इन्सुलीन लेते-लेते लव हो जाए
मधुमेह के रोगियों को यदि इन्सुलीन की सूई लेने की सलाह दी जाती है तो अकसर उन्हे पसीना आने लगता है मानों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा हो। मगर अब इन्सुलीन लेना इतना सरल हो गया है, मानों बच्चों का खेल हो। न तो कम्पाउन्डर के आने की जरुरत, न तो सूई के कारण दर्द होने की कसमसाहट – बस कलम – नुमे इस औजार को उठाइये, इन्सुलीन की मात्रा को डायल किजिये, स्पिरिट से चमड़े को साफ कर उठाइये, औजार के ऊपर के बटन को दबा दीजिये। कम खत्म।
ज्यादा पीड़ा से कम पीड़ा की ओर प्रयास
थोडी चर्चा आइये कर लें इन्सुलीन के बारे में। बैंटिग और वेस्ट द्वारा इन्सुलीन की खोज मानव इतिहास में मधुमेह पर विजय की अमर गाथा है। तब से शुद्ध से शुद्धतम की ओर, ज्यादा पीड़ा से कम पीड़ा की ओर प्रयास जारी है। सबसे पहले वोभाइन इन्सुलीन बैलों के अग्नाशय(पैनक्रीयाज) से प्राप्त किया गया। फिर पोरसीन इन्सुलीन सुअर के अग्नाशय से निकाला गया। अन्ततः शुद्धतम तौर पर ह्युमन इन्सुलीन अब उपलब्ध है। मगर घबराइए मत बैलों और सुअरों को बड़ी मात्रा में मारकर इन्सुलीन बनाने का तरीका ह्युमन इन्सुलीन बनाने में इस्तेमाल नहीं होता। जेनेटिक इंजीनियरिंग डी.एन.ए. रीकोम्बीनेट तकनीक का इस्तेमाल कर बनाते हैं।
थेथर हो जाए जब बीटा सेल्स तब टेबलेट पर टेबलेट खाते जाइये कुछ नहीं होगा।
मधुमेह, जो कई खतरनाक रोगों की जड़ माना जाता है, महामारी के तौर पर इस देश में फैल रहा है। देश के लोग निठल्ले, बैठे ठाले चुपचाप दूरदर्शन देखने के आदि तो हो ही चुके है, बैठकर रिफाइन्ड सुगर एवं तली हुई चीजों को खाने के शौकीन हो गए हैं। सौगात में मिल रही है यह बीमारी। जो मधुमेह 40 साल के आस-पास हो उसे टाइप 2(टू) मधुमेह कहते हैं। देश के 95%-98% रोगी इसी प्रकार के हैं। बचपन में होने वाले मधुमेह को टाइप 1(वन)कहते हैं। मुख्य बात है कि टाइप वन में पैनक्रीयाज में इन्सुलिन स्त्रावित करने वाली बीटा कोशिकाएं पूर्णतः बरबाद हो जाती हैं। ऐसे मरीजों को बिना इन्सुलीन की सूई के कोई दूसरा चारा नहीं हैं। टाइप 2 में बीटा कोशिकाए कुछ- कुछ बची रहती है और दवाइयों द्वारा उन्हें झकझोर कर इन्सुलिन स्त्रावित करने को बाध्य किया जाता है। मगर इस तरह बीटा कोशिकाओं को झकझोरने की भी एक सीमा होती हैं। एक समय आता है जब वह थेथर हो जाता है और तब टेबलेट पर टेबलेट खाते जाइये कुछ नहीं होगा। आपका ब्लड सुगर हमेशा उच्च रहेगा।
टाइप टू के मरीजों को भी इन्सुलीन की थोड़ी बहुत जरुरत पड़ेगी
