‘हाइपोग्लायसिमिया’ खतरनाक है। थोड़ी सावधानी से इससे बचा जा सकता है।

‘हाइपोग्लाययसिमिया’ को जरुर जानें

‘हाइपोग्लाययसिमिया’ एक ऐसा शब्द है जिसे हर डायबिटीज के मरीज को जानना अतिआवश्यक है। हाइपो का मतलब है ‘कम’ एवं ग्लाययसिमिया का मतलब है ‘सुगर की मात्रा’। हाइपोग्लाययसिमिया इस तरह से रक्त में अत्यधिक कम सुगर होने को कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका अनुभव कभी-ना-कभी हर डायबिटीज के मरीज को होता ही है। यह एक जानलेवा इमर्जेंसी है मगर मरीज थोड़ी सी जानकरी रखकर इससे बच सकते है।

रक्त में ब्लड सुगर अगर 60 मिग्रा से ऊपर रहे तो साधारणतया कोई लक्षण नहीं आता है मगर 50 मिग्रा के आसपास हो जाये तो लक्षण शुरू हो जाते हैं। आटोनोमिक सिस्टम के उद्दीप्त होने के कारण प्रारंभिक लक्षण शुरू होते हैं।
अगर आप इंसुलीन की सुई ले रहे हैं या डायबिटीज की दवाइयां खा रहे हैं, तो इन लक्षणों के आते ही सतर्क हो जायें।

– खूब पसीना आना
– अचानक कमजोरी का अहसास
– हाथों में कंपन
– खूब बेचैनी
– घबराहट
– धड़कन का बढ़ना

क्या करें तुरत ?

अगर इन लक्षणों के समय तुरंत ग्लुकोज, मधु, शक्कर या कोई मीठी चीज खा लें, तो तुरंत आराम मिल सकता है।

जैसे ही ऊपर बताये गये लक्षण शुरू हों और आप कोई काम कर रहे हों तो तुरत बंद कर दें तथा शक्कर के दो ढेले, मीठे बिस्कुट, दो चम्मच मधु, फल का रस, ग्लुकोज, मिश्री आदि तुरत खायें। डायबिटीज की सूई या दवा तुरत मत लें। चिकित्सक से सलाह लेकर फिर आगे की यात्रा शुरू करें।
 
जानकारी के अभाव में कई बार मरीज इन लक्षणों को समझ नहीं पाते। इस बीच मस्तिष्क की कोशिकाओं को ग्लुकोज मिलना बंद हो जाता है और दूसरे लक्षण भी आने लगते हैं।

जैसे:
– सिरदर्द
– आंखों का धुंधलापन
– असामान्य व्यवहार
– चक्कर
– पागलों जैसी हरकत आदि।

इस समय भी यदि शरीर में ग्लुकोज नहीं पहुंचा तो मिरगी जैसा दौरा हो सकता है और अंतत मरीज बेहोश हो जाता है।

‘हाइपोग्लायसिमिया’ के ये लक्षण हाइपोथालमस में अवस्थित ग्लुकोज-संवेदी कोशिकाओं के उद्दीप होने से शुरू होतो हैं और यह उद्दीपन हर मरीज में भिन्न ब्लड सुगर की मात्रा पर निभॆर करता है। जिन मरीजों का ब्लड सुगर खूब अच्छी तरह नियंत्रित रहता है, उनमें यह देखा गया है कि खूब कम ब्लड सुगर पर भी उनमें लक्षण नहीं आते। इसके ठीक उलटा जिनका नियंत्रण सही नहीं है, उनमें 70 मिग्रा की मात्रा पर भी ‘हाइपोग्लायसिमिया’ के लक्षण शुरू हो सकते हैं।

मरीजों को यह जानना जरूरी है कि ‘हाइपोग्लायसिमिया’ होता क्यों है?

शुरुआती दौर में दवाइयां लेने से ऐसा हो सकता है। कई बार लोग भोजन नहीं लेते और निधारित मात्रा में डायबिटीज की दवाइयां लेते रहते है या जरूरत से ज्यादा व्यायाम करलेते हैं, तब वही मातरा शरीर में ज्यादा इंसुलीन निकाल कर ब्लड सुगर को सुखा कर कम करदेती है और तब मरीज बेहोश हो जाता है। दवा की क्या सही मात्रा होगी, कई बार यह ट्रायल करके ही पता चलता है, इसलिए चिकित्सक शुरू में ही हाइपोग्लायसिमिया के बारे मरीज को जानकारी देते हैं।

हाइपोग्लायसिमिया का निदान करना सरल होता है। डायबिटीज के मरीज में अचानक उन लक्षणों का आना, उस समय ग्लुकोमीटर से ब्लड सुगर 50 मिग्रा के आसपास मिलना एवं ग्लुकोज देते ही चमत्कारी ढंग से सुधार होना इस सि्थति को स्पष्ट कर देता है।

डायबिटीज के मरीजों को इसलिए अपने साथ पॉकेट में ग्लुकोज या कोई मीठी चीज रखनी चाहिए। साथ में एक काडॆ भी रखना चाहिए जिसमें यह लिखा हो कि वे डायबिटीज के मरीज हैं। अमुक दवाइयां ले रहे हैं और उनके डॉक्टर का टेलीफोन नंबर फलां है।

मरीज के परिवार वालों को भी हाइपोग्लायसिमिया के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

बहुत सी पुरानी दवाइयां बहुत लम्बे समयतक ब्लड सुगर काफी कम करती रहती हैं और ‘हाइपोग्लायसिमिया’ के लक्षण बार-बार होने की संभावना रहती है। खास कर डाइबनीज एक ऐसी दवा है। नयी दवाइयां थोड़े समय तक काम करती हैं (जैसे ग्लीमीपराइड, गिलिपीजाइड, गलकालाजाइड) और उनसे ‘हाइपोग्लायसिमिया’ का खतरा कम रहता है। नयी किस्म के इंसुलीन जैसे- लिसप्रो, ग्लारजीन, एसपाटॆ आदि से भी ‘हाइपोग्लायसिमिया’ का खतरा कम रहता है। ‘हाइपोग्लायसिमिया’ से पीड़ित मरीज में इंट्रावीनस प्रतिशत 50 मिली ग्लुकोज तुरत फायदा पहुंचाता है। ग्लुकागोन की 1 मिग्रा की सूई इंट्रामसकुलर देने से भी रक्त में ग्लुकोज तुरत बढ़ता है। शिक्षित मरीजों की फैमिली इस सूई को घर में रख सकती है।