गर्भावस्था में मधुमेह की देखभाल

गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की अवस्था को नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक है। अच्छा तो यह होता है कि जो दंपति बच्चे की इच्छा कर रहे हों शुरुवाती दौर में ही अपना ब्लड सुगर जाँच करा लें। गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की अवस्था माँ और बच्चे, दोनों के लिए कई मायनों में खतरनाक है। आँकड़ों के अनुसार मधुमेह के कारण भ्रुण या शिशु की मॄत्यु दर 4 से 6% तक है।

अमेरिका में समान्य गर्भावस्था के दौरान 1 से 2% मॄत्यु दर शिशुओं की है जबकि मधुमेह से पीड़ीत माँओं में 3 से 5%। यह पाया गया है कि यदि गर्भावस्था के दौरान ब्लड-सुगर 105 मि.ग्रा. के आस पास रहे तो मॄत्युदर और होने वाले दुष्परिणाम काफी कम जातें है।

अनियन्त्रित मधुमेह के कारण होने वाले दुष्परिणाम:

i. बच्चों का मुँह इतना बड़ा (मैक्रोसोमिया) हो जाना कि सिजेरियन सेक्शन करना पड़े।
ii. उम्र के अनुसार भ्रुण का अपरिपक्व विकास।
iii. नवजात शिशु में साँस लेने की कठिनाई।
iv. भ्रुण अवस्था में मॄत्यु।
v. कॉनजेनाइटल विकॄति (शिशुओं में)।
vi. मष्तिष्क का अविकसित होना।
vii. हॄदय में दोनों वेन्ट्रीकलों के बीच की दीवार में छेद होना।
viii. हाइड्रोकेफालस, स्पाइना बीफीडा, किडनी की खराबी।
ix. बच्चों का कम इन्टेलीजेन्ट होना, उनमें स्वाभावजनित दोष होना।

इन दुष्परिणामों से मगर बचा जा सकता है

इसके लिए आवश्यक है कि माँओं में पूर्ण जागरुकता हो। याद रखें कुछ केसों में जो पहले सामान्य हैं उनको भी मधुमेह गर्भावस्था के दौरान हो सकता है। इस अवस्था को जि.डी.एम(गेस्टेशनल डायबिटीज) कहते है।

कब जाँच कराएँ / कौन सी जाँच कराएँ

गैस्टेशनल डायबीटीज की अवस्था तब कही जाती है, जब गर्भावस्था के दौरान पहली बार ब्लड सुगर समान्य से ज्यादा पाया जाता है । यदि निम्नलिखित स्तिथियों से आप गुजरीं हैं (माताएँ) तो जाँच की जरूरत है:

उम्र 25से ज्यादा
घर में मधुमेह की बीमारी से किसी का पीड़ित रहना
मुटापा (बी.एम.आई 25 से ज्यादा)
पहले गर्भावस्था के दौरान यदि शिशु की प्रसव से पहले या तुरंत बाद मृत्यु हुई हो
विकृत बच्चा पैदा हुआ हो
अपनी उम्र से ज्यादा बडा बच्चा पैदा हो
प्रीइक्लैम्पशीया की बीमारी हुई हो
पेट में ज्यादा पानी होने की अवस्था बतायी गई हो

जाँच उसी समय हो जाना चाहिए जब पता हो कि आप गर्भवती हैं

अगर पहली बार सुगर समान्य भी आता है तो 24 से 28 हफ्ते के बीच दुबारा जाँच होनी चाहिए । पेशाब में सुगर की जाँच गर्भावस्था के दौरान उपयुक्त नहीं होती, क्योकि ग्लुकोज का किडनी में फिलट्रेशन वैसे ही आठ गुणा बढ जाता है ।

भारतीय गाईड लाईन के अनुसार फास्टिंग सुगर 91 मि.ग्रा./डीएल. एंव बिना फास्टिंग 120 मि.ग्रा./डीएल.से ज्यादा नहीं होना चाहिए । अगर इससे ज्यादा सुगर आता हैतो चिकित्सक आपको ग्लुकोज टोलरेन्स टेस्ट की सलाह देगें । विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरीकन डायबेटिक एशोसिएशन आदि के कट-ऑफ प्वाइन्ट (सुगर का) अलग अलग है।

यदि फास्टिंग सुगर 95 मि. ग्रा. एवं 2 घन्टे ग्लुकोज खिलाने के दो घंटे के बाद यदि 140 मि.ग्रा. से ज्यादा हो तो गर्भावस्था में मधुमेह का निदान किया जाता है ।

ईलाज के दौरान क्या करें?

