बरनाड शाँ ने कहा था- समाज ढेर सारा पैसा पैरों को काटने के लिए डाक्टर को देता है मगर उसके बचाव पर कुछ नहीं करता।
मधुमेह के रोगी सावधान – अपने पैरों का विशेष ध्यान रखें।
मधुमेह के रोगियों को पैरों में घाव होने और गैंगरीन ( पाँव का सड़ जाना) होने का काफी खतरा रहता है। अक्सर तब उनके पैरों या उंगलियों को काटना पड़ता है। इसके कारण खर्च काफी बढ़ जाता है। 1990 में स्वीडेन में ‘डायबिटीक फुट’ के कारण करीब 14,527$ औसत रुप में खर्च हुए और अमेरीका में केवल पैरों के ईलाज पर 150 मिलीयन डालर खर्च करने पङे। भारत में भी मधुमेह के कारण पैरों की बीमारी एक भारी समस्या है। मगर सही स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा इस दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
डायबिटीज में पैरों की समस्या अहम है।
• विश्व में प्रत्येक 30 सेकेन्ड में एक पैर को डायबिटीज के कारण काटना पड़ता है।
• पैरों के एमपुटेशन (पैरों का काटना) का 70% कारण डायबिटीज है।
• प्रत्येक साल 40 लाख लोगों को डायबिटीज के रोगियों में एक को पैर के घाव संबधित समस्या से गुजरना पड़ता है।
• यदि सावधानी रखी जाए तो 85% एमपुटेशन को बचाया जा सकता है।
• विकासशील देशों में डायबिटीज के लिए उपल्बध स्रोतों का 40% डायबिटीक फुट बीमारी में खर्च हो जाता है।
• पैर में एक छोटे से घाव से डायबिटीक फुट बीमारी शुरु होती है।
डायबिटीज पूरी दुनिया में पैरों की बर्बादी का एक महत्वपूर्ण कारण है। पैरों के सड़ने के कारण डायबिटीज के मरीजों के पैरों को कई बार काटना पड़ता है । डायबिटीज में पैरों की समस्या मुख्यत: नसों की खराबी (न्यूरोपैथी) एवं पैरों में रक्त प्रवाह कम होने से होती है (इसचिमिया)।
मरीजों में दर्द का संवेदन धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। खराब किस्म के जूतों के कारण भी कई बार घाव बनने लगता है। ऑटोनामिक नर्व की खराबी से पसीना कम बनता है, पैर रुखे हो जाता हैं, फट जाते हैं और जल्द संक्रमण का खतरा हो जाता है।
माइक्रो वासकुलर खराबी के कारण नसों को पोषक तत्व नहीं मिलता है।
सिमपैथिक सिस्टम की खराबी से पूरा ऑक्सीजन पैरों को नहीं मिलता। ‘हाई प्रेशर जोन’ में पैरों में न्यूरोपैथिक अल्सर बन जाते हैं। अगर खून का प्रवाह पैरों में जाने वाली रक्त वाहिनियों की खराबी से रुकता है तो ‘गैनग्रीन’ (पैरों का सड़ना) शुरु हो जाता है।
साल में कम से कम एक बार डायबिटीज के मरीजों के पैर की पूर्ण जाँच-पड़ताल होनी चाहिए। वैसे तो कई मंहगी मशीनों की सहायता से जाँच की जाती है मगर एक साधारण मोनो -फिलामेंट द्वारा भी संवेदनशीलता की जाँच की जा सकती है। हाथों द्वारा खून की नलियों की प्रवाह क्षमता परखी जा सकती है। एनकल ब्रैकियल इंडेक्स किसी भी रक्तचाप नापने वाली मशीन द्वारा निकाला का सकता है। पैरों की जाँच-पड़ताल के लिए स्वयं ठीक से देखें