रमजान में ऐसे सावधानी बरतें डायबिटीज के मरीज
ब्रिटिश जरनल ऑफ डायबिटीज डिजिज में एक लेख रमजान के समय के किए जाने वाले उपवास पर प्रकाशित हुआ है। इसमें इस बात की विवेचना की गई है कि डायबिटीज से पीड़ित मुस्लिम मरीजों को किस तरह रमजान में उपवास करना चाहिए ताकि डायबिटीज का नियंत्रण भी ठीक रहे और कोई दुष्प्रभाव शरीर पर न पड़े। इसलाम केवल एक धर्म ही नहीं बल्कि जीवन को सही ढ़ंग से जीने की प्रक्रिया है। अल्लाह के आदेशों को पूर्णतः स्वीकारना एवं उसे व्यवहार में लाना ही इस्लाम का मूल-मंत्र है। पवित्र ग्रन्थ कुरान रमजान के महीने में उजागर हुआ था इसलिए इस महीने में उपवास करना इस्लाम में जरुरी माना जाता है।
डायबिटीज के मरीजों को भी रमजान में उपवास करने की बाध्यता है और ऐसा करना पूर्णतः निरापद हो सकता है यदि सही जानकारी रहे। रमजान में उपवास के समय भोजन या जल, कुछ भी नहीं लिया जाता है। इन्ट्रावीनस पानी का चढ़ाना, दवाईयों को खाना भी मना है। सूर्योदय के पहले एवं सूर्यास्त के बाद ही खाना लिया जाता है। रमजान में उपवास कुछ लोगों के लिए मना होता है जैसे – बच्चे, जिनकों उपवास का महत्व पता न हो, बुढ़े और कमजोर, बीमार लोग जिन्हें लगातार 50 मील से ज्यादा की यात्रा करनी हो, माहवारी के समय एवं गर्भवती औरतों को।
यह जरुरी है कि दवा की मुख्य मात्रा सूर्यास्त के बाद वाले भोजन के बाद ली जाए
रमजान के समय खाने का क्रम पूर्णतःबदल जाता है। इसलिए दवाईयों के इस्तेमाल का समय एवं मात्रा पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है। जो मरीज दवाईयों का इस्तेमाल करते है उन्हें कुछ सावधानियों की जरुरत है। उपवास के समय वैसी दवाईयाँ जिनका असर शरीर में लम्बे समय तक रहता है जैसे गिलीवेनक्लामाइड(डायवोनिल) या क्लोरप्रोपामाइड(डायबनीज), सुरक्षित नहीं होती।अच्छा होगा रमजान शुरु होने के पहले ही कम समय तक काम करने वाली दवाईयों को शुरु कर दी जाएं। मेटफारमीन (ग्याकोमेट) एक बहुत अच्छी दवा है, और उपवास के समय भी सुरक्षित है।
यह जरुरी है कि दवा की मुख्य मात्रा सूर्यास्त के बाद वाले भोजन के बाद ली जाए एवं सुबह में दवा की बहुत हल्की मात्रा ली जाए। इससे शरीर में ब्लडसुगर बहुत कम होने का खतरा नहीं रहेगा। आजकल रिपागलीनाइड या नाटेगलीनाइड नियंत्रण के लिए उत्तम मानी जाती है और उपवास के बाद भोजन के समय तुरंत ली जा सकती है। अगर कोई मरीज ग्यानेज या गिल्मीपराइड दवा रमजान के पहले नास्ते पर लेता है तो उसे रमजान के समय सूर्यास्त के बाद वाले भोजन के समय लेना चाहिए।
जो मरीज इन्सुलीन की सूई लेते हैं, उन्हें भी मात्रा एवं समय बदल लेनी चाहिए
सुर्योदय के पहले रेपिड एक्टिंग इन्सुलीन एवं सूर्यास्त के बाद इन्टरमेडिएड एक्टिंग इन्सुलीन का लेना ज्यादा सुरक्षित होगा। रमजान के समय इन्सुलीन की पहले वाली मात्रा से कम मात्रा देने की जरुरत नहीं पड़ती है, बस केवल समय को बदलना पड़ता है। रमजान के समय सूर्यास्त के बाद आधिकतर लोग तुरंत भोजन लेते हैं। वे आजकल इन्सुलीन एनालॉग(नोवोमिक्स फ्लैस पेन) तकनीक से लें तो ज्यादा अच्छा नियंत्रण होगा। मुख्य बात यह है कि सुबह की मात्रा में करीब 50% की कमी करके शाम वाली मात्रा में जोड़ दे।
रमजान के समय कुछ खास ग्रुप के डायबिटीज के मरीजों को उपवास नहीं करना चाहिए
वैसे मरीज जिनका ब्लडसुगर नियंत्रण बहुत खराब है, जिन्हें डायबिटीज के साथ ह्र्दय की एनजाइना या उच्च रक्तचाप की बिमारी है, जिन्हें बार-बार डायबिटीज किटोएसिडोसिस होने की हिस्ट्री हो, गर्भवती महिलाएं, संक्रमण की अवस्था हो, या पहले रमजान के समय उपवास के कारण डायबिटीज का नियंत्रण खराब होने की हिस्ट्री हो।
डायबिटीज के मुस्लिम रोगी सही आकलन रमजान शुरु होने के पहले करा लें
ब्रिटिश डायबिटीज जरनल के अनुसार 16 लाख मुस्लिम ब्रिटेन में रहते हैं जिसमें करीब 20% को डायबिटीज का रोग है। धार्मिक भावनावों से ओत-प्रोत ऐसे मरीज भी रमजान में उपवास करना चाहते हैं। ऐसे सभी मरीजों को अपने डायबिटीज के नियंत्रण के लिए कुछ खास जानकारियों की जरुरत है।
सही जानकारी के बिना उपवास करना खतरनाक साबित हो सकता है। कहते हैं करीब एक बिलियन मुस्लिम पूरे विश्व में है। इतना बड़ा समुदाय का एक बड़ा हिस्सा डायबिटीज से पीड़ित है तो उसकी स्वास्थ्य रक्षा के लिए विशेष प्रयत्न की जरुरत है। डायबिटीज के मुस्लिम रोगी अपने चिकित्सक से सही आकलन रमजान शुरु होने के पहले करा लें।