1. फ्लैक्स सीड सुनने में स्मार्ट लगता है और तीसी भोदूं – फायदेमन्द है डायबिटीज में
दनिया के कई देशों के लोग पुडिंग से लेकर अन्य खाद्य आइटमों में फलैक्स सीड का खुब इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें अत्यंत गुणकारी एन-3 फैट (वसा) की अधिकायत है। एन-3 फैट का लगातार सेवन डायबिटीज, हृदयघात एवं स्ट्रोक से भी बचाव करने में समर्थ है। मेरे लिए फ्लैक्स सीड तिलिस्म की चीज हो गयी। वस्तुतः उस समय फ्लैक्स सीड का हिंदी मुझे मालूम नहीं था। शब्दकोश में जब इसका अर्थ देखा तो पता चला कि फ्लैक्स सीड तीसी को कहते हैं। तीसी के छोटे- छोटे काले दानों की इतनी महत्ता हो सकती है, एकबारगी तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। बचपन में घर में तीसी का तेल दिवाली की समय दिया जलाने में प्रयुक्त होता था। एक अजीब सी गंध और छुने में चपचपाहट को लेकर तीसी से मुझे नफरत सी थी। मगर देहातों में तीसी के दोनों को भूनकर कई लोगों को मैन खाते देखा था। मेरी मां जब भी गांव जाती तीसी जरूर लाती थी और रोज कई तरह से खाने में इसका इस्तेमाल करत थी। मुझे लगता था कि एक तरह की यह बेवकूफी है क्योंकि तीसी न तो देखने में अच्छा लगता है न खाने में।
हमारे बुजुर्ग सदियों से इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। इसका विजडम तो मेरे सामने तब खुला जब यह मालूम हुआ कि यही फ्लैक्स सीड है। फ्लैक्स सीड सुनने में कितना स्मार्ट लगता है और तीसी भोदूं। तीसी एक अतीत की दम तोड़ती कहानी प्रतीत होती है। और फ्लैक्स सीड कोई लेटेस्ट एलबम। मगर शायद यह हमारी मानसिकता का दोष है। तीसी झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाको में भी उपजाया जाता है। इसके तेल को लीनसीड आयल कहते हैं, इसका प्रयोग खाद्य सामग्री को पकाने में नही किया जाता।
स्वास्थ्य के लिए तीसी बीज का पूरा प्रयोग अत्यंत गुणकारी है। इसमें आमेगा 3 फैटी एसिड है जिसे विज्ञान में आज फैट आफ ग्रेटेस्ट इंटरेस्ट कहा जाता है। इससे खतरनाक कोलेस्ट्रारॉल एलडीएल घटता है और इस तरह शरीर में थक्के बनने की संभावना कम रहती है। तीसी में हाई क्वालिटी का प्रोटीन भी है। इसमें फाइवर भी है जो आंतों को गति देता है और कब्ज को दूर करता है। इसमें विटामिन बी -1, बी-2, सी, ई एवं कैरोटीन के अलावा आइरन, जिंक, पोटाशियम, मैगनिशियम, फॉसफोरस एवं कैलशियम भी मिलता है। ये सभी गुणकारी पोषक तत्व है। इसमें एक लिगनिन नामक तत्व भी होता है जो कैंसर जैसी बीमारी से रक्षा करने में समर्थ है। तीसी में एंटी ट्यूमर, एंटी बैक्टीरीयल एवं एंटी फंगल गुण भी है। तीसी का लिगानीन शरीर में उत्पन्न अतिरिक्त इस्टेराजोन को बाहर निकाल कर स्तन कैंसर से महिलाओं को बचाता हैं।
तीसी का इस्तेमाल करन के लिए अच्छा होगा कि इसका चूर्ण बना ले और सलाद के ऊपर छिड़क कर खाएं, पूरा चबा कर भी खा सकते हैं। इसको आटा में मिलाकर भी खा सकते हैं। मेरी मानिए तो बिना दो चम्मच तीसी खाए घर से निकलिए ही मत। यह आपके हृदय को स्वस्थ्य रखेगा। आंतों को गति देगा। शरीर की इम्युनिटी को बढ़ायेगा। मस्तिष्क को शांति देगा। शरीर में रौनक लाएगा और मोटापा भी कम करेगा। डायबिटीज के मरीजों का ब्लड सुगर यह स्टैबलाइज करेगा। तीसी शब्द सुनने में भोंदू भले लगे, यह है चमत्कारी। यदि आपको तीसी से आपत्ति हो तो फ्लैक्स सीड का ही इस्तेमाल कीजिए। चीज एक ही है। नए जमाने में कमीज देहाती जैसा लगता है और शर्ट आधुनिक….