कि कहीं क्रैक, घाव, चमड़े का रंग परिवर्तन, असंवेदनशीलता, पैरों का गर्म होना, खून की नली का फूल जाना जैसे लक्षण तो नहीं आ गये हैं। फिर जुते को ठीक से देख लें। जूता ऐसा न हो की पैरों को काटता रहे। जूता ज्यादा टाईट न हो। पैरों को आग, रेडियेटर, गर्म चीजों से दूर रखें। पैरों में कार्न, कैलस(चमड़े का मोटा होना) की सही देखभाल जरुरी है। नाखूनों को काटने पर भी सतर्क रहें। नंगे पैर पैदल न चलें। कुशन वाले स्पोर्टस जूते का इस्तेमाल करें। पैर की अंगुलियों की जगह ठीक से सुखायें। अपने पैरों को प्रतिदिन गुनगुने पानी और साबुन से धोयें। इन हिदायतों का सही ढ़ग से पालन किया जायेगा तो ‘डायबिटीक फुट’ से बचा जा सकता है। धूम्रपान का असर भी बहुत खतरनाक होता है। इससे पैरों में गैनग्रीन होने का खतरा बढ़ जाता है।
वे रोगी जो हाई रिस्क में आते हैं
• जिनको नसों की खराबी हो गयी हो और इसके कारण छूने पर ठंडा-गर्म का अहसास न होता हो।
• जिनके पैरों के खून की नली संकरी हो गयी हो।
• जिनके पैरों में डिफोरमीटी(विकलांगता) हो या कैलस हो।
• जिनके गुर्दों में खराबी हो गयी हो।
• ज्यादा उम्र वाले रोगी
• पैरों में क्रैक्स, फिशर या इन्फेक्शन हो गया हो और खास कर रोगी को इसका पता न चले, पैरों के चमड़े खुब चमकदार हो गये हों। पैरों में जो फैट का पैड होता है वह गल गया हो। या पैरों में ऑटोनामिक न्यूरोपैथी के कारण रुखे हुए चमड़े हों और पसीना न आता हो।
• मोटर न्यूरोपैथी के कारण चप्पलों को पकड़ पाना मुशकिल हो रहा हों।
• जो रोगी नंगे पाँव चलते हों।
• जो रोगी ज्यादा शराब पीते हों।
पैरों का नियमित जाँच जरुरी है।
• रोज अपने पैरों को स्वयं देखिए। कोई भी घाव, फुन्सी या सूजन हो, नाखुन का या चमड़े का रंग बदला हुआ हो, उस जगह पर टिसटिसाहट हो, पैरों में कार्न(चमड़े का खुब मोटा हो जाना) हो, या छूने से कुछ पता न चलता हो तो तुरंत चिकित्सीय सलाह लीजिए।
हिदायतों पर ध्यान दें –
• धुम्रपान न करें। इससे पैरों के खून की नली संकरी होती है और रक्त प्रवाह कम होने से घाव होने से ग्रैंगरीन होने का डर बढ़ जाता है।
• सही जूता चुनें।
• फटे या पुराने जुतें न पहने। जुता ज्यादा ढीला न लें। जुते का सोल कड़ा होना चाहिए। एड़ी के चारों ओर का भाग मजबुत होना चाहिए। इसके आगे का हिस्सा ऊंचा और गोल होना चाहिए।
क्या करें:
i. अपने पैरों को रोज एक बार देखिए कि कहीं कोई खरोंच, फोका, अल्सर, रंग परिवर्तन, सूजन, या घाव तो नहीं है। यदि ऐसा है तो तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक से मिलें। पैरों के नीचे (तलवे) को देखने के लिए दर्पण का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ii. पैरों की रक्षा के लिए सही साइज का आरामदेह जूता या चप्पल घर के भीतर भी अवश्य पहनें।
iii. अपने जूते को पहनने से पहले देख लें कि उसमें कोई कंकड़, पत्थर या नुकीली काँटी आदि तो नहीं है।
