कहा जाता है कि आदमी का कोई सुहाना भ्रम टुट जाए तो यह मरण तुल्य पीड़ा देता है। मेडीसीन जगत की सबसे ग्लैमरस विधा कारडियोलॉजी में एक भ्रम अब शीघ्र टूटने जा रहा है। यह् भ्रम है बाईपास सर्जरी या एनजियोप्लास्टी पर हमारी अत्यधिक विश्ववसनियता। यह सोचा जाता रहा है कि ह्रदयाघात या एनजाइना से ग्रसित होने के बाद जरुरत रहने पर बाईपास सर्जरी या एनजियोप्लास्टी कराकर रोग से निजात पाया जा सकता है। यही सोच है जो न केवल जनमानस में बल्कि चिकित्सकों में भी व्याप्त है मगर यह व्यावसायिक मानसिकता और तामसिक सोच-यह सुहाना भ्रम,कि हाइटेक सर्जिकल तकनिकों से ह्रदय को रखा जा सकता है, टूट रहा है।

कारडियोलॉजी जगत में इस पीड़ा की अनुभूति नही हो रही है, क्योंकि जो शुभ संदेश है, उन्हे लोग जानते नही, न ही उसे लोगों को बताया जा रहा है। भ्रमवश, लोग अधिक से अधिक संख्या में बाईपास सर्जरी कराने को बाध्य हैं। जबकि सच्चाई यह् है कि बिना बाईपास सर्जरी के ही अधिकांश को लंबे समय तक स्वस्थ एवं सुखी रखा जा सकता है।

क्या है बाईपास, स्टेन्ट एवं एनजियोप्लास्टी

पिछले दशक कि अत्यन्त लाभकारी खोज बाईपास, स्टेन्ट एवं एनजियोप्लास्टी जैसी तकनीकों की उपादेयता पर प्रश्न नही है। कुछ खास परिस्थितियों में और कुछ खास रोगियों में इसकि उपादेयता किसी वरदान से कम् नही। इन तकनीकों के माध्यम से हॄदय की मांसपेशियों को रक्त पहुचाने वाली कोरोनरी आरटरीज में जो सिकुड़न कॉलेस्टारल के जमाव से उत्पन्न होती है उसे हटा दिया जाता है।

बाईपास में सर्जरी द्वारा नई नली लगा देते है, एनजियोप्लास्टी में उस सिकुड़न के पास एक बैलून पहुँचा कर उसे फुला देते हैं जिससे सिकुड़न में फैलाव हो जाता हैं। स्टेटिंग में सिकुड़न को फैला कर स्टील के छल्ले लगा दिये जाते हैं। इन क्रियाओं से कोरोनरी आरटरीज में पुनः रक्त का संचारण होने लगता है। इन तकनीकों में दक्षता प्राप्त करने में चिकित्सकों को काफी समय, पैसा और मेहनत करनी पड़ती है।

संभव है ब्लाक्ड नली को खोलना

पहले यह सोचा गया कि नली में जहाँ कोलेस्ट्रोल जमाव के कारण सिकुड़न है केवल वहीं पर थक्का बनने और अन्ततः नली के पूर्णतः बंद होने से हॄदय आघात होता है। मगर पिछले दशक में विश्व के कई भागों में हुए शोधों के परिणाम 1997-1999 में मिले तो यह भ्रम टूट गया। पाया यह गया कि कोरोनरी आरटरी में थक्के बनने की प्रक्रिया(एथरोस्कलेरोसिस) एक डिफ्यूज प्रोसेस है जो किसी भी भाग में हो सकती है। और नली के किसी भाग में मात्र थक्के के या कोलेस्ट्रोल जमाव के रहने से कुछ नहीं होता, उस जमाव की क्या संरचना है, यह ज्यादा अहम बात है। इस संरचना को कम वसा युक्त भोजन, व्यायाम एवं स्टेटिन ग्रुप की दवाओं के प्रभाव से बदला जा सकता है। इसे एण्टी एथरोजेनिक लाईफ स्टाईल कहते हैं। इस तथ्य का उजागर होना इस सदी की क्रांतिकारी गाथा है।