तीसी खाएं डायबिटीज से बचें
तीसी यानी फ्लेक्स सीड के गुणों पर आधुनिक मेडिकल साइंस द्वारा कई शोध किये गये हैं। अभी हाल में सैन डियागो, अमेरिका में अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन का वार्षिक सम्मेलन हुया। 24 जून, 2011 को सम्मेलन में डा एनड्रिया की टीम द्वारा प्रस्तुत शोध में यह बताया गया कि यदि प्रतिदिन 20 ग्राम तीसी खायी जाये, तो यह डायबिटीज होने की संभावना को रोक सकती है। य़दि आपका फास्टिंग ब्लड सुगर 100 से 125 मिली ग्राम एवं खाने के दो घंटे बाद का 140 से 200 मिलीग्राम के बीच रहता है, तो आपको डायबिटीज होने की ज्यादा संभावना रहती है। इस अवस्था को प्री डायबिटीज की अवस्था डायबिटीज के दुष्परिणामों के होने की संभावना में उतनी ही खतरनाक है, जितनी की डायबिटीज की अवस्था में यदि आपकी मौजूदा लाइफ स्टाइल में रोज 20 गराम तीसी खाने की आदत जोड़ दी जाये। तो ब्लड सुगर नियंत्रित होने लगता है और इंसुलिन की संवेदनशीलता बढ़ जाती है। यह खुलासा डा एनड्रिया की टीम ने अमेरिका में हुए नये शोध में किया है।
पुराना है तीसी का इतिहास – तीसी का इतिहास हजारों साल पुराना है। कहा जाता है कि 10 हजार साल पहले मेसोपोटामिया की सभ्यता ने इसका इस्तेमाल शुरू किया। आज विश्व में कनाडा में सबसे ज्यादा तीसी उपजाया जाता है। भारत की तीसी उत्पादन में मात्र 9 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।
तीसी किस तरह खाएं –
मेरे पिछले आर्टिकल ने तीसी पर लोगों में जबरदस्त रुचि पैदा की है। मुझे सैकड़ों पाठकों ने फोन किये। उनका मुख्य प्रश्न तीशी खाने के तरीके पर है। इस मामले में मैंने उपलब्ध शोधों को पढ़ा है। उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सदियों से भारत ग्रामीण इलाकों में जिस तरह से तीसी खायी जाती है, वह वैजानिक है। यानी ताजे तीसी को हल्का भून लें और उसे पीस कर उसको क्रश कर दें।
क्रश की हुई तीसी को कुछ दिनों तक ही स्टोर करें। यदि आप पूरी तीसी खाते हैं, तो यह बिना पचे ही मल से निकल जाता है। भूरे रंग की या गोल्डेन रंग की तीसी विश्व में पायी जाती है। दोनों के फायदे एक ही हैं। कई देशों में तीसी को पाउडर बना कर और आकर्षक पैकिंग में डाल कर बेचा जा रहा है। अगर आप पूरी तीसी खाना चाहते हैं तो पहले खूब चबा लीजिए। यह जानना भी जरूरी है कि तीसी को यदि बहुत ज्यादा आंच में रखा जाये तो इसका पोषक तत्व खत्म हो जाता है और वह जहरीला भी हो सकता है। तीसी के तेल प्रयुक्त नही करें। तीसी खाने की शुरुआत मात्र एक चम्मच (20 ग्राम) से करें और खाने के बाद भरपूर मात्रा में पानी अवश्य पी ले अन्यथा वह कब्ज कर सकता है। क्रश की हुई यानी पीसने के बाद की तीसी को ठंडे जगह पर ही रखे और धूप से बचाएं। इसे विदेशों में लोग फ्रीज में रखते हैं। प्रतिदिन एक से दो चम्मच तीसी का ही प्रयोग करें। ज्यादा लेना सुरकित नहीं है। तीसी को सलाद में डाल कर या दही या दही में डाल कर या अन्य पकवानों पर डाल कर भी खाया जा सकता है। इस विषय पर प्रामाणिक जानकारी डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू फलेक्सकाउंसिल डाट का पर उपलब्ध है।
अंतत हेल्थ को ठीक रखना मिला-जुला प्रयत्न होता है। इसमें आपके लाइफ स्टाइल की भूमिका अहम होती है। संपूर्ण स्वास्थ्य की और तीसी का प्रयोग एक हिस्सा हो सकता है मगर केवल तीसी पर ही अपने हेल्थ को नहीं छोड़ा जा सकता। यह धरती पर पाये जाने वाले बेस्ट हेल्दी फूड की लिस्ट में काफी ऊपर है, मगर इसके प्रयोग में सावधानी की जरूरत भी काफी ज्य्दा हैप्पी तीसी यूज।
