डायबिटीज में देशी दवाओं की उपयोगिता

आजकल कई टी.वी. चैनलों पर मधुमेह की देशी दवाओं के विज्ञापन लम्बे समय तक दिखाये जा रहे हैं। आस्था एवं संस्कार चैनलों पर ऐसे विज्ञापन खास तौर पर देखे जा सकते है। इन विज्ञापनों के अनुसार मधुमेह पर नियंत्रण करना बड़ा आसान काम है यदि आप उन दवाओं का प्रयोग करते हैं। देशी दवाओं की उपयोगिता पर पूरी तरह प्रश्न चिन्ह तो नहीं लगाया जा सकता है किन्तु जितना क्लेम किया जा रहा है वह भ्रामक है।

कुछ दवाइयाँ जिनके व्यापारिक नाम डायेबीक्योर, मधुनाशनी,डायबीकान या एमरीप्लस आदि हैं, वस्तुतः कई जड़ी-बूटियों के मिश्रण हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में हुए कुछ शोधों में इन मिश्रणों की उपयोगिता पायी गयी है। डायबिटीज की प्रारंम्भिक या मामूली अवस्था में खान-पान नियंत्रण एवं शारीरिक व्यायाम के साथ इन रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है। डायबिटीज की बढ़ी हुई अवस्था या जब शरीर में इन्सुलीन की कमी है, तब इन रसायनों पर पूर्णतः निर्भर रहना विज्ञान सम्मत नहीं है। इन रसायनों में कई तरह के तत्व रहते हैं।

करेला

करेला के एक्सट्रैक्ट को करेंटीन कहते हैं। नीदरलैन्ड में हुए एक रिसर्च में इसे ब्लड सुगर घटाने में उपयोगी पाया गया है। करेले के बीज में इन्सुलीन जैसे पेपटाइड पाया जाता है। इसलिए करेले को प्लांट इन्सुलीन की संज्ञा दी गयी है।

कुंदरू

कोसिनिया इंडीका जिसे हिन्दी में कुंदरू कहते है, हमारे आस-पास उपलब्ध रहता है। कई लोग इसे सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। यह भी बढ़े हुए बल्ड सुगर को कम कर देता है। खासकर यह ग्लुकोज-6 फास्फेट की कार्य क्षमता बढ़ा मधुमेह में काफी उपयोगी पाया गया है।

विजयसागर

विजयसागर नाम पौधा भी मधुमेह के मरीजों के लिए लाभदायक है। इसमें एपीकाटेसीन नामक रसायन होता है जो शरीर में ज्यादा इन्सुलीन स्रावित कराने में समर्थ है।

गुडमार

जिमनेमा सालवेस्टर जिसे हम गुडमार नाम से जानते हैं। नष्ट हुई बीटा कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखता है। इसके लगातार प्रयोग से कई बार इनसुलीन अच्छे ढंग से कार्य करने लगता है, और बीटा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।

मेथी

मेथी का प्रयोग डायबीटीज के रोगियों में खूब हो रहा है। मेथी में ग्लकटोमान नामक रसायन होता है। यह एक तरह का डायटरी फाइबर है जो आंतो से ग्लोकोज को अवशोषित नहीं होने देता। इससे ब्लड सुगर रक्त में तेजी से नहीं बढ़ता है।

नीम

नीम वृक्ष के पत्तियों से निकाले गये एक्स्ट्रेक्ट के प्रयोग से भी ब्लडसुगर नियंत्रम में मदद मिलती है। यह ग्लुकोज को कोशिकाओं के अंदर ले जाने में मदद करता है।

आवंला एवं बेल पत्र

आवंला एवं बेल पत्र का प्रयोग भी उपयोगी है।

जामुन का बीज, त्रिफला, कालमेघ, कुटकी, पुनर्ववा, मृगराज

खासकर मधुमेह के दूरगामी दुष्प्रभावों को रकने में जामुन का बीज, त्रिफला, कालमेघ, कुटकी, पुनर्ववा मृगराज जैसे पौधों से निकले रसायन जो एंटी आक्सीडेंट से भरे हैं काफी उपयोगी पाये गये हैं। एंटी आक्सीडेंट शरीर में बने जहरीले रसायन को शरीर के बाहर करते हैं एवं शरीर की महत्वपूर्ण ढंग से रक्षा करते हैं। इन आयुर्वेदिक रसायोनों में बायोफ्लामोनयोयड, फास्फेट, क्रोमियम, कॉपर, मैगनीज एवं मैग्नेशियम आदि बुहतायत से मिलते हैं जो मधुमेह द्वारा होने वाली नशों, गुर्दे, आँखों की खराबी रोकते हैं जनरल ऑफ एशोसिएशन ऑफ फिजिशियन-इंडिया में इन देशी रसायनों की उपयोगिता पर कई शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। इन शोधपत्रों के आधारपर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी इन रसायनों का प्रयोग शुरू हुआ है।

देशी घी की ताकत

एक भीड़ भरी ट्रेन में एक देहाती शुद्ध देशी घी का एक बङा सा कनस्तर लेकर चढा। कनस्तर को डिब्बे में रखने की जगह नहीं थी। तब उसने उसे ट्रेन रोकने वाली जंजीर से लटका दिया। संयोगवश गाड़ी उसी समय रूक गयी। मूंछो पर ताव देते हुए वह सहयात्रियों से गौरान्वित होते हुए बोला – देखी देशी घी की ताकत!

सही बात क्या है?

मेरे अनभव में यह बात आती है कि यदि आपका बल्ड सुगर खाने के दो घंटे बाद 140 से 200 मि.ग्रा. के बीच है (इम्पेयरड ग्लुकोज टालरेन्स) तो इन रसायनों का उपयोग लाभकारी है। मधुमेह के गम्भीर मरीजों में केवल देशी दवाओं का प्रयोग खतरनाक है। आज की सभ्यता विदेशी मानकों के पीछे पागल है। इस दौर में देशी और आयुर्वेदिक दवाएं निरापद एवं बिना साइड इफेक्ट के समझी जाती हैं। देशी होना शुद्धता की गारंटी हो गया है। यह सोच मेरी दृष्टि में अच्छा है मगर जो देशी है वह हर मरीज में उपयुक्त नहीं हो सकता। यही बात इन आयुर्वेदिक दवाओं के साथ लागू होती है। मधुमेह के मरीजों को इस तथ्य को अच्छी तरह समझने की जरूरत है।

इस घटना की आत्मा का विश्लेषण करें और देशी दवाओं की ताकत समझें तो मधुमेह के इलाज में हमारी सोच ज्यादा वैज्ञानिक होगी।