iv. जूता खरीदना हो तो शाम के समय खरीदें। ऐसा इसलिए की शाम तक पैरों में ज्यादा फैलाव सूजन के कारण हो सकता है। उसी साइज का जूता हो जो न ज्यादा टाइट हो न ज्यादा ढीला।
v. मोजा पहनना चोट से बचाव करता है। मोजा ज्यादा टाइट न हो और उसमें छेद न हो। मोजे को रोज धोयें।
vi. रोज अपने पैरों को साबुन एवं पानी से धोएँ। उँगलियों के बीच भी अच्छी तरह साफ करें। पैरों को फिर अच्छी तरह सुखाएँ। तेल या लोशन का प्रयोग कर चमड़े को नरम रखें।
vii. पैरों के उँगलियों के नाखून को सीधा-सीधा काटें।
viii. यदि पैरों मे घाव हो तो साफ-सुथरी ड्रेसिंग द्वारा ढक कर रखें।9. साल में एक बार पैरों की जाँच डायबिटीज के विशेषज्ञ से कराएँ।
क्या न करें:
i. नुकिले, हाईहील वाले, स्ट्रेपलेस एवं बैकलेस जूतों का प्रयोग न करें।
ii. टाईट जूते कभी न पहनें।
iii. पैरों को धोते वक्त ख्याल रखें की पानी ज्यादा गर्म न हो।
iv. हीटर या हॉट बोतल का प्रयोग पैरों को गर्म रखने के लिए न करें।
v. नंगे पैर कभी न चलें। अगर धार्मिक या रीति-रिवाजों के कारण नंगे पैर चलना हो तो खूब सावधानी से चलें। गर्म सतहों पर कभी न चलें।
vi. पैरों का ईलाज स्वयं रेजर ब्लेड या कोर्न मेडीसीन से न करें। इस तरह की समस्या हो तो विशेषज्ञ से सलाह लें।
vii. अधिक वजन या मुटापा को रोकें।
viii. धूम्रपान कदापि न करें इससे पैरों में सुचारु रुप से रक्त पहुँचाने में बाधा होथी है। जिसके कारण अल्सर होने की सम्भावना बढ जाती है।
ix. परों में ’ज्वेलरी’ न पहनें।
याद रखें! परों की समस्या यदि दर्द रहित भी है तो भी यह काफी खतरनाक साबित हो सकती है।
पैरों की देखभाल के लिए प्रयुक्त जाँच:
वासकुलर डापलर
• इससे एंकल/ब्रैक्रिल इन्डेक्स निकाल कर टिवियल आरटरी के कैलसिफिकेशन का जायजा ले सकते हैं।
• पेरीफेरल रक्त वाहिनियों के जमाव की सूचना।
मोनोफिलामेन्ट टेस्ट
• 10 ग्रा. मोनोफिलामेन्ट एक सरल जाँच है जिससे पैरों की क्या स्थिति है, पता कर लेते हैं।
सेनसीटोमीटर(बायोथेसीओमीटर)
• वाईवेरेशन परसेपशन एवं हीट-कोल्ड-पेन परसेपशन के लिए।
• कंपन की संवेदनाशीलता के द्वारा किस पैर में घाव होने का डर है पता किया जाता है।
• गर्म / ठंडा, दर्द आदि की संवेदनाशीलता द्वारा पैरों का जायजा लेते हैं।
पीडोग्राफी (प्रैस्टो-स्कैन)
• पैरों पर दबाव का पैटर्न पता करते हैं। न्यूरोपैथी हो तो पैरों में दबाव बढा हुआ आता है। सही जुते, पहनने से किसी खास जगह पर तेज दबाव नहीं पड़ता और घाव होने की संभावना नहीं रहती ।
ए.बी.इन्डेक्स
• पैरों में रक्त का प्रवाह कैसा है यह जानना इस टेस्ट द्वारा सम्मभव है। इसमें डॉपलर की सहायता से बैक्रियल(ऊपरी) एवं पोस्ट टिबियल आरटरी के पास रक्तचाप नाप कर उसका रेशीयो निकालते हैं।
सामान्य – 0.9 – 1.2
0.5 से कम – रक्त का प्रवाह गंभीर रुप से बाधित है।
1.2 से ज्यादा – मेडियल कैलसिफिकेशन है।