क्यों महत्वपूर्ण: मेडिकल साइंस ने आज तीसी को कुछ-कुछ स्थितियों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना है।
i. यह डायबिटीज से बचाव करता है।
ii. हृदय आघात और लकवा (ब्रेन अटैक) से बचाता है।
iii. खतरनाक एलडीएल कोलेस्टराल को कम करने की कमता रखता है।
iv. ब्रेस्ट कैंसर में इसकी महत्ता बचाव और उपचार दोन में हैं। ऐसा तीसी में पाये जाने वाले लिगनैन के कारण होता है। लिगनैन फायटो-इस्टेरेजोन से भरपूर होते है। इस्टेरेजोन के मेटाबालिज्म को नियंत्रित कर तीसी ब्रेस्ट कैंसर से बचाव करता है।
v. तीसी में घुलनशील और अघुलनशील दोनों तरह के फाइबर होते हैं, जो ब्लड सुगर को स्थिर करने और आंतों को गति देने में फायदेमंद है।
vi. औरतों में मेनोपाज के बाद शरीर में होनेवाले हाट फ्लैशेज यानी गरमी लगने की समस्या से भी तीसी का नियंत्रित सेवन छुटकारा दिला सकता है।
vii. वैसे तीसी के फायदों को लिस्ट लंबी है। मगर इतना जानना काफी होगा कि तीसी में आमेगा-3-फैटी एसिड की मात्रा इतनी होती है कि वह हमारे शरीर में रोगा पैदा होने वाली प्रक्रिया को पूर्णत सुधार सकता है यदि शरीर में सही मात्रा में ओमेगा -3-फैटी एसिड रहेगा तो मेटाबालिक बीमारियों के होने का खतरा बहुत कम जायेगा।
2. दुनिया में कितने ऊँट हैं? जानिए तिलिस्म ऊँटनी के दूध का डायबिटीज में
यदि आपसे पूछा जाये कि दुनिया में कितने ऊँट हैं तो यह एक बेवकूफी से भारा सवाल लग सकता है । मगर जानकार लोगों की दृष्टि में यह एक महत्वपूर्ण सवाल है । जान लिजिए कि इस धरती पर दो करोड़ ऊँट हैं और सन 2016 तक दस बिलियन यू.एस. डॉलर (प्रतिवर्ष) का बिजनेस ऊँटनी के दूध से शुरू होने का आकलन है । आस्ट्रिया में ऊँटनी के दूध से बना चाकलेट, बटर, और दही का बिजनेस तेजी से बढ़ता जा रहा है ।
कहानी शरू होती है सन 1986 से
राजस्थान के दो जिले -जैसलमेर और जोधपुर के रियाका समुदाय में हुए एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने मेडीकल जगत को चौका दिया । रियाका रेगिस्तानी इलाके में रहने वाले जुझारू लोग है और बियाबान बालू के रेतीले समुद्र के सिंग इज किंग हैं । ज्यादातर ये लोग ऊँटनी के दूध पर ही निर्भर रहते हैं । जम के ऊँटनी का दूध पीते हैं और बिन्दास होकर जीते हैं । वैज्ञानिको की टीम ने पाया कि इस कम्युनिटी में डायबिटीज होने की दर शून्य पायी गयी अभी तक दुनिया में ऐसा कोई समुदाय चिन्हित नहीं हुआ था जिनमें डायबिटीज न होता हो । सर्वेक्षण करने वाली टीम ने तब उसी समुदाय के उन लोगों का अध्ययन किया जो शहरी इलाके में रहते थे एवं उँटनी का दूध पीना पिछड़ेपन की निशानी मानते थे । पाया गया कि ऐसे लोगों में डायबिटीज होने की दर 6% थी । उसी समय यह परिकल्पना की गयी कि ऊँटनी के दूध में शायद कोई ऐसा तत्व है जिसके पीने से डायबिटीज नहीं होता है ।
एक टेढ़ी खीर ।
धीरे-धीरे ऊँटनी के दूध में भारतीय शोधकर्ताओं की रूचि बढ़ी । अल्बोनों चुहों पर हुए उपयोग ने बताया की ऊँटनी का दूध खून में शुगर की मात्रा को तेजी से कम कर देता है । वैसे तो हजारों साल से रेगिस्तानी इलाकों के लोग ऊँटनी का दूध पीते आयें हैं मगर जहाँगीर (1579-1627 ई.सी.) ने अपने संस्मरण में इसकी महत्ता का अच्छा वर्णन किया है । आधुनिक काल में 1986 के बाद 2004 से 2007 में पूरी दुनिया में पहली बार तब सनसनी फैल गयी जब यह समाचार आया कि ऊँटनी के दूध में इन्सुलीन या इन्सुलीन जैसा कोई प्रोटीन होता है । ऊँटनी के दूध का रेडियोइम्युनोंऐसे ने अब दिखाया है कि इसके एक लीटर में 52 यूनिट इन्सुलीन स्रावित होता है। यह मात्रा गाय के दूध में स्रावित होने वाले इन्सुलीन 16 यूनिट प्रति लीटर से बुहत ज्यादा है । ह्यूमन मिल्क में 62 यूनिट प्रति लीटर इन्सुलीन स्रावित होता है ।