डायबिटीज एक ग्रीक शब्द है।

डायबिटीज शब्द इस्तेमाल पहली बार अरेटीयस ने दूसरी शताब्दी में किया। यह एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब साईफन होता है। अरेटीयस ने ऐसा शब्द इसलिए इस्तेमाल किया कि इस बीमारी में पानी शरीर में ठहरता नही है और आदमी के शरीर को एक चैनेल की तरह प्रयुक्त करता है। अरेटीयस ने उस समय बीमारी के लक्षणों में ज्यादा पेशाब का होना, ज्यादा प्यास लगना, वजन का कमना आदि बताया था।

400 वर्ष ईसा पूर्व सुश्रुत ने भारत में इस बीमारी का वैज्ञानिक विवेचन किया।

इस बीमारी का सबसे पुराना उल्लेख एबर पापारस में मिलता है। इसे ईसा पूर्व 1500 (बीसी) वर्ष के समय का माना गया है। करीब 400 वर्ष ईसा पूर्व सुश्रुत ने भारत में इस बीमारी का वैज्ञानिक विवेचन किया था। पेशाब में सुगर के जाने के कारण सुश्रुत ने इस बीमारी का नाम मधुमेह रखा। सुश्रुत ने बीमारी के दो रूपों की भी चरचा की है।

टाइप वन (बच्चों में होनेवाली) एवं टाइप टू (बड़ों में होनेवाली) डायबिटीज। सुश्रुत ने यह भी बताया कि खानपान के नियंत्रण एवं शारीरिक व्यायाम द्वारा इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। चूंकि सुश्रुत संहिता को कई बार बांग्भट्ट के समय ईसा बाद 600 ईस्वी तक लिखा जाता रहा, कई लोग सुश्रुत संहिता का समय पॉचवी एवं छठी शताब्दी (ईसापूर्व) का मानते हैं।

17 वीं शताब्दी में यूरोप के थामस विलिस ने इस बीमारी का पूरा वर्णन किया और इसके लिए उन्हें फेलोशिप दिया गया। जॉन रॉल ने 1809 में डायबिटीज के साथ मेलाइटस शब्द जोड़ा जिसका अर्थ मधु होता है। इस तरह इस बीमारी को डायबिटीज मेलाइटस कहा जाने लगा।

11 जनवरी 1922 को लियोनार्ड थोम्पसन को पहली बार इन्सुलीन दिया गया।

सन 1889 में मिनोकोस्वकी एवं मेरिंग ने एक कुत्ते के अग्नाशय (पैनक्रियाज) को हटाकर यह सिद्ध किया कि डायबिटीज होने में पैनक्रियाज ग्रन्थि का हाथ है। मगर, इस ऐतिहासिक खोज को वे आगे नहीं बढ़ा सके। पॉल लेंगरहेंस ने 1893 में यह स्पष्ट किया कि पैनक्रियाज के कुछ विशिष्ट कोशिकाओं से एक हारमोन निकलता है जो सुगर को कम कर देता है। बाद में इसी हारमोन को इन्सुलीन कहा गया।

किन्तु इन्सुलीन की खोज का सेहरा बैटिंग एवं बेस्ट के माथे बंधा। ये लोग मैकलियोड के शिष्य थे और कनाडा के यूनिवरसिटी आफ टोरंटों में पढ़ते थे। इन दोनों ने पैनक्रियाज ग्रन्थि के एक्सट्रैक्ट को एक पैनक्रियाज निकाले हुए कुत्ते में इन्जेक्ट किया और यह सिद्ध करने में सफल हुए कि इससे ब्लडसुगर कम जाता है। यह घटना सन 1921 की है। 11 जनवरी 1922 को लियोनार्ड थोम्पसन नामक 14 वर्ष के मधुमेह के मरीज को पहली बार इन्सुलीन दिया गया। इस ऐतिहासिक सफलता के बाद ईली लीली कम्पनी ने अमेरिका में इन्सुलीन का व्यावसायिक उत्पादन शुरू कर दिया।

इलियट पी जासलीन ने दुनिया में पहली बार 293 मरीजों पर इन्सुलीन का प्रयोग किया।

अमेरिका के ईलियट पी जासलीन ने दुनिया में पहली बार 293 मरीजों पर इन्सुलीन का प्रयोग किया एवं बीसवी शताब्दी के सर्वाधिक चर्चित डायबिटीज विशेषज्ञ होने की ख्याति प्राप्त की। धीरे-धीरे जानवरों को मारकर इन्सुलीन निकालने की जगह डीएनए रिकम्बोनेंट तकनीक ने ले ली और शुद्धतम ह्यूमन इन्सुलीन उपलब्ध हो गया। 1970 से मोनोकम्पोनेंट इन्सुलीन मिलने लगा। खानेवाली दवाइयों की खोज जारी थी मगर 1955 में पहली बार जर्मनी के फ्रैंक एवं फ्यूक्स ने कारबुटामाइड (सल्फोनयूरिया ग्रुप) की खोज की।

1970 के बाद तेजी से इस ग्रुप की अन्य दवाइयों से बाजार भर गया है। ग्लीबेनक्लामाइड, ग्लीपीजाइड आदि नयी दवाइयां काफी सुरक्षित एवं प्रभावकारी थीं। मेटफारमीन नामक अत्यन्त महत्वपूणॆ दवा 1957 में खोजी गयी। डायबिटीज के इतिहास में डीसीसीटी ट्रायल एवं यूकेपीडीएस नामक दो अत्यंत महत्वपूर्ण शोध क्रमशः 1993 एवं 1998 में हुए जिन्होंने हमारी मान्यताओं में आधारभूत परिवर्तन किये। इस शोधों ने यह बताया कि सही नियंत्रण द्वारा मधुमेह के दुष्परिणामों को रोका जा सकता है।

डायबिटीज का इतिहास रोमांचक है।

डायबिटीज का इतिहास रोमांचक है। सदियों से इसे राजरोग कहा गया है। इसके होने में जेनटिक प्रभावों की ओर सुश्रुत ने इशारा किया था। अभी हाल में डीपीपी ट्रायल संपन्न हुआ है। इस शोध ने यह बताया है कि सही खानपान एवं नियमित व्यायाम द्वारा डायबिटीज से बचा जा सकता है। इन्सुलीन की खोज के बाद यह जानकारी सबसे महत्वपूर्ण खोज है।