क्या नई चिकित्सा ‘आइजलेट सेल्स प्रत्यारोपण’ टाइप-1 मधुमेह का पूरा क्योर है?

भारत में करीब 2% मधुमेह टाइप-1 प्रकार का होता है। इसमें ऑटोइम्यूनिटी के कारण आइजलेट सेल्स पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं। आइजलेट सेल्स पैनक्रीयाज ग्रन्थि में पाये जाते हैं और इन्हीं के द्वारा इन्सुलीन शरीर में स्त्रावित किया जाता है। इस तरह बीमारी मुख्यतः बीटा सेल्स की बरबादी के कारण से होता है। मरीजों को बिना इन्सुलीन की सूई दिए दूसरा उपाय नहीं रहता।

जून 2000 में यूनिर्वसिटी ऑफ अलबर्टा से एक नई चिकित्सा का समाचार आया । इसे अभूतपूर्व तकनीक मानी गई । डॉ रॉजेटो रे की टीम ने वह कमाल किया जिसकी किसी को उम्मीद न थी । उन्होंने डोनर पैनक्रियाज से आइजलेट सेल्स निकाला और इसे लीवर में पोर्टल वेन के रास्ते बिना किसी सर्जरी के पहुँचा दिया । ये सेल्स लीवर में जाकर इतना इन्सुलीन बनाने लगे कि मधुमेह की अवस्था ही खत्म हो गयी । मरीज उन्मुक्त हो नाचने लगे । मगर इस तकनीक में आईजलेट सेल्स का शरीर रिजेक्शन न कर दे उसके लिए तीन मँहगी दवाइयाँ लगातार खानी पड़ती हैं । यानी दवाइयों से छुटकारा नहीं । समस्या यह आ रही है कि आईजलेट सेल्स कहां से लाया जाये । डोनर का मिलना बहुत कठिन है । सच्चाई यही है कि ऐसी चिकित्सा अभी प्रयोगात्मक दौर में है और पूर्ण क्योर बीमारी का अभी भी बहुत दूर दिख रहा है।