मुख्य बात यह है कि कोई भी इन्सुलीन जब पेट के ऐसिडिक मिडियम में पहुँचता है तो वहीं नष्ट होकर नाकाम हो जाता है । केवल ऊँटनी के दूध को पीने के बाद उसका इन्सुलीन पेट में नष्ट नहीं होता और आँतो में जाकर अवशोषित होकर रक्त में जा पहुंचता है और ब्लड शुगर को कम कर देता है । ऊँटनी के दूध में रहने वाला इन्सुलीन पेट में क्यों नहीं नष्ट होता यह अभी तक एक तिलिस्म है । जिस दिन यह तिलिस्म विज्ञान खोज लेगा उसी दिन इन्सुलीन का टेबलेट बनाना मुमकिन हो जाएगा । अभी जो रिसर्च की दिशा है उसके अनुसार इन्सुलीन का टेबलेट बनाना एक टेढ़ी खीर लग रही है ।
इन्सुलीन की सुई लेने की जरूरत 30 % तक कम जाती है ।
बिकानेर मेडिकल कॉलेज के डाक्टर आर पी. अग्रवाल के ग्रुप द्वारा किया हुआ एक शोध इन्टरनेशनल जरनल ऑफ डायबिटीज इन डेवेलपिंग कन्ट्रीज में सन 2004 में छपा । उन्होनें टाइप 1 डायबिटीज के 24 मरीजों को दो ग्रुप में बांटा और एक ग्रुप में प्रतिदिन आधा लीटर ऊँटनी का दूध पीने को दिया । तीन महीने बाद ऊँटनी का दूध पीने वाले ग्रुप में इन्सुलीन की सुई लेने की जरूरत 30 % तक कम गयी और ब्लडशुगर का नियंत्रण आदर्शजनक ढंग का रहा। इन मरीजों का स्वास्थय भी अच्छी तरह सुधर गया । सन 2007 में हुए एक शोध ने पाया कि यदि डायबिटीज का मरीज रोज 20 यूनिट इन्सुलीन की सुई ले रहा हो और यदि वह रोज आधा लीटर (500मी.ली.) उँटनी का दूध पीने लगे तो उसकी सूई की मात्रा 6 यूनिट लेने की जरूरत होगी ।इंडियन काउन्सील ऑफ मेडिकल रिसर्च अब जगा है और प्रमाणिक शोध शुरू किये गए हैं । ऊँटनी के दूध में गाय के दूध की तुलना में 3 गुणा गुणा विटामीन सी एवं 10 गुणा ज्यादा आयरन होता है । उँटनी के दूध में कोलेस्टोरोल को घटाने की क्षमता है । यह ओस्टीयोपोरोसिस को रोकता है, एन्टी बैक्टीरियल एवं एन्टी वायरल गुणों से ओतप्रोत है ।
ऊँटनी के दूध में बहुत रहस्य छुपा हुआ है ।
जानकारों का कहना है कि ऊँटनी के दूध में बहुत रहस्य छुपा हुआ है जो डायबिटीज की बीमारी को नेस्तानाबूद कर सकता है। हैरानी की बात यह है कि इतनी महत्वपूर्ण बात पर उस तीव्रता से शोध नहीं हो रहा है। जिस तीव्रता से डायबिटीज की महामारी फैल रही है । यदि यह तिलिस्म टूटे तो कम से कम इन्सुलीन का टेबलेट बनाना संभव हो जाए । अब इतनी प्यारी दास्तां सुनने के बाद आपसे कोई ऊँटों की जनसंख्या पूछे तो उसे आप क्या कहेंगे चालाक या भारी बेवकूफ।
3. यह काम मत कीजिए, एक वैद का दावा है जिन्दा मछली का गलफर(ग्रील)खाने से सदा के लिए डायबिटीज खत्म हो जाता है ।
एक बार एक डायबिटीज का मरीज दिखाने आया। जाँच के बाद उसका सीरम क्रियेटीन 9 मि.ग्रा. पाया गया यानि वह किडनी फेल्यर में था। उसे रिफर करना पङा। एक बङे सेन्टर में किडनी फेल्यर का डायगनोसिस हुआ। मात्र 10 दिन बाद उसका सीरम क्रियेटीन 0.9 मि.ग्रा.यानि नारमल हो गया।इससे डाक्टरों को बङा आश्चर्य हुआ।
उसके लौटने के बाद मैंने उससे डिटेल में बात की। उसका प्रोब्लेम तब शुरू हुआ जब एक वैद के कहने पर मछली का गलफर [ग्रिल]बिना पकाये उसने खाया। वैद ने गारन्टी दी थी कि इससे रोग जङ से चला जायेगा। मगर इससे उसकी किडनी ही फेल कर गयी। खैरियत यह रही कि किडनी का फेल्यर टेम्पोरेरी रहा।
