीन ग्रुप की दवा (जोस्टा, एटोखा, राजेल आदि) जरुरी है ताकि वे भविष्य में स्ट्रोक एवं हृदयघात से बचे रहें। पीपीएआर अल्फा-गामा एगोनिस्ट मुरागलीटाजार दवा भी सुगर नियन्त्रण के लिए प्रभावकारी पायी गयी है। चमड़े के उपर इन्सुलिन का पैच साट दिया जाए तो इसे ट्रान्सडरमल इन्सुलिन डिलीवरी कहते हैं। इस तकनीक का भी विकास किया जा रहा है।

इसी से लाईफ स्वीट होगी।

एमबी डायबिटीज सेन्टर, चेन्नई ने अमेरिका के फेमस डीपीपी अध्ययन की तरह भारतीयों में भी निरन्तर पैदल (30 मिनट रोज) चलने एवं सही भोजन द्वारा डायबिटीज को रोकने में सफलता पायी गई है। अगले दशक में डायबिटीज का जिस तरह विस्फोट भारत में होने वाला है उसके हाशिए में आज हम स्वामी रामदेव जी के प्रयासों की भी अनदेखी नहीं कर सकते। योग, प्राणायाम, सही भोजन एवं शारीरिक श्रम ही भविष्य की नई आशा है। यह मान्यता हजारों साल से स्वयंसिद्ध है। इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। इसी से लाईफ स्वीट होगी।