हाल में दुनिया में हुए डी सी सी टी ट्रायल और यू के पी डी ट्रायल के नतीजे कह रहे है कि हर हाल में ब्लड सुगर ठीक रखिये, यदि खतरनाक कम्पलीकेशनों से बचना है। इस तरह टाइप टू के मरीजों को भी इन्सुलीन की थोड़ी बहुत जरुरत पड़ेगी। मगर सुई के डर से इन्सुलीन लेने को लोग राजी नहीं होते हैं। यह भ्रम भी न रखें कि एक बार इन्सुलीन शुरु कर देने पर जिन्दगी भर इन्सुलीन लेनी होगी। हो सकता है, कुछ दिन का इन्सुलीन आपको ज्यादा सबल और सुखी बनाए। इन्सुलीन से वजन इजाफे होने का डर, इन्सुलीन रेसीसटेन्ट की अवस्था, इन्सुलीन द्वारा थक्के बनने का डर,इन्सुलीन द्वारा ब्लड सुगर जरुरत से ज्यादा कमने का डर आदि कई समस्याओं और भ्रमजालों में आपको पड़ने की जरुरत नहीं।
यदि चिकित्सक ने इन्सुलीन लेने को कहा है तो अवश्य शुरु कीजिए।
अरटिफिशियल पैनक्रियाज अब उपयोग के लिए तैयार है
हाल में अरटिफिशियल पैनक्रियाज की उपयोगिता पर क्लिनिकल ट्रायल पेश किया गया। इस सिस्टम में एक इन्सुलीन पंप के साथ सेन्सर होता है जो एक लैपटाँप से जुङा होता है। लैपटाँप में विशेष सोफ्टवेयर प्रोग्रामिंग होता है जिसे शोधकर्ताओं ने अरटिफिशियल पैनक्रियाज का नाम दिया है। मशीन में लगा सेन्सर हर 5 मिनट पर स्वत: रक्त सुगर की जाँच करके स्वत: इन्सुलिन की मात्रा निर्धारित करके उसे शरीर में छोङ देता है। इजराईल के एक मेडिकल सेन्टर में 4 टाईप -वन रोगियों पर इस सिस्टम का ईस्तेमाल किया जा रहा है। इस सिस्टम का फायदा यह है कि उम्दा ढंग से रक्त सुगर का नियन्त्रण होता है और हाइपोग्लायसिमिया होने का भी डर नहीं रहता। मगर चमङे में इन्फेक्शन का डर भी बना रहता है।यह सिस्टम इतना मँहगा और दुरूह है कि शायद ही कभी लोकप्रिय हो।
इंसुलीन कितना जरुरी?
ज़रूरत है जल्दी इंसुलीन लेना
इंसुलीन के इंजेक्शन का डर काफी व्यापक है। नई शोधों के अनुसार टाईप-2 मधुमेह के रोगियों को जल्दी इंसुलीन शुरु करनी चाहीए। इससे इंसुलीन को स्त्रावित करने वाले पैनक्रियाज के बिटासेल्स को नवजीवन मिलता है, और पुनः इंसुलीन स्त्रावित करने की क्षमता बढ़ जाती है। अगर आपका सुगर खाने वाली दवाइयों पर नियंत्रित नहीं रह रहा हो तो तीन से छह माह भी इंसुलीन लेने से काफी फायदा होता है।
यह जरुरी नहीं कि एक बार इंसुलीन की सुई शुरु की जाती है तो इसे जीवन भर लेना ही होगा। इंसुलीन शुरु करने पर मधुमेह के मरीजों में नई शक्ति आती है। उनको अपना स्वास्थ्य पहले से अच्छा जान पड़ता है। इंसुलीन का लेना ह्रदय के लिए भी अच्छा है।
भ्रमजालो का साया बहुत गहन है
इंसुलीन को लेकर डायबिटीज के मरीजों में तरह-तरह के भ्रमजालो का साया बहुत गहन है।
कई लोग यह सोचते हैं कि इंसुलीन की सूई लेने से बीमारी पूर्णतः साफ हो जायेगी। सच्चाई यह है कि बीमारी का पूरा क्योर कुछ नहीं है। इंसुलीन केवल ब्लडसुगर को नियंत्रित करता है। जरूरत के अनुसार इसको सदा के लिए या थोड़े समय तक दिया जाता है।