4. मधु (हनी) अब प्रयोग में लायी जा रही है डायबिटीज के घाव की ड्रेसिंग में काफी प्रभावकारी है।
मधु का प्रयोग सन 2000 के बाद काफी बढा है। यह एन्टी बैक्टेरियल है,संक्रमण को दूर करता है,सूजन को दूर करता है। इसमें घाव को साफ (डिब्रिजमेंन्ट)करने की क्षमता है जिससे दुर्गन्ध दूर होता है और घाव ज्लदी भरता है। यह टिशू रिजेनेरेशन यानि ऊतकों को फिर से बनाने लगता है।इसमें एन्टी फंगल गुण भी है। सन 2005 में कूपर ने अपने शोध में दिखाया कि केवल लेप्टोपरमम – पलांट स्पेशिज से उत्पन्न मधु में ही ये गुण होते हां।अस्टैलिया में मेडीहनी के नाम से यह उपलब्ध है।
मधु में 80 प्रतिशत सुगर एंव 20 प्रतिशत पानी होता है। लोगों को यह भ्रम है कि इसके उपयोग से ब्लड सुगर बढ सकता है मगर शोधों ने दिखाया है कि ऐसा नहीं होता है।
5. खाओ आलू, रहो चालू।
कहते हैं कि खाने में आलू देश में लालू और जंगल में भालू न हो तो मजा खत्म हो जाता है। आलू सबका प्रिय है और ऐसे बहुत लोग हैं, जो हरी सब्जियों से नफरत और आलू से गहरा इश्क करते हैं।
अमेरिकन डायबिटीज एशोसिएशन और अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने भी आलू को हेल्दी फुड बताते हुए इसके गुणों का गान किया है। आलू को उन्होंने वेजिटेबल की श्रेणी में ही रखा है और वेजिटेबल स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही होता है। मगर आलू के दुश्मनों की कमी नहीं है। अमेरिकन जनरल आफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन के फरवरी 06 के अंक ने आलू और आलू चिप्स को डायबिटीज पैदा करने वाला फुड करार दिया है। डॉ लॉरी बारवले और डा डिसेर लाई आलू के पीछे 20 साल तक लगे रहे। उन्होंने चौरासी हजार पांच सौ पचपन हेल्दी औरतों को सन 1976 में शोध के लिए चुना। फिर अगले बीस साल तक उनको अपने ट्रैक में रखा और कौन औरत कितना आलू और फ्रेन्च फाईज खाती है उसका हिसाब रखा। पता नहीं, क्यो शोध में उन्होंने मर्दो को नहीं लिया। औरतों से उन्होंने जब भी बात की केवल आलू के बारे में ही बात की। बीस साल के शोध में उन्होंने पाया कि 84555 औरतों में 4496 औरतों को डायबिटीज का मामला केवल इसलिए हुआ कि वे आलू और चिप्स की दीवानी थी। अथक मेहनत और पैसा लगा कर बीस साल तक शोध एक विषय पर करना आसान काम नहीं है। इस शोध के तहत यह सिद्ध किया गया कि आलू का निरंतर सेवन स्वस्थ महिलाओं में डायबिटीज पैदा कर सकता है, मगर यह रिस्क उन महिलाओं को रहता है जो मोटापे से ग्रसित रहती हैं और अन्न की जगह ज्यादा आलू खाती हैं।
आलू का ग्लायसिमिक इंडेक्स ज्यादा होता है। ग्लायसिमिक इंडेक्स के द्वारा खून में शर्करा घुलने की गति का पता चलता है अधिक ग्लायसिमिक इंडेक्स वाले भोजन से खून में सुगर की मात्रा तेजी से बढ़ती है और फिर उतनी ही तेजी से कम भी हो जाती है। कम ग्लायसिमिक इंडेक्स वाले भोज्य पदार्थ वजन घटाने तथा इन्सुलीन की संवेदनशीलता बनाये रखने में सहायक होते हैं। चना का ग्लायसिमिक इंडेक्स 49 होता है, सोयाबीन का 20 तो भुने हुए आलू का 135 । किसी भी पदार्थ का ग्लायसिमिक इंडेक्स 70 से ज्यादा हो तो खून में सुगर तेजी से बढता है। इस मायने में आलू का ग्लायसिमिक इंडेक्स काफी बुरा है। मगर आलू को प्राकृतिक तौर पर खाया जाये तो वह खराबी नहीं करता।
