डॉ स्वीटेन निशान ने सन 2007 में डायबिटीज में मरीजों में रोजीग्लीटाजोन दवा के प्रभाव में एक मेटाएनालाइसिस द्वारा यह पाया कि 43 प्रतिशत मरीजों में यह हार्ट अटैक का कारण हो सकता है। मेटाएनालाइसिस विभिन्न शोधों का निचोड़ होता है। यह शोध सन 2007 में ही मई महीने में के न्यू इंग्लैंड जनरल आफ मेडिसीन में छपा था। इस शोध में प्रकाशित होते ही अमेरिका में करीबन 3.5 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का बिजनेस करने वाली इस दवा का मार्केट रातों रात चौपट हो गया।

अमेरिका में किसी भी दवा को बाजार में आने के पहले एफडीए संस्था कड़ी जांच पड़ताल करती है और करीब ग्यारह साल पहले ग्लैक्सोस्मीथलाइन कंपनी द्वारा एवेंडिया नाम से रोजीग्लीटाजोन दवा को बड़े धूमधाम से अमेरिका में उतारने की अनुमति एफडीए ने दी थी। डॉ निशान के मेटाएनालाइसिस ने एफडीए के विजडम पर भी सवालिया निशान लगा दिया। कठघरे में खड़ी एफडीए ने तब दो साल चलने वाली सीनेट रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा करने की सोची। कमेटी आफ फाइनेन्स आफ अमेरिका सिनेट ने रोजीग्लीटाजोन दवा पर दो साल तक गहन छानबीन की है और इसकी वृहत रिपोर्ट फरवरी 2010 के अंतिम सप्ताह में प्रकाशित कर दी गई है। सिनेट कमेटी के अध्यक्ष सेन मैक्स बाउक्स एवं रैंकिंग मेम्बर सेनचुक ने निष्कर्ष में कहा है कि इस दवा के प्रभाव से डायबिटीज के मरीजों में सीरियस हेल्थ रिस्क हर्ट अटैक एवं हर्ट फैल्यर होने का हो सकता है। इल रिपोर्ट ने पुनः ग्लैक्सोस्मीथ लाइन कपंनी की एवेंडिया दवा के बाजार में बने रहने पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

कंपनी के प्रतिनिधियों ने मगर डा नशान के मेरा एनालाइसिस और सिनेट कपंनी की रिपोर्ट को भ्रामक और तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया है। हैरानी की बात है कि उन्होंने दो लाख पचास पेजों की डाक्यूमेंट एफडीए को दवा के फेवर में उपलब्ध कराया है। इतने पेजों को पढ़ने में ही कई महीने निकल जायेंगे। इसी महीने एफडीए के दो सदस्यों ने ऐवेंडिया को बैन करने की बात की है। मगर एफडीए के अध्यक्ष ने कहा हैकि 2010 तक दवा के बैन करने के बारें में कोई निर्णय नहीं किया जायेगा। इसके लिए एफडीए ने पहले ही ब्लैक बाक्स चेतावनी जारी कर रखी है। इसके तहत हृदय रोग से पीड़ित डायबिटीज के मरीजों में बेहद सावधानी से इस दवा का प्रयोग करने की सलाह है। भारत में दवा कंट्रोल करने वाली सरकारी एजेंसी का कहना है कि जब तक अमेरिका में यह दवा बैन नही की जाती, तब तक भारत भी कोई कदम नही उठायेगा। भारत में ग्लैक्सो स्मीथ लाइन रोजीग्लीटाजोन को विंडिया एवं मेटफारमीन के साथ विंडामेट नाम से बेचती है।

कई अन्य कंपनियां भी रोजीग्लीटाजोन बेच रही हैं। ट्राईग्लुकोरेड, ट्राइक्लाजोन जैसी दवाइयों में भी राजीग्लीटाजोन मिला हुआ है। रोजीग्लीटाजोन दवा को इंसुलीन सेंसीटाइजर के नाम से जाना जाता है जब यह दवा बाजार में आयी थी तो इसको चमत्कारी कहा गया था और सुगर के नियंत्रण के साथ-साथ लिपिट प्रोफाइड में भी सुधार की बात की गई थी। एक दशक से ज्यादा हो गये और इस दवा को करोड़ों मरीजों ने खाया है। और खा रहे हैं। एक आकड़े के अनुसार सन 1999 से अब तक 88,000 लोगों में हर्ट अटैक होने के कारण रोजीग्लीटाजोन रहा है। ग्लीटाजोन ग्रुप की ही दूसरी दवा पायोग्लीटाजोन को अभी बेहतर माना जा रहा है। पायोज, पायोनार्म या पायोग्लीट ट्रेड नेम के अलावा ट्राइवेट, ट्राइग्लीमी परेक्स ट्राइपराइड दवा में भी पायोग्लीटाजोन रहता है।

यह तो तय है कि यिद डायबिटीज के मरीज में शरीर में सूजन हो या हार्ट फेल्योर की अवस्था हो तो यह दवा भी जहर की तरह काम करती है। रोजीग्लीटाजोन अच्छा है कि पायोग्लीटाजोन इस पर टाइड ट्रायल चल रहा है, जिसकी अंतिम रिपोर्ट 2014 में ही मिल सकेगी। मेडिकल साइंस में आजकल यह पता करना कि कौन सी दवा कब तक सुरक्षित रहेगी, बहुत मुशिकल हो गया है। राजीग्लीटाजोन द्वारा के फभेवर में डी हजारों आंकड़े है और सही मरीजों में सतर्कता पूर्वक इसके प्रयोग लाभदायक ही होता है। यही कारण है कि एफडीए इस दवा को अमेरिका में बैन करने से कतरा रही है। इस समय जो डायबिटीज के मरीज इस दवा को खा रहे हैं उन्हें अपने चिकित्सक से पुछ लेना चाहिए कि यह दवा उनके लिए सुरक्षित है या नहीं किसी मरीज के लिए यह खतरनाक हो सकता है तो किसी के लिए लाभदाययक। वैसे अच्छा है कि इससे बेहतर दवा पायोग्लीटाजोन का उपयोग शुरू किया जाये।