कुछ मरीजों को यह भय सताता है कि एक बार इंसुलीन की सूई शुरू हुई, इसका मतलब जिंदगी भर सूई लेने की विवशता हो जायेगी। खासकर टाइप टू डायबिटीज में कभी-कभी थोड़े समय तक इंसुलीन का देना काफी लाभकारी होता है।
बहुत से मरीजों में एक समय ऐसा आता है जब खानपान, व्यायाम एवं दवाइयों की पूरी मात्रा देने के बाद भी ब्लडसुगर काफी बढ़ा रहता है। ऐसे मरीजों में यदि तीन से छह महीने तक भी इंसुलीन की सूई दी जाये,तो पाया यह गया है कि दवाइयों का असर पुनः आ जाता है और ब्लडसुगर नियंत्रित रहने लगता है। इस तरह समझा जा सकता है कि शरीर में पैनक्रियाज की बीटा कोशिकाओं से जो इंसुलीन स्रावित हो जाता है, वह धीरे-धीरे घटता जाता है। बीटा कोशिकाएं निष्क्रिय हो जाती है या थकान से चूर-चूर हो जाती है। इस स्थिति में दवाइयों की कितनी भी मात्रा दें वह इन कोशिकाओं में इंसुलीन स्रावित नहीं कर पाता। इस स्थिति में यदि इंसुलीन की सूई शुरू की जाती है तो बीटा कोशिकाओं को अत्यंत आराम मिल जाता है और उनमें फिर से स्रावित करने की क्षमता पुनर्जीवित हो जाती है। यही कारण है कि तीन से छह महीने इंसुलीन देने के बाद यदि सूई बंद कर दी जाती है,तब दवाइयां पुनः प्रभावी हो जाती हैं। इसलिए यह समझना जरूरी है कि यदि चिकित्सक आपको इंसुलीन की सूई शुरू करने की सलाह दे रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि जिंदगी भर आपको सूई लेनी ही है।
इंसुलीन को लेकर यह गलत धारणा भी लोगों को है कि खानपान पर नियंत्रण या व्यायाम की जरूरत नहीं है। सच्चाई यह है कि डायबिटीज के नियंत्रण में सबसे मत्वपूर्ण पायदान भोजन का नियंत्रण एवं व्यायाम ही है। इसके साथ इन्सुलीन की मात्रा निर्धारित की जाती है। व्यायाम के इतने ज्यादा गुण हैं जिसका कोई हिसाब नहीं है। इसलिए इन्सुलीन के साथ-साथ इन चीजों से पूर्णतः सतर्क रहना आवश्यक है। कभी-कभी इन्सुलीन शुरू करने पर धीरे-धीरे इसकी मात्रा लगातार बढ़ानी पड़ती है। मरीजों को तब यह डर हो जाता है कि उनकी बीमारी जरूरत से ज्यादा खराब हो गयी है। वस्तुतः ऐसी कोई बात नहीं होती। हर मरीज के शरीर का अपना अलग गणित होता है। किसी का सुगर इन्सुलीन की आठ यूनिट लेने से नियत्रित हो जाता है तो किसी में अस्सी या उससे ज्यादा की मात्रा देनी पड़ती है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। शरीर में जितने इन्सुलीन की जरूरत है, उतनी देनी अतिआवश्यक होती है,
