यह रोगियों का जीवन बेहाल कर देती है, थोड़ा धैर्य रखें, समय लगेगा, मगर ठीक हो जाएगा।

मधुमेह में नसों की देखभाल।

मधुमेह बीमारी में नसों की खराबी अक्सर हो जाती है। इसे डायबेटिक न्यूरोपैथी कहते हैं। मधुमेह के रोगियों की बीमारी जितनी पुरानी होती है न्यूरोपैथी होने की संभावना उतनी ही बढ जाती है। अगर किसी को 25 साल से बीमारी हो तो करीब 50% हो तो करीब 50% रोगियों को न्यूरोपैथी हो जाती है। नए मधुमेह के रोगियों में भी 7.5% तक में न्यूरोपैथी पायी जाती है। यह एक अत्यन्त बेचैन कर देने वाली समस्या है। मरीजों को अत्यन्त वेदना होती है। अभी तक ईलाज में संतोषजनक कुछ भी नहीं है। जबकि 1864 में ही मार्शल ने मधुमेह के कारण न्यूरोपैथी होने की बात जान ली थी।

 लक्षण क्या है?

i. पेरीफेरल न्यूरोपैथी

लम्बे नसों की खराबी पहले होती है। इसलिए लक्षण पैरों की उँगलियों से शुरू होते हैं, और ऊपर की ओर बढ़ते हुए हाथ की उँगलियों तक पहुँचते हैं। प्रायः पैरों में झनझनाहट होना/सुन्न हो जाना / खूब जलन होना/या तेज काटने जैसा दर्द का होना /पैर का बथना या बाद में पैर सुन्न हो जाते हैं और आग या अन्य चीजों का अहसासा नहीं हो पाता जिसके कारण घाव हो जाता है।

यह सब सेन्सरी फाइबर की खराबी से होता है मोटर फाइबर की खराबी से जांघ की मांसपेशियाँ धीरे धीरे सूख जाती हैं और कमजोर हो जाती है।

ii. ऑटोनॉमिक न्यूरोपैथी

रक्तचाप कम हो जाने के कारण खूब चक्कर का आना, खास कर सोये हुए से अचानक उटने पर।

हृदय का जोर जोर से धड़कना।
यौन अंगो की शिथिलता होना।
गैस्ट्रोपेरेसिस होने से खूब ढेकार आना, खाने के बाद यह लगना कि पेट में ही खाना पडा हुआ है/छाती में जलन का होना/कभी कब्ज कभी डायरीया का होना, पैरों में पसीना न आना।
कभी-कभी एक्युट पेनफुल न्यूरोपैथी हो जाती है। ऐसा लगना है मानो पुरा शरीर जल रहा हो। कोई हाथ से शरीर का अंग छुने पर लगता है कि मानो कोई छूरी से काट रहा हो। तापमान का भी अहसास नहीं होता। भयानक दर्द रात में खासकर दोनों पैरों में होता है। इन लक्षणों के कारण जीवन में निराशा भर जाती है।

कारण क्या है?

यह निश्चित रूप से अभी नहीं कहा जा सकता कि नसों की खराबी क्यों होती है। मगर नए शोधों से यह निश्चित रूप से पता चला है कि बल्ड सुगर यदि बढ़ा रहे तो न्यूरोपैथी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। डी.सी.सी.टी. ट्रायल में ब्लडसुगर 230 मी. ग्रा. से 155 मी. ग्रा. घटा कर 5 साल के अन्तराल में न्यूरोपैथी होने की सम्भावना में 60 तक की कमी पायी गयी।

आजकल पोलीलोल पाथवे एवं वासकुलर इसचिमिया थ्योरी द्वारा न्यूरोपैथी होने की सम्भावना का बखान किया जा रहा है।

याद रखें, मधुमेह को अनियन्त्रित रखना न्यूरोपैथी होने का सबसे बड़ा कारण है।

याद रखे, न्यूरोपैथी के लक्षणों के लिए निश्चित ईलाज नहीं है। आराम होने में 6 महीने लग सकते हैं।

ईलाज क्या है?

i. जरूरत रहने पर नर्व कन्डकशन वैलोसीटी, क्वानेटेटीव सेन्सरी टेस्टींग , क्मप्यूटर एसिसटेड सेन्सरी इवालुयेशन, बायपसी आदि जाँचों को कराकर सही स्थति का पता किया जा सकता है।
ii. आटोनॉमिक न्यूरोपैथी के लिए मेट-आइटोबन्जाइल गुवानीडीन सिन्टीग्राफी से सिम्पैथिक एकटीभीटी का जायजा लिया जा सकता है।
iii. अनियन्त्रित मधुमेह को तुरंत नियन्त्रित करने का प्रयास शुरू करें।

iv. सेन्सरी लक्षणों के लिए एमीट्रीपटीलीन, कारबामाजेपीन, वालप्रीन, गाबापेन्टीन आदि दवाइयों का इस्तेमाल लाभदायक हो सकता है।
v. अल्डोज रिडक्टेज इनहीबीटर दवाइयों का प्रयोग कभी-कभी फायदेमन्द हो सकता है। नर्व ग्रोथ फैक्टर दवा अभी रिसर्च के दायरे में है।
vi. विटामीन ई एवं प्रिमरोज आयल भी उपयोगी है। अल्फा लिपोइक एसिड शक्तिशाली है शरीर में आक्सीडेटिभ स्ट्रैस कम करने में। कुछ शोधों में न्यूरोपैथी में इसके प्रयोग से आशातीत फायदा हुआ है। मिथाइल कोबालामीन का प्रयोग भी काफी महत्वपूर्ण हो गया है।

अन्नत:

i. अनियन्त्रित मधुमेह को तुरंत नियन्त्रित करने का प्रयास शुरु करें।
ii. न्यूरोपैथी का होना मधुमेह के रोगियों में किसी श्राप से कम नहीं है।
iii. मधुमेह नियन्त्रित कर इससे बच सकते है।
iv. अगर आपको न्यूरोपैथी के लक्षण हो चुके है, तो इत्मीनान रखिए। पैरों के जलन, झनझनाहट आदि के ठीक होने में तीन-चार महीने लग सकते हैं। कोई भी दवा तुरंत कारगर नहीं हैं।