पी. पी. सुगर 120 मि.ग्रा.से कम रखाना आदर्श स्थिति है। इसके लिए कम से कम हफ्ते में दो बार बल्ड सुगर की जाँच कराएँ।

भोजन में खास नियंत्रण रखें। सामान्य कैलोरी आवश्यकता के अलावा प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय ट्राईमेस्टर में क्रमश 150, 300 एवं 450 कैलोरी की आवश्यकता होती है। एक दूध में 150 कैलोरी होता है। आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा बढा दें।

टहलना जारी रखें (चिकित्सक की सलाह के अनुसार)

याद रखें गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की किसी भी गोली (एन्टी डायबेटीक) को सुरक्षित नहीं पाया गया है। ग्लायबुराइड दवा को कुछ शोधों में प्रभावकारी एवं सुरक्षित पाया गया है। बहर हाल यह शोध का ही विषय है। केवल हयूमन इन्सुलीन ही सुरक्षित है। इन्सुलीन छोड़ कर को कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इन्सुलीन लेना नोवोलेट तकनीक से काफी आसान हो गया है। लिसप्रो इन्सुलीन (एनालॉग इन्सुलीन)के प्रयोग की सलाह अभी नहीं दी गई है। सामान्यत: प्रसव के दिन इन्सुलीन नहीं दिया जाता है।

केवल जी. डी. एम. का होना सिजेरियन सेक्शन का इन्डीकेशन नहीं है। भारतीय मानकों के अनुसार 38 सप्ताह के समय प्रसव का इन्डक्शन कर दिया जाता है।

सैकारीन/एसपारटेट आदि आरटीफीशीयल मीठी गोलियाँ गर्भावस्था के दौरान नहीं खानी चाहिए।

अगर पहले से मधुमेह से ग्रसित हैं तो याद रखिए

गर्भधारण के पहले बल्ड सुगर पूर्णत नियंत्रित कर लें अन्यथा बच्चे में विकृति की सम्भावना रहेगी। शुरूवाती तीन महीने में ही, अंग – प्रत्यंग का निर्धारण भ्रुण में हो जाता है। उस समय सुगर का सामान्य रहना अति आवश्यक है।

यदि आपके किडनी की अवस्था ठीक नहीं है या आँखों में प्रोलिफेरिटिव रेटीनपैथी हो चुकी है तो गर्भधारण न करें।

गर्भधारण के पहले यदि मधुमेह की गोली खा रहे हैं तो अब इन्सुलीन लेना जरूरी हो जाएगा। यदि पहले से इन्सुलीन ले रहे हैं तो पहले तीन महीनों में उसकी मात्रा कम करनी पड़ती है। (फिजियालाजिकल स्थितियों के कारण)

दूसरे एवं तीसरे ट्राइमेस्टर में पुनः मात्रा बढानी पड़ती है। इसके लिए बार-बार बल्डसुगर का कराना जरुरी होता है। उसी के अनुसार इन्सुलीन की मात्रा ठीक करनी होती है। टारगेट है – फास्टिंग सुगर 90 मि.ग्रा. एवं 2 घन्टे के बाद पी.पी. 120 मि.ग्रा.से कम रखना।

प्रसव के बाद भी आपको इन्सुलीन तब तक लेना चाहिए जब तक बच्चा स्तनपान करे (मधुमेह की गोलियाँ दूध में स्रावित होती हैं, इसलिए)। प्रोजेस्टरोन युक्त कन्ट्रासेप्टीव गोली कॉपर युक्त आई. यू. सी.डी. (कॉपर-टी) इस्तेमाल की सलाह नहीं दी जाती है।

याद रखिये, गर्भावस्था के दौरान इन्सुलीन सुगर को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है। सुगर नियंत्रित रखकर आप न केवल अपना स्वास्थ्य बल्कि अपने बच्चे का भविष्य सुनिश्चित करती हैं।