आजकल टाइप टू डायबिटीज में इन्सुलीन के साथ-साथ कुछ दवाइयों को देने का भी चलन है। बहुत से शोधों में इस कम्बाइंड ट्रीटमेंट की महत्ता सामने आई है। यही कारण है कि इन्सुलीन के साथ-साथ चिकित्सक कई बार कुछ दवाइयों को भी देते हैं। डीसीसीटी एवं यूकेपीडीएस ट्रायल ने यह बताया है कि ब्लडसुगर जितना नियंत्रित रहेगा डायबिटीज के दुष्परिणामों से उतना ही बचा जा सकेगा। बाजार में इन्सुलीन के की वैराइटी मौजूद हैं। बोभाइन, पोरसीन एवं ह्यूमन वैरायटी मौजूद हैं। ह्यूमन वैरायटी वोभान या पोरसीन से ज्यादा शुद्द एवं महंगी होती है। विकासशील देशों में बोभाइन एवं पोरसीन इन्सुलीन के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है। इसका कारण मुख्यतः आर्थिक है। वैसे बोभाइन एवं पोरसीन इन्सुलीन भी सुरक्षित एवं असरदार है। इन्सुलीन कोई तिलिस्म नहीं है। यह तिलिस्म बैटिंग एवं चालर्स बेस्ट ने सन 1921 में इन्सुलीन की खोज करके तोड़ दिया था। तबसे अनगिनत लोगों के जीवन की रक्षा इन्सुलीन द्वारा हुई है। शरीर में वस्तुतः यही है असली सोना। इन्सुलीन को लेकर जो भरमजाल फैला है, वह मुख्य समस्या है। इसके कारम सही समय पर मरीजों की चिकित्सा नही हो पाती। बहुत आना-कानी के बाद ही मरीज इन्सुलीन लेने को राजी होते हैं मगर इन्सुलीन लेते ही उनमें नई ताजगी और उष्मा का संचार होता है। जरूरत इस बात की है कि इन्सुलीन को लेकर फैले भ्रमजाल को तोड़ा जाए।
बात बिगड़ने के पहले ही शुरु कर दें इंसुलीन।
इन्सुलीन – अवश्य जानिये इन तथ्यों को
• जब चिकित्सक कहें, इन्सुलीन लेने में आना कानी न करें। मधुमेह की चिकित्सा के दौरान ऐसी स्थिति आती है, जब दवाइयाँ नाकाम हो जाती है। तब इन्सुलीन आपके जीवन में नई आशा और नवजीवन लेकर आता है।
• कितने तरह के इन्सुलीन बाजार में है?
i. रैपिड एक्टिंग इन्सुलीन
ii. इन्टरमिडियेट एक्टिंग इन्सुलीन
iii. प्रीमिक्सड इन्सुलीन
iv. लॉन्ग एक्टिंग इन्सुलीन
• बिफ इन्सुलीन आजकल प्रयुक्त नहीं किये जाते है। नए इन्सुलीन में पोरसीन एवं ह्यूमन टाइप आते हैं। ये दोनों अच्छे हैं। पारेसीन इन्सुलीन ह्यूमन से सस्ता है।
• इन्सुलीन का इन्जेक्शन चमड़े के नीचे दिया जाता है।
• इन्सुलीन का इन्जेक्शन 20 से 30 मिनट खाने के पहले लेना जरुरी है। (रैपिड एक्टिंग इन्सुलीन एनालोग 15 मिनट खाने के पहले या खाने के तुरंत बाद लिया जाता है।)
• इन्सुलीन चिकित्सा से वजन का बढ़ना या थक्का बनने की प्रक्रिया शुरु होने का डर प्रैक्टिकल ढंग में नगण्य है।
• इन्सुलीन को 4 से 8 डिग्री सेल्सीएस पर स्टोर करना चाहिए। देने के पहले हथेलियों से मल कर इसे सामान्य तापमान पर लायें। जिनके पास फ्रिज न हो वे इन्सुलीन को घड़े में रख सकते हैं।
• इन्सुलीन को सूई मरीज को स्वयं लेनी चाहिए।
• इन्सुलीन लीजिए, यह अमॄत है, इसका कोई मुकाबला नहीं (अगर दवाओं से सुगर कन्ट्रोल नहीं हो तो तुरंत शुरु कीजिए)।