आलू का आपरेशन कर हम उसे चिप्स , फ्राईड चिप्स और न जाने क्या- क्या बनाकर उसे खराब फुड की श्रेणी में ला देते हैं। ऐसी हालतों में आलू डायबिटीज लाने में मदद करेगा ही। अध्ययन में वस्तुतः यह भी पाया गया कि यह रिस्क मुटापे से ग्रसित और शारीरिक श्रम न करने वाली महिलाओं में ज्यादा होता है। एक सिद्धांत है कि खाइये कुछ भी, मगर उसको खूब पैदल चलके जला डालिये ताकि ज्यादा कैलोरी से चर्बी का जमाव शरीर में नहीं हो। जो लोग इस बात का ध्यान रखते हैं उनको थोड़ा अंट शंट खान के बावजूद माडर्न बीमारियों का न्योता नहीं मिलता है।
रामदेव जी महाराज आलू को राम-राम और कद्दू को सलाम करते हैं। आलू मोटापे का और कद्दू पतले होने का सांकेतिक जलवा है मगर आलू के बिना हमारी रसोई नही चल सकती। आलू के खिलाफ मत रहिये, आलू की सब्जी खाइये। चिप्स बनाकर इसका सत्यानाश मत कीजिये। खाइये और पैदल चलकर इसको जला दीजिये।
6. टाइप (1) डायबिटीज से ग्रसित निरापद ढंग से व्यापारिक विमान उड़ा रहे है
दिमाग की क्षमता पर अचानक असर।
दुनिया के किसी भी देश में यदि आप टाइप (1) डायबिटीज से ग्रसित हैं और इन्सुलीन की सुई लेने की बाध्यता है तो हवाई जहाज का पायलट नही बनाया जा सकता। यह एक अब तक प्रचलित ठोस नीति है। इन्सुलीन लेने वालो का ब्लडसुगर समान्य से थोड़ा भी कम हो जाए तो दिमाग की क्षमता पर अचानक असर पड़ता है। विमान का पायलट ऐसी अवस्था में निणर्य लेने की स्थिति में नही होता। जाहिर है दुघर्टना होने की संभावना बढ़ जाती है। भारत में राजधानी या शताब्दी जैसी रेल गाड़ियों के ड्राइवर को यदि डायबिटीज है और इन्सुलीन की सूई या खाने की दवा द्वारा सुगर का नियन्त्रण करना पड़ रहा हो तो उन्हें बतौर चालक अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
दुनिया में नीति और कानून स्थिर नहीं।
मगर दुनिया में नीति और कानून स्थिर नहीं है। इनमे लगातार देशकाल की परिस्थिति द्वारा परिवर्तन होता रहा है। अब इस नियम के खिलाफ दुनिया में कनाडा एक ऐसा देश है जिसके कई पायलट इन्सुलीन की सूई लेते हुए बड़े बड़े व्यापारिक विमान दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक उड़ा रहे है। यह मेडीसीन जगत की ओर से डायबिटीज के मरीजों के लिए अनोखी पहल है और मानवता के लिए आशा की एक संजीवनी।
कैप्टन स्टीव स्टीले की कहानी का रोमान्च देखिए। 8 साल से कनाडा में बोइंग 767 उड़ा रहे थे। 30 साल की उम्र में सन 1986 के मई महीने में उन्हें डायबिटीज ने जकड़ लिया, वह भी टाइप – वन जिसमे इन्सुलीन लेना जीवन-मरण का प्रश्न बन गया। बस उनके पायलट के कैरियर की वही इतिश्री हो गयी। उन्हें बोल दिया गया-जाओ अब भजन करो, जीवन में अब फिर कभी बोइंग नही उड़ा पाओगे। निराशा से थका मन, आसमान की ऊंचाइयों में फिर न जा पाने के कारण टूट सा गया। कैप्टन स्टीव ने तब कानून की पढ़ाई शुरू की और और हॉककांग चले गए। मगर इसमे उनका मन रमता नही था। उन्होंने एयर कनाडा को पत्र लिखा तो कम्पनी ने मेहरबानी करके उनको कनाडा बुला लिया। उन्हें पायलटों के ट्रेनिंग के स्कूल में इन्सट्रक्टर की नौकरी मिल गयी। इसी बीच कनाडा सिविलएवियेशन ब्रान्च ने इस समस्या पर अपनी नीति पर पुनः विचार शुरू किया। डा. गेराल्ड, डॉ जेम्स एन डा रावर्ट के प्रयासो से एक नयी नीति बनने का रास्ता साफ हो गया। कनाडा एयलाईन्स ने तब इस मामले को कोर्ट ले गई। कानाडियन चेप्टर आफ राईट एण्ड फ्रीडम के प्रयासो से कोर्ट की लड़ाई लड़ी गई। यह कहानी सन् 1999 की है जब न केवल कैप्टन स्टीव बलिक जॉन मैकडोनोमेट, चुक ग्रीव जैसे टाइप (वन) डायबिटीज के मरीजो को विमान उड़ाने की अनुमति दे दी गई।
