एक नजर:

यह अनुमान किया गया है कि अभी भारत  में करीब  70 मिलीयन  (7 करोड़ ) लोगों को मधुमेह की बीमारी हो चुकी है। जिसमें करीब 98% लोग ‘टाइप-2’ डायबिटीज से प्रभावित हैं। और यही स्वरुप इस देश की अहम समस्या है। दो द्शक पहले मधुमेह की व्यापकतादर ग्रामीण क्षेत्रों में 1.5% तथा शहरी क्षेत्रों में 2.1% पायी गयी थी; अब ग्रामीण क्षेत्रों में 12% तथा शहरी क्षेत्रों में 20% तक जा पहुँची है। यह भी विचारणीय प्रश्न है कि 2025 तक भारत मधुमेह 170% की दर से बढ़ेगा, यह विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है। जिस तेजी से मधुमेह भारत में फैल रहा है उस अनुपात में हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था समस्या से निबटने में बिल्कुल पंगु है।

सच्चाई है कि हमारा सिस्टम मधुमेह एवं ह्र्दयाघात जैसी मार्डन बीमारियों के ईलाज एवं रोकथाम के लिए पूर्णतः नाकाम है। इनकी पूरी दॄष्टि संक्रामक रोगों की और केन्द्रित है। निश्चित रुप से अभीऐसा कोई माहौल नहीं बना है कि सिस्टम हमारी जनता को यह बतायेगा कि किस तरह मधुमेह से हम बच सकते हैं। मधुमेह के कारण होने वाले अन्धेपन, किडनी फैल्यर, पैरों का एम्पुटेशन(काटना), डायबिटीक हार्ट रोग, गर्भावस्था पर दुष्परिणाम जैसी समस्याओं से निबटने हेतु हमारी कोई प्राथमिकता बनी ही नही है। इसे भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है।

दिन-ब-दिन शहरीकरण बढ़ रहा है। आदमी का भोज्य पदार्थ दूषित होता जा रहा है। तथाकथित मिडिल क्लास का भोजन भी सेचुरेटेड फैट्स एवं रिफाइन्ड भोज्य पदार्थो से सज रहा है। शारीरिक मेहनत और व्यायाम का निरन्तर अभाव होता जा रहा है। कोका-कोला क्लचर सर्वव्यापी हो गया है और हम अपने बच्चों को फलऔर दूध की बजाय मिठाइयाँ, टॉफी और पेस्ट्री परोसते जा रहे हैं। भारतीय जन समुदाय प्राकॄतिक तौर पर जेनेटिक प्रभाव के कारण मधुमेह होने की ओर तत्पर है, उस पर बदलती जीवन शैली की मार के कारण अब 20 की उम्र के आस पास लोगों में यह बीमारी खूब उफान मार रही है।

समस्या का आकलन करते हुए मेरी स्पष्ट धारणा है कि जब  बीमारी शुरु हो जाए तब हाथ-पैर मारने के बजाय पहले से ही सतर्क हो जाना ज्यादा हितकर है। स्कूल कॉलेज के दिनों से ही यह सन्देश भावी पीढ़ी को दे देना है कि खानपान में सादा भोजन अपना कर एवं नियमित शारीरिक मेहनत के तहत मधुमेह से बचा जा सकता है। मधुमेह से अगर वे बचते हैं तो कई बीमारियों से स्वतः बचाव हो जाएगा। जैसे ह्र्दय आघात, स्ट्रोक, किडनी फेल्योर, अन्धापन आदि।

महत्वपूर्ण सुझाव:

महीने में एक बार अवश्य बल्ड सुगर की जाँच करा लें।
अगर बल्ड सुगर नियन्त्रित रखेंगे तो डायबिटीज से होने वाले दुष्परिणाम नहीं होगें ।
नियन्त्रित बल्ड सुगर रखने वाले सामान्य आयु तक जी सकते है।
जो मरीज अपनी बीमारी के बारे में पूरा जानता है वह ज्यादा दिन जिन्दा रहता है।
डायबिटीक प्रोफ़ाइल साल में एक बार अवश्य करायें।
अगर आप भोजन पर नियंन्त्रण एवं रोज 40 मिनट पैदल चलने की आदत जारी नहीं रखेंगे, तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी।
जब जरुरी हो, इन्सुलीन अवश्य लें। यह अमॄत के समान है।
एस. एम. बी. जी. की आदत डालें(ग्लुकोमीटर द्वारा स्वयं बल्ड सुगर जाँचें)।
माँ-बाप में किसी को डायबिटीज है तो बच्चों का सालाना बल्ड सुगर जाँच कराएँ एवं बचाव के लिए शुरु से भोजन का नियंन्त्रन एवं रोजाना 40-60 मिनट पैदल चलने की आदत डलवायें।
हाइपोग्लासिमिया की जानकारी अवश्य लें।