• जहां इन्सुलीन दे सकते हैं – पेट में लेने से (चमड़े के नीचे) इन्सुलीन जल्दी शरीर में चला जाता है, उसके बाद बांहो और फिर जांघों एवं कुल्हे के पास इसका शरीर में घुलने का क्रम हैं। इसलिए एक ही एरिया में इन्सुलीन लें, तुरत तुरत एरिया न बदलें। इन्जेक्शन के बाद एरिया का व्यायाम करने से घुलने की दर बढ़ जाती है, जो कि अपेक्षित नहीं है। जिस जगह पर इन्सुलीन आपने लिया है। अगले दिन उस जगह से तीन अंगुली की दूरी पर ही दुसरा इन्जेक्शन लें। जहाँ आप सूई ले सकते हैं।
• कभी कभी थोड़े दिन का इन्सुलीन लेना भी शरीर की मृतप्राय बीटा कोशिकाओं को नया जीवन दे देता है। अतः यह भ्रम हटा दें कि एक बार इन्सुलीन शुरू किया तो जिन्दगी भर इन्सुलीन ही लेना होगा।
• इन्सुलीन चिकित्सा से वजन का बड़ना या थक्के बनने की प्रक्रिया शुरू होने का डर प्रैक्टिकल ढंग में नगण्य है।
• इन्सुलीन शुरु सूई मरीज को स्वयं लेनी चाहिए।
• जिस जगह इन्सुलीन ले रहे हों, उसी के आस पास तक कुछ दिनों तक लें। क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में इन्सुलीन के अवशेषित होने का क्रम अलग-अलग है।
• अगर सम्भव है ग्लुकोमीटर खरीद लें और स्वयं अपने ब्लड सुगर की जांच करें। इसे एसएम बीजी कहते हैं। यह एक आदर्श पद्धित है मोनिटरिंग के लिए।
इन्सुलीन लीजिए, यह अमृत है, इसका कोई मुकाबला नहीं
(अगर दवाओं से सुगर कन्ट्रोल नहीं है तो तुरंत शुरु कीजिए इन्सुलीन पंप)
इन्सुलीन पंप
चीज अच्छी है मगर खर्च आता है ळाख रूपया से ज्यादा
इन्सुलीन पंप अब भारत में भी उपल्बध हो गया है। यह इन्सुलीन लेने की दिशा में एक उल्लेखनीय उपलब्धि समझी जा रही है। इस विधि से इन्सुलीन लेने से मधुमेह का नियंत्रण ज्यादा प्राकॄतिक तौर पर होता है। इसलिए मधुमेह के द्वारा होने वाले दुष्परिणामों से बचने में सहायता मिलती है।
‘इन्सुलीन पंप’ एक मोबाइल फोन की तरह का एक यत्रं है
इसमे केवल फास्ट एक्टिंग इन्सुलीन भरा जाता है। ‘कम्पुयूटराइजड’ डिस्पले एवं बटनों द्वारा शरीर में कितना इन्सुलीन भेजना है, उसे सेट कर दिया जाता है। एक अति महीन सुई पेट में लगा दी जाती है सुई के कनेक्शन पर पतली नली द्वारा इन्सुलीन पंप के मशीन से जोड़ दी जाती है। इस पंप को जैसे लोग मोबाइल फोन को कमर में वेल्ट में बांध कर रखते हैं, वैसे ही लगा दिया जाता है। अब आप दिन भर अपना काम करते रहत हैं। मशीन सेट टाइम के अनुसार लगातार इन्सुलीन शरीर में स्वतः भेजता रहता है।
इन्सुलीन सेट करने के दो तरीके हैं
