एक डायबिटीज के मरीज हो हाल में हाई ब्लडप्रैशर का भी रोग हो गया। 5 साल पहले डायबिटीज होने के कारण मीठी चीजों से परहेज चल ही रहा था। हाल में 160-100 प्रैशर हो जाने से परेशानी और बढ़ गयी। मैने उनसे कहा कि प्रैशर की दवा के साथ अब नमक भी बहुत कम लीजिए। इस सलाह से उनको बड़ी झल्लाहट हो गयी। बोले यह तो हद ही हो गई। पहले सुगर बंद करवाया तो थोड़ा नमक खाने से जिन्दगी रंगीन होती थी। अब यदि नमक भी न खाएं तो जिन्दा रहे किस लिए यह बड़ी गम्भीर समस्या थी मगर उनकी झुझलाहट का मेरे पास कोई हल नही था।
हाल के दिनो में नमक कम खाने के लिए अमेरीका और ब्रिटेन में भारी जागरूता पैदा की जा रही है। न्यूयार्क में तो नेशनल साल्ट रिडक्शन इनिशियेटिव (एन.एस.आर.आई) संस्था सरकार और लोगों के पीछे हाथ धोकर पड़ गयी है। अमेरीका में स्ट्रोक (लकवा), हाई-ब्लडप्रैशर और हार्ट ऐटेक से लोगों में तबाही मची हुई है और अरबो डालर उन मरीजों के ईलाज में खर्च हो जा रहे हैं। दुनिया के अन्य देशों में, खासकर भारत में भी समस्या विकराल रुप धारण कर चुकी है। इस भारी समस्या से निजात पाने में नमक की मात्रा कम कर देना एक अत्यन्त प्रभावी कदम है। भारत में हम लोग प्रतिदिन औसतन 12 ग्रा0 नमक खा जाते है (प्रति व्यक्ति) जिसमे करीब 4800 मि0ग्रा0 सोडियम होता है। भोजन में प्रतिदिन नमक की मात्रा 6 ग्रा0 से (यानि एक बड़े चम्मच भर) ज्यादा नही होनी चाहिए। अनुमान लगाया गया है कि यदि इसकी मात्रा थोड़ी भी कम कर दी जाए तो सलाना नब्बे हजार लोगो को हार्ट ऐटेक से और साठ हजार लोगों को ब्रेन स्ट्रोक (लकवा) से बचाया जा सकता है (अमेरीका में)। नमक की मात्रा कम करना इन बिमारियों से बचने में उतनी ही मदद करता है जितनी मोटापे को हटाने, चर्बी की मात्रा नियन्त्रित करने या सिगरेट छोड़ने से हम फायदा पाते है। यह जानकारी कोई नयी नही है मगर इस समय इस विषय परद जागरुकता का प्रवाह नया जरुर है। नमक को भोजन में कम करना आसान काम नहीं है। न तो हम सब्जी या दाल फिकी खा सकते हैं और न ही सालाद बिना नमक के हमको अच्छा लगता है। बाहर से नमक को एक्स्ट्रा न खाना तो फिर भी संभव है। भोजन में कब, कहां और कितना नमक छुपा हुआ है, यह तो एक रहस्य ही है। वस्तुतः 75 प्रतिशत नमक तो हम अनजाने में ही खा जाते हैं और वही हमारा काल बन रहा है। हाल के दिनों में भारतीय लोगों के भोजन में नमक ज्यादा खाने की आदत में 50 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो गयी है। इसके लिए हमारी फुड इन्डस्ट्री और टी0वी0 के विज्ञापन जिम्मेवार है। छोटे शहरो में भी रेस्ट्रोरेन्टों में खाने का रिवाज बढ़ता जा रहा है। वहां के भोजन में नमक ज्यादा होता है। यदि दिन में तीन बार खाना आप रेस्टोरेंट में खा ले तो करीब 15 ग्राम नमक शरीर में चला जाता है। आधुनिक जीवन में ज्यादा नमक शरीर में जाने का मुख्य स्रोत फास्ट-फुड कलचर है। डिब्बे में बन्द भोज्य सामग्री, प्रोसेस्ड और रिफाइन्ड फुड और तथाकथित ये आलु के चिप्स और कुरकुरे जहर से कम नहीं है। साउसेस और सूप और नूडल्स जैसे टेस्टी फुड नमक यानि सोडियम लबालब भरे होते है. एक सैन्डविज यदि दो पीस ब्रेड के साथ आप खाते हैं तो 3 ग्राम नमक शरीर में चला जाता है।
सभी तरह के बादाम हेल्दी फुड है मगर हमारी आदत हो चली है कि हम साल्टेड बादाम खाना पसन्द करते हैं। आलू के चिप्स भले ही शाहरुख खान टी0वी0 पर बेचे, याद रखियेगा कि वह बड़ा खतरनाक फूड आइटम है। कई हस्तियाँ चिप्स टाइप के आयटमों बेचवा कर हमारे बच्चों का हेल्थ चौपट करवा रहे हैं । राजधानी या हवाई जहाजो में परोसा जाने वाला भोजन नमक से ओवर फ्लो रहता है। हमारे देश में अभी वैसी कोई संस्था ही नही है कि इन भोज्य पदार्थो में कितना नमक डालना जायज है, इसे नियन्त्रित करे। इस मामले में ब्रिटेन सबसे आगे है। ब्रिटेन में सरकार ने नियम बनाकर सभी तरह के फूड आइटमो में नमक की मात्रा 20 प्रतिशत तक कम करवा दी है। शुरू में तो फूड इन्डस्ट्री में इस कानून को लेकर बड़ा बवाल हुआ, मगर अब इसका सीधा फायदा जनता को हो रहा है। नमक कम खाने का विजडम हमारे ऋषियों को पता था। व्रत एवं त्योहारों पर उपवास करना या बिना नमक के भोजन करने की परम्परा को शुरू किया था हमारे ऋषियों ने। यह बहुत बड़ा विजडम और परले दरजे का साईन्स था जिसे अब अमेरीका को समझ में आया है। भारत में हार्ट ऐटेक, हाई ब्लड प्रैशर और स्ट्रोक जब बुलन्दी की ओर बढ़ रहे हैं तो यह यक्ष प्रश्न हमें बैचेन करता है कि क्या यहाँ की फुड इन्डस्ट्री को ऐसे फुड आइटम बनाकर बेचना चाहिए जो नमक की अधिकता से हमारा जान ले ले। साईन्स आज साफ कहता है कि यदि भोजन में प्रतिदिन एक ग्राम नमक भी हम लें तो एक दशक में करीब दो लाख लोगों की जिन्दगी बचेगी। समय आ गया है हम भी यह समझ ले कि कम नमकीन खाना से हमारी जिन्दगी बदहवास नही होगी बल्कि हमारे हेल्थ को एक नयी उड़ान मिलेगी।