भारत में मधुमेह होने की दर में भयानक तौर पर इजाफा हुआ है।
70 के दशक में मधुमेह होने कि दर भारत के शहरी इलाकों में मात्र 2.1 प्रतिशत थी अब 12 से 18 प्रतिशत तक जा पहुँची है। सन् 2025 तक भारत में करीब 7 करोड़ मधुमेह के रोगी हो जाएँगे, यह संख्या अभी 3.5 करोड़ है। नए अध्ययन के अनुसार अभी चेन्नई में करीब 13.5%, बैंगलोर में 12.5% एवं हैदराबाद में 16.6% लोग मधुमेह से पीड़ित है। धनबाद के शहरी क्षेत्रों में ड़ां एन.के.सिंह के एक अध्ययन के अनुसार 12% लोग मधुमेह से पीड़ित है, एवं ग्रामीण इलाकों मात्र 2% मधुमेह पीड़ित है। अन्य अध्ययनों में भी देहाती क्षेत्रों में 2 से 3 प्रतिशत लोग ही मधमेह से ग्रसित पाये गए हैं।
सबसे अजीब बात
डा. वी. मोहन ने चेन्नई अरबन पोपुलेशन स्डटी (कप्स) में चेन्नई शहर के दो भिन्न आय वाले इलाकों के अध्ययन में पाया कि मध्यमवर्गीय आय वाले लोगों में मधुमेह की दर 12.4 प्रतिशत पायी जबिक कम आय वाले लोगों में मात्र 6.5 प्रतिशत। इसी अध्ययन में यह पाया गया कि जो लोग पर्याप्त शारीरिक व्यायाम करते हैं उसमें मधुमेह 5.6 प्रतिशत लोगों में था, जो थोड़ा बहुत व्यायाम करते हैं उसमें 9.7 प्रतिशत तथा जो बहुत कम व्यायाम करते है उसमें 17 प्रतिशत लोगों में मधुमेह था। ये भारतीय आंकड़े हमारी आंखों को खोलने के लिए पर्याप्त हैं।
भारतीयों में ज्यादा मधुमेह होने के मूल कारण में जेनेटिक फैक्टरों को उजागर किया गया है। मगर यह सोचने की बात है कि तमाम अध्ययनों में यह पाया गया है कि एक ही वंश के लोग जब ग्रामीण परिवेश में रहते हैं तो मधुमेह कम होता है, वहीं लोग जब शहरी परिवेश में रहने लगते हैं तो मधुमेह अचानक तेजी से होने लगता है। शहरों में फास्ट फूड कल्चर एवं शारीरिक श्रम नहीं करने की बाध्यता हो जाती है।
कम आय वाले लोगों को अपेक्षाकृत कम रिफाइन्ड भोजन एवं शारीरिक श्रम करने की बाध्यता होती है, उन्हें मधुमेह कम होता है। अगर केवल जेनेटिक फैक्टर पर मधुमेह होने की बात तो ग्रामीण एवं शहरी परिवेश में मधुमेह होने की दर एक ही रहती, क्योंकि गांव से शहर में जा बसने से हमारा जीन नहीं बदल जाता।
98 प्रतिशत रोग तो हमारी अपनी गलतियों से
हैदराबाद में दिए एक व्याख्यान में मैंने इस बात को प्रमुखता से उठाया था कि टाइप टू डायबिटीज के होने में जेनेटिक्स का हाथ मात्र 2 प्रतिशत होता है, 98 प्रतिशत रोग तो हमारी अपनी गलतियों से होती है जिसे हम आज लाइफ स्टाइल डिसआर्डर कहते है।
भारतीयों में ज्यादा मधुमेह होने में इन्सुलीन नाकामी, शारीरिक श्रम का दिन-ब-दिन कम होते जाना, भोजन में रिफाइन्ड चीजों का प्रवेश, ज्यादा सुगर, ज्यादा कैलोरी, असमान्य तौर पर खतरनाक वसा का लेना, प्राकृतिक फलों एवं सब्जियों को न खानेकी आदत, अत्यधिक मानसिक तनाव, बढ़ता हुआ मोटापा एवं जन्म के समय कुपोषण के कारण कम वजन का होना आदि मुख्य कारण नए अध्ययनों से पता चला है।
जेनेटिक फैक्टरों की अहमियत का झूठा नजारा
आज सबसे अहम सवाल यह है कि जेनेटिक फैक्टरों की अहमियत का झूठा नजारा जनता की आंखों से हटाया जाए एवं इस बात पर बहस शुरू की जाए कि किस तरह जनता को अत्यधिक शारीरिक श्रम एवं संतुलित एवं पोषक भोज्य पदार्थों पर जागरूक किया जाए। अगर इस अहम मुद्दे को हम यूं ही छोड़ देंगे तो मधुमेह की आँधी में देश के नवजवानों का स्वास्थ्य बुरी तरह चौपट होना तय है।
हाल में जमशेदपुर में मैं अपने कॉलेज की एक छात्रा डा.उमंग सहाय से मिला। पार्टी में जरूरत से ज्यादा खाता देख मैंने उससे मधुमेह से बचाव लिए कम खाना लेने को कहा तो हंसते हुए उसने कहा कि कल किसने देखा है। मरना है ही एक दिन क्यों न खा पीकर मरें ?
यह बात भी कितनी सच्चाई से भरी है, मैं हक्का बक्का रहा और कोई जवाब न दे पाया। मगर सोचता हूं कि शरीर में रोगों की बहुतायत से तड़प तड़प के मरना एवं निरोग रहकर शांति से मरना, इन दोनों स्थितियों में बहुत फर्क हैं। यही हम समझ सकें और आत्मसात करें तो भारत में मधुमेह की महामारी को रोका जा सकता है।