फोर एस, फैटस, वोसकोफ, केयर, स्टारस, रिग्रेस आदि जैसे महत्वपूर्ण ट्रायल हुए हैं औरसबके नतीजे यही बता रहे हैं कि लिपिड प्लेक(जमाव) को बिना सर्जरी या एनजियोप्लास्टी किये मात्र सही भोजन, सही जीवन शैली एवं स्टेटीन ग्रुप की दवाओं के द्वारा न् केवल उसकी संरचना में सही सुधार किया जा सकता है बल्कि सिकुड़न को भी कुछ हद किया जा सकता है। जो अति खतरनाक जमाव कोरोनरी आरटरी के अंदर बनता है उसको इन तरीकों द्वारा निष्क्रीय और निरापद किया जा सकाता है। यदि हॄदय की कार्यक्षमता ठीक हो तो एनजियोग्राफी में दिखे केवल सिकुड़न को देखकर बाईपास सर्जरी कराने की कोई जरुरत नही है। एनजियोग्राफी, जिसे कोरोनरी आरटरी की संरचना समझने का ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ माना जाता है, हमेशा सही सूचना नहीं देती है, यह इनट्राकोरोनरी अल्ट्रासाउन्ड एवं पैट स्कैन जैसी नई विधाओं के इस्तेमाल से पता चला है। त्रिआयामी चित्र के साथ-साथ इन विधाओं द्वारा अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है, जो एनजियोग्राफी से सम्भव नहीं है।

यह सब सही लाइफ-स्टाइल का मामला है

अमेरिकन जनरल ऑफ कारडियोलाजी में छपे कुछ हाल के लेखों में इस नई ‘रिर्वसल चिकित्सा’ का जायजा लिया गया है। यह बात साफ ऊभर कर आयी है कि चिकित्सकों को जो भरोसा बाईपास या एनजियोप्लास्टी पर है वह एक भ्रम है। समय आ गया है कि हॄदय की इन बिमारियों में हुए इस क्रांतिकारी परिवर्तन को जनता के बीच लाया जाए। अगर सही ढंग से बिना सर्जरी की सहायता लिया जाए तो अधिकांश रोगी बिल्कुल चंगा रह सकता है।अभी यह बात स्वयं चिकित्सकों के गले नहीं उतर रही है।

भारत में हॄदय आघात अब महामारी के तौर पर होने लगा है। सबसे खतरनाक बात यह है कि यह् कम उम्र के लोगों में जानलेवा तौरपर हो रहा है। अमेरिका जैसे देशो में इसकी व्यापकता दर काफी कम है।यह शोध का विषय रहा है कि आखिर भारतीय उप महाद्वीप के लोगों में यह ज्यादा क्यों होता है?आजकल जेनेटिक तौर पर अधिकॄत रिस्क फैक्टर लाईपोप्रोटीन’ए’को इसका कारन माना जा रहा है। मगर येह् रिस्क फैक्टर तभी प्रभावी होता है, जब आधुनिकता की दौर में गलत खाद्य पदार्थों, आलसी जीवन शैली एवं ध्रुमपान आदि जैसी आदतों द्वारा हमारे रक्त में कोलेस्टेरोल, खास कर एल.डी.एल.कोलेस्टेरोल बढने लगता है। नये दिशा निर्देश यह है कि जल्दी ही पूरा लिपिड प्रोफाइल कराके यह जाना जाये कि कहीं दुशमन कोलेस्टेरोल रक्त में बढ तो नहीं रहा है? समय रहते इसका उपाय किया जाये तो इस बीमारी बचा जा सकता है।

रोग को पूरा भगाइए

इस तरह समझें कि किसी उग्रवाद से प्रभावित जिले में किसी एक सड़क की सुरक्षा बलों द्वारा निगरानी आपकी निरापद यात्रा केवल उसी रास्ते से सुरक्षित करती है। बाईपास सर्जरी का हिसाब किताब ऐसा ही है। मगर अगर उग्रवाद को जड़मूल से नष्ट किया जाये तो आप कहीं भी स्वतंत्र घूम सकते हैं।

कम वसा युक्त भोजन, रिस्क फैक्टरों की जांच पड़ताल एवं स्टेटीन ग्रुप की दवाओं द्वारा रिर्वसल चिकित्सा का पथ अपनाना समग्र उग्रवाद को जड़-मूल से नष्ट करने जैसा है। यह खतरनाक ढग से लिपिड प्लेक की संरचना में सही सुधार कर न केवल हॄदय को नया जीवन प्रदान किया है बल्कि लंबे समय तक हॄदय आघात से बचे रहने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।