एक को बेसल सेटिंग कहते हैं। जिसके द्वारा चौबीसों घंटे इन्सुलीन एक निर्धारित मात्रा में भेजी जाती है। दूसरी पद्धति को बोलस सेटिंग कहते हैं। इसमें खाना के बाद जब शरीर को ज्यादा इन्सुलीन की जरूरत होती है, तब अतिरिक्त मात्रा पंप द्वारा शरीर में भेजी जाती है। जब आप इंजेक्शन द्वारा इन्सुलीन लेते हैं तो दिन में एक, दो या तीन बार इन्सुलीन दिया जाता है। यह मात्रा उस समय की मांग को पूरी करती है, किंतु शरीर को इन्सुलीन की थोड़ी बहुत मात्रा की जरूरत हर समय होती है। प्राकृतिक तौर पर शरीर में अग्नाशय द्वारा हर 10 या 14 मिनट पर थोड़ा इन्सुलीन स्रावित होता रहता है। लॉग -एक्टिंग इन्सुलीन के इंजेकशन देने से जो प्रभाव शरीर में आता है वह प्राकृतिक तौर से स्रावित होने वाले इन्सुलीन से समानता नहीं रखता।
इसके फायदे
इन्सुलीन पंप द्वारा जो इन्सुलीन शरीर में जाता है वह लगभग प्राकृतिक जैसा ही है। इस पद्धति द्वारा शरीर में जरूरत से ज्यादा ब्लड सुगर घटने (हाइपोग्यसिमिया) का भी डर नहीं रहता। ब्लड सुगर में ज्यादा उतार-चढ़ाव भी नहीं होता। भोजन के हेर-फेर से ब्लड सुगर में जो बढ़ोत्तरी होती है, उससे भी निपटने में यह यंत्र सक्षम है। इन्सुलीन पंप का प्रयोग करने वाले मरीजों का ग्लायकोसालेट हीमग्लोबीन भी स्थिर रहता है, जो अच्छे नियंत्रण की पुष्टि करता है। इस यंत्र के साथ एक रिमोट कंट्रोल प्रोग्रामर भी आप खरीद सकते हैं इसे पॉकेट में रख सकते हैं और जब इच्छा हो निकाल कर यंत्र की सेटिंग कर सकते हैं।
पाकेट पर भारी है तकनीक
भारत में अभी इस यंत्र की कीमत ढाई लाख है। यदि ग्लुकोज सेंसर मशीन के साथ ले तो यह चार लाख में आता है। ग्लुकोज सेंसर मशीन स्वतः ब्लड सुगर की जांच-चौबिसों घंटे करती रहती है और उसी के अनुसार इन्सुलीन पंप में इन्सुलीन की मात्रा निर्धारित होती है। निश्चित तौर पर तत्काल यह यंत्र सभी लोग खरीद नहीं सकेंगे। केवल धनी व्यक्ति ही इसका उपयोग कर पायेंगे। मगर उम्मीद है कि अगले कुछ सालों के अंदर इसकी कीमत इतनी कम हो जायेगी कि मध्यम आय का व्यक्ति भी इसे खरीद पाये। अभी भारत में मिनीमेड नाम से मेडट्रोनिक इंटरनेशनल कंपनी के द्वारा यह उपलब्ध कराया गया है।
मधुमेह के रोगियों को अब जल्दी इन्सुलीन लेने की सलाह दी जाती है। इन्सुलीन देने के तरीकों में लगातार तकनीकी सुधार हो रहा है, आज इंजेक्शन का लेना लगभग दर्द रहित पेन टेकनीक द्वारा हो गया है। इन्सुलीन पंप का उपयोग अत्यंत सरल एवं सुरक्षित है। मगर इसकी कीमत भारी व्यवधान पैदा कर रही है। चिकित्सा विज्ञान की ऊंची उड़ान जारी है। मगर आज भी मधुमेह के नियंत्रण में सही खान पान और रोज 30 मिनट तेज पैदल चलने से उत्तम कुछ नहीं है। भारत विश्व का डायबिटीक कैपीटल है। छह करोड़ रोगियों में कुछ हजार ही इंसुलीन पंप खरीद सकते हैं। मगर पैदल चलना भगवान ने सबके लिए सुलभ कर रखा है।
ऐसा इन्सुलीन जिसे एक बार दिया जाए तो असर 24 घण्टे तक बना रहे