बेस्ट वॉकर नामक पायलट दुनिया का पहला एयर-बस 320 को उड़ाने वाला एवं डायबिटीज को इन्सुलीन द्वारा नियन्त्रित करने वाला व्यक्ति बन गया। कैप्टन स्टीव को सन् 2002 में एयर-बस 320 को उड़ाने की अनुमति मिल गयी। कनाडा में 1999 के बाद से अब तक कई टाइप (1) के डायबिटीज मरीज बिना किसी बाधा के निरापद ढंग से दुनिया के तमाम हिस्सो में व्यापारिक ढंग से विमान उड़ा रहे है।
मरीजो के आत्म सम्मान और आशा को एक नई दिशा।
मगर कनाडा को छोड़कर दुनिया का अन्य कोई देश इस नीति को नहीं अपना पा रहा है। इन्सुलिन लेते हुए विमान का उड़ाना बीमारी की मोनिटिरिंग एबिलीटी एवं कंट्रोल की आदर्श स्थिति को दर्शाती है। फ्लाईट शुरू करने के पहले ऐसे पायलटो का ब्लडसुगर नापा जाता है। फ्लाईट के दौरान हर एक घण्टे के अन्दर उनका सुगर देखा जाता है। यदि ब्लड सुगर कम रहा तो हर आधे घण्टे पर ही उनकी जांच की जाती है। ये सभी जांच रिपोर्ट तुरत ही कनाडा की ट्रान्सपोर्ट कन्ट्रोल आथिरीटी को भेजा जाता है। कहा जा सकता है कि ऐसे पायलट दुनिया के मोस्ट मेडिकली स्क्रुटीनाइड्ड पायलट है। इनको विमान उड़ाने का लाईसेन्स मात्र एक साल के लिये दिया जाता है। अगले साल पुनः पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही उनको पुनः विमान उड़ाने का लाईसेन्स दिया जाता है। कैप्टन स्टीव जैसे करीब अन्य 15 टाईप वन के इन्सुलीन लेने वाले डायबिटीज के मरीजो का एयर कनाडा में सुरक्षा एवं सफलता पूर्वक पिछले नौ सालों तक विमानन क्षेत्र में बने रहना इन्सान की अदम्य इच्छाशक्ति का जीता-जागता उदाहरण है। यह दुनिया के ऐसे तमाम मरीजों के लिए एक शुभ समाचार है। भारत में राजधानी जैसे ट्रेनों में टाईप वन या टाईप-टू के मरीजों का चालक बने रहना कानून सम्मत नहीं है। यदि नियन्त्रण के सही पैमाने अपनाए जाए तो मेरी दृष्टि में उन्हें ट्रेन चलाने की अनुमति दी जा सकती है। जरूरी है हमें एक नई नीति की और बिमारियों के प्रति अपने नजरिये को बदलने की। इससे मरीजो के आत्म सम्मान और उनकी आशा को हम एक नई दिशा दे पायेंगे।
7. जब अमेरिका की धड़कन बनी मिसेज क्रिस्टल
अमेरिकन आइडल प्रोग्राम के फाइनल में पहुंची क्रिस्टल बोओरक्स उस समय अमेरीका की तमाम अखबारों की सुखियों में आ गयी, जब ठीक शो के बीच वह बेहोश हो गयी।शो शिकागो में हो रहा था और ट्रिप के दौरान उसे याद आया कि उसने अपनी लाइफ लाइन इंसुलिन पंप का इन्फ्यूजन सेट घर पर ही छोड़ दिया है। क्रिस्टल को टाइप वन डायबिटीज है। इस बीमारी में बिना इंसुलिन की सूई लिए जीवन चल नहीं सकता हैं।
छह साल में डायबिटीज।
जब वह छह साल की छोटी-सी बच्ची थी, तभी इस बीमारी का निदान हो गया था। स्कूल में बार-बार क्लास से उठ कर बाथरूम जाना पड़ता था। पेशाब इतनी बार होती थी कि शुरू में टीचर ने उसे बहानेबाज बता कर पीटा भी। मगर जब यह क्रम नहीं टूटा, तो उसकी मां उसे डाक्टर के पास ले गयी। ब्लड सुगर की जांच की गयी। सुगर काफी बढ़ा हुआ था। उसे टाइप वन डायबिटीज होने की डायग्नोसि स हुई।
बीटा सेल बनाता है इंसुलिन।
टाइप वन डायबिटीज बड़ी उम्र में होने वाले टाइप-टू डायबिटीज से भिन्न होता है। बचपन में ही किसी वायरल संक्रमण से आटोइम्युनिटी हो जाती है। शरीर अपने ही अंग पैनक्रियाज के बीटा सेल्स को धीरे-धीरे पूर्णतः नष्ट कर देता है, बीटा सेल्स द्वारा ही शरीर में इंसुलिन बनाया जाता है। शरीर में इंसुलिन न रहे, तो रक्त से ग्लूकोज कोशिकाओं में घुस नहीं पाता और इस तरह एनर्जी पैदा नहीं हो पाती।
