सन 2019 डायबिटीज की दुनिया के लिए उठल पुथल का साल माना जायेगा। 2019 में कुछ शोधों के रिजल्ट आये और  मूलभूत अवधारणाओं का  ही आमूल परिवर्तन कर दिया।

अभी तक मेटफॉर्मिन दवा के नंबर वन पर होने की महत्ता पर कोई प्रश्नचिन्ह नही था। मगर यह धारणा डापागलीफलीजिन एवं जी एल पी- 1 एगोनिस्ट ग्रुप पर हुए शोधों के परिणाम के कारण बदल रही है। यह पाया गया है कि केवल इन्ही दवाईओं द्वारा ह्रदयाघात, स्ट्रोक, हार्ट का फेल होना एवं किडनी फेल होने की संभावना से बचाव होता है। अजीब बात है कि डापागलीफलीजिन ग्रुप की दवाईया हुई तो थीं डायबिटीज के इलाज के लिए मगर हार्ट फेल्योर को बचाने में इतनी सक्षम पाईं गई कि कार्डियोलॉजी विधा में उफान मारने लगीं। करीब 20 साल की जड़ता के बाद ऐसी दवा उपलब्ध हुई है जो कि डायबिटीज के मरीजो का हार्ट और किडनी बचा कर उम्र 15 साल तक बढ़ा सकती है। इसलिए हार्ट एवं किडनी की समस्या  के साथ डायबिटीज के रहने पर मेटफॉर्मिन के द्वारा शुगर नियंत्रण करने का कोई औचित्य नही रह गया है।

हाल में ही कैरिलोना ट्रायल के रिजल्ट आये हैं और इसने बताया है कि सस्ती दवा गलिमिपिराइड हर तरह से सुरक्षित है और यह बीटा कोशिकाओं को बर्बाद नही करती और हार्ट अटैक या फेल्यर को भी नहीं लाती। नई और महंगी दवाईयों के दौर में गलिमिपिराइड के सुरक्षित होने का प्रमाण डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत सुकून ले कर आया है।

इस साल नई दवा एमेगलिमिन के आने की भी दस्तक मिली है। यह दवा मांशपेशियों में इन्सुलिन की संवेदनशीलता बढ़ाती है, बीटा कोशिकाओं से ज्यादा इन्सुलिन स्रावित करती है एवं लिवर में ग्लुकोज़ को ज्यादा बनाने नही देती। इस तरह की कोई दवा अभी बाजार में नही है। उम्मीद है, एक साल बाद यह भारतीय बाजार में आ सकती है। फेज 3 ट्रायल में यह निरापद एवं काफी प्रभावकारी पायी गई है।

एक और बड़ी न्यूज़ नई दवा सेमागलुटाईड को लेकर है। सन 2020 में  यह बाजार में आ जाएगा।  पहली बार इस मोलेक्यूल का टेबलेट बनाने में सफलता मिली है। माना जा रहा है कि यह डायबिटीज के इलाज में मील का पत्थर साबित होगा। इसका कारण यह है कि यह शुगर की घटाने में अत्यंत प्रभावकारी है, हार्ट एवं किडनी को बचाती है और इसके प्रभाव से 7 किलो तक वजन घट सकता है। इसके  एक टेबलेट की कीमत 90 रुपये तक हो सकती है।

मगर सबसे क्रांतिकारी बदलाव की दस्तक इस अवधारणा का टूटना है की टाइप टू डायबिटीज कभी खत्म नही होता।

अब साइंस बता रहा है कि डायबिटीज को रिवर्स किया जा सकता है और शुरुवाती दौर में यह बात रोगियों को बतानी चाहिए। डायरेक्ट ट्रायल के नतीजे अब चिकित्सकों को हैरान कर रहे हैं। वैसे यह ट्रायल केवल 149 लोगों पर किया गया जिनको डायबिटीज छह साल से कम अवधि से था। इस ट्रायल की अवधारणा यह है कि यदि आपके शरीर में चर्बी ज्यादा जमा होती है तो यह लिवर में भी जम जाती है और यही पैंक्रियाज ग्रंथि के बीटा कोशिकाओं में इन्सुलिन रेसिस्टेंस पैदा करती है। इन्सुलिन का कम स्रावित होना या स्रावित होने के बाद नाकाम हो जाना ही डायबिटीज की अवस्था है। जब इस ट्रायल के मरीजों को 800 किलो कैलोरी के डायट पर रखा गया और उसके कारण उनका वजन 7 से 15 किलो घट गया। इसी डायट को दो साल तक दे कर उनका वजन कम रखा गया तो चमत्कार यह हुआ कि डायबिटीज की बीमारी पूर्णतः बैक गियर में जाकर खत्म हो गई। इन सबको इन्सुलिन और दवाईयों को लेने का दौर अतीत की बात हो गई है। वजन घटाने के बाद इन मरीजों का उच्च रक्तचाप भी बिना दवाईयों के सामान्य हो गया।

यह बात मेडिकल साइंस के लिए बिल्कुल नई है। यह बहुत बड़ी आशा की किरण है। हालाँकि इस ट्रायल के नतीजों पर पूर्णतः क्योर का ठप्पा लगाना सही नही होगा, मगर अंधेरे से भरी एक कोठरी में सूरज की किरण पहली बार साइंस बन कर उतरी है। मुख्य चैलेंज लाइफ स्टाइल बदल कर लंबे समय तक वजन को स्थिर रखना एक आम आदमी के लिए लगभग नामुमकिन है।

डायबिटीज को रिवर्स करने में रुक-रुक कर उपवास करने और ऑटोफैगी क्रिया की सक्रियता की महिमा पर विज्ञान ने मुहर तो लगा ही दी है। उपवास कितनी पुरानी भारतीय विरासत है, यह सर्वविदित है। अब यह पुरातन सत्य विज्ञान ने परखा है। साइंटिफिक परिपेक्ष्य में सिद्ध होने के बाद वेस्ट अब उपवास के द्वारा डायबिटीज रिवर्स करने के तरीकों जा मार्केटिंग शुरू कर चुका है।

दुनिया में अमेरिकन और यूरोपीयन और डायबिटीज गाइडलाइन्स सबसे ज्यादा प्रामाणिक माने जाते हैं और 2019 में इनकी दशा और दिशा दशकों बाद पूरी 360 डिग्री बदलने लगी है। दवाईयों के बारे में तो गाइडलाइन्स ने डायबिटीज के इलाज को अपडेट कर लिया है। मगर डायबिटीज की शुरुवाती अवस्था में डाइट और फिजिकल एक्सरसाइज द्वारा बीमारी को रिवर्स गियर में डालने का चमत्कार अभी अपडेट नहीं किया गया है। अगर गलत लाइफ स्टाइल से बीमारी उफान मार रही है तो उसे ठीक करके रिवर्स किया जा सकता है।