i. ‘ग्लारजीन इन्सुलीन’ काफी प्रभावी
इन्सुलीन ‘ग्लारजीन’ एक नये किस्म का इन्सुलीन है। अप्रैल 2000 में पहली बार अमेरिका में एफ.डी.ए. ने इसे ‘टाइप-1’ एवं ‘टाइप-2’ डायबिटीज के मरीजों में प्रयोग के लिए सुरक्षित करार दिया। अभी तक बजार में कोई ऐसा इन्सुलीन नहीं था जिसे एक बार दिया जाए तो असर 24 घण्टे तक बना रहे। जो इन्सुलीन बाजार में उपलब्ध ते उनकी कार्यप्रणाली प्राकॄतिक तौर पर पर शरीर में नहीं होती थी और ‘एक्शन’ के बाद असर कुछ घंटे में समाप्त हो जाता था।
मगर इन्सुलीन ग्लारजीन को जब चमडे के नीचे दिया जाता है तो वहाँ माइक्रोप्रीसीपीटेट बन जाता है और बहुत धीर-धीरे 24 घंटे तक रक्त में इन्सुलीन स्रावित होता रहता है। यह शरीर में एकदम नेचुरल ढंग से इन्सुलीन की मात्रा पहुंचाता है जिसके कारण डायबिटीज में बल्डसुगर का नियंत्रण बहुत अच्छे ढंग से होता है, साथ ही सुगर के अत्यधिक कमने का डर भी नहां रहता है। अन्य इन्सुलीनों की अपेक्षा इसकी पूरी मात्रा की जरूरत भी कम होती है। यदि कोई मरीज लेंटे इन्सुलीन की 40 यूनिट ले रहा हो और इस पर ब्लडसुगर नियंत्रित हो तो ग्लारजीन शुरू करने पर पूरी मात्रा में 30 प्रतिशत की कमी करनी पड़ती है।
भारत में इन्सुलीन ग्लारजीन उपलब्ध है। शुरू में इसके 10 मिली. वायल की कीमत करीब 2 हजार थी और नयी पेन तकनीक में यह उपलब्ध नहीं था। इसके कारण यह इन्सुलीन बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सका। अभी हाल मं लैंटसआप्टीसेट नाम से पेन तकनीक में यह इन्सुलीन बाजार में उपलब्ध हुआ है। एक लैंटस आप्टीसेट में करीब 3 मि.ली. इन्सुलीन ग्लारजीन (300 यूनिट) होता है। अभी इसकी कीमत करीब 850 रूपये है। पेन तकनीक में डोज को डायल कर सीधे चमड़े के अंदर पुश कर दिया जाता है। यह अत्यंत सरल, सुरक्षित और दर्दरहित तकनीक है। जिन मरीजों को इन्सुलीन की सूई का भय सताता रहता है, उनके लिए तो यह वरदान है।
कई शोधों में इन्सुलीन ग्लारजीन द्वारा ब्लडसुगर नियंत्रित करना आसान पाया गया है। इसके साथ ही डायबिटीज नियंत्रण के अन्य मानकों को भी प्राक़ृतिक तौर पर रखने में सहायता मिली है। बहरहाल, गर्भावस्था में इस नये इन्सुलीन के उपयोग के लिए उपयुक्त ऐपिडेमियोलाजिकल डाटा नहीं है। इस इन्सुलीन को नाश्ते के समय देना ज्यादा उपयुक्त पाया गया है। ग्लारजीन का उपयोग खाने वाली दवाइयों के साथ किया जा सकता है। आने वाले समय में कई तरह के नये इन्सुलीन एनालॉग यानी इन्सुलीन सदृश्य रसायनों के उपलब्ध होने की संभावना है। डायबिटीज के मरीजों का जीवन इससे ज्यादा सुखमय होगा।
ii. इन्सुलीन डेटीमीर, डेगलुडेक, रीजोड़ेक नए और अत्यन्त प्रभावी एंव सुरक्षित इन्सुलिन हैं।