रक्त में सुगर बढ़ता चला जाता है। इतना ज्यादा कि शरीर इतना विषाक्त हो जाये और मरीज डायबिटीज किरो एसिडोसिस में जाकर बेहोश हो जाये। टाइप-वन में चूंकि इंसुलिन रत्ती भर नही बन पाता, बिना इंसुलिन छह साल की उम्र में इस बीमारी ने जकड़ लिया, तो पूरा परिवार मानसिक अवसाद से घिर गया। पहले तो उसकी मां उसकी सूई लगा देती थी, मगर बाद में क्रिस्टल स्वयं सूई लगाने लगी। सूई के अलावा मीठी चीजों से भी परहेज करना था एवं एक्सरसाइज शुरू करनी थी। बच्चे पर ज्यादा तनाव न पड़े, इसके लिए परिवार वालों ने भी मिठाई एवं फास्ट फूड छोड़ने को सोची। मगर यह बहुत दिन चला नहीं। बाद में क्रिस्टल को समझ में आ गया कि बीमारी जब उसे हुई है, तो भोगना भी उसे ही है। क्रिस्टल जब दस साल की हुई, तो वह प्रोफेशनल संगीतकारों की श्रेणी में आ चुकी थी। उसके पिता होटलों में जहां-तहां म्यूजिक शो किया करते थे। पिता के साथ वह भी शो करती और अपनी पढ़ाई भी।
कई बार इंसुलिन लेने का तारतम्य टूट जाता और उसे अस्पताल में जाकर भरती होना पड़ता। घर में उसकी मां किसी तरह अपने तीन बच्चों का गुजारा कर रही थी। उसके अपने पति से तलाक तभी हो गया था, जब वह दो साल की थी। इस हालात में रहते कितना मुश्किल था। एक छोटी बच्ची को संभालना, जिसको दिन में कम-से-कम तीन बार ब्लड सुगर की ग्लूको मीटर से जांच करनी हो और फिर उसके अनुसार इंसुलिन की डोज लेनी हो। जब वह हाइस्कूल में थी, तब उसके डाक्टर ने इंसुलिन पंप के बारे में बताया। यह मोबाइल की तरह का एक यंत्र होता है। इसमें इंसुलिन भरा रहता है। पंप को एक नली द्वारा पेट पर सेट कर दिया जाता है। डोज एडजस्ट करके पंप स्वयं इंसुलिन को शरीर में भेजता रहता है। अब तो कृत्रिम पैनक्रियाज का जमाना आ गया है। इसमें सेंसर भी लगे रहते हैं। खुद समय-समय पर ब्लड सुगर की मात्रा नाप कर, जितनी इंसुलिन की जरूरत हो उतना ही शरीर में भेजते रहते हैं। मगर यह यंत्र इतना महंगा है कि लंबे समय तक क्रिस्टल उसका जुगाड़ न कर सकी।
बिल्ली ने इंसुलिन पंप को चबाया।
एक बार उसके इंसुलिनपंप इन्फ्यूज सेट की नली को उसकी बिल्ली ने चबा डाला और अगले दिन सुगर बढ़ने से वह बेहोश हो गयी। जब क्रिस्टल 18 साल की हुई, तो हेल्थ इंश्योरेंस कवर में आगयी और इंसुलिन पंप का जुगाड़ कर पायी। अभी उसको 16 माह का लड़का भी है, जिसका नाम टोनी है। गर्भावस्था के दौरान जब 10 साल से 20 बार ब्लड सुगर जांच करना पड़ता था और इंसुलिन की मात्रा नियंत्रण करनी पड़ती थी, तो यह हरक्यूलिन टास्क से कम नहीं था। 2010 के अमेरीका आइडल प्रोग्राम में जब 12वें पायदान पर यह थी, तो शो के दौरान बेहोश हो गयी। सुगर 400 मिग्रा पाया गया और पेशाब में किटोन पाया गया। अस्पताल में शो के डायरेक्टर केन वारविक आये और क्रिस्टल से कहा कि सारी डार्लिंग, अब तुम आगे अमेरिकन आइडल में नही जा सकती। क्रिस्टल रोने लगी। उसने कहा कि मै यहां तब जब पहुंची हूं, तो डायबिटीज को मेरी बाधा मत बनने दीजिए। तब केन ने कहा कि ठीक है चौबीस गटे साथ रहनेवाली एक नर्स खोज लो, तभी कुछ किया जा सकता है। भाग्यवश आयोजनकर्ताओं ने क्रिस्टल के शो की तिथि को आगे बड़ा दिया। अंत में वह शो के फाइनल में प्रवेश कर गयी। जब उसने अपने कंधे के पास टाइप वन डायबिटीज का टैटू बनवा लिया है। वह कहती है, यह एक कहने के बराबर है, जो दुनिया को यह बताता है कि दिल में हौसला हो, तो टाइप-वन डायबिटीज जैसी बीमारी आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। क्रिस्टल जैसी शख्सियत ने दुनिया के तमाम टाइप-वन डायबिटीज के मरीजों को एक नया रास्ता दिखाया है। 22 साल की क्रिस्टल आज पूरे अमेरिका की धड़कन बन गयी हैं।