कुछ धारणाएँ जो आपके मन में है, मगर गलत है।

1. यदि एक बार इन्सुलीन की सुई शुरु होगी तो आपको उसे जिन्दगी भर लेनी पड़ेगी।

यह गलत धारणा है। चिकित्सा के दौरान कभी-कभी खाने वाली दवाईयाँ कार्य नहीं करती हैं और ब्लड सुगर बढ़ा रहता है। अधिकाशं दवाईयाँ पैनक्रियाज के बीटा सेल्स को इन्सुलीन स्त्रावित करने का आदेश देती हैं मगर साधारण फन्डा है कि यदि बीटा सेल्स में क्षमता न हो या इन्सुलीन स्त्रावित करने करते करते वे थक कर मॄतप्राय हो गयीं हों तो दवा के कई किलो की मात्रा भी कुछ नहीं कर सकती है। इस समय यदि इन्सुलीन की सुई दी जाए तो वह अमॄत के समान कार्य करता है।

सुई देने से बीटा सेल्स को आराम मिलने लगता है एवं पुनः इन्सुलीन स्त्रावीत करने की क्षमता फिर से आने लगती है। यदि तीन से छह महीने तक भी इन्सुलीन की सुई दी जाए तो पुनः दवाईयाँ कारगर हो जाती हैं और तब इन्सुलीन देने की जरुरत नही पड़ती है।

2. जमीन के नीचे की चीजें, चावल मधुमेह के रोगी नहीं खा सकते है। यह गलत धारणा है।

जमीन के नीचे की चीजें जैसे – प्याज, गाजर, लहसुन, आदि का त्याग नहीं बल्कि मधुमेह रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है। चावल डायबिटीज में मना नहीं है। सभी अनाज चाहे वह चावल, गेहूँ , मक्का, जौ या रागी हो उसमें 70% स्टार्च होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अनाज की कितनी मात्रा (कैलोरी) आप खा रहे हैं। अत: आप 100 ग्राम चावल रोज खा सकते हैं।

3. ग्लुकोमीटर से ब्लड सुगर का रिडिंग गलत होता है।

वस्तुत: ग्लुकोमीटर कैपीलरी ब्लड सुगर को दिखाता है, जो इन्ट्रवीनस खून से जाँच किए ब्लड सुगर से 10 से 15% ज्यादा होता है। घर में ग्लुकोमीटर द्वारा ब्लड सुगर का जाँच करना अत्याधुनिक एवं वैज्ञानिक विधि है।इसमें काफी वैरियेशन हो सकती है। यह कभी-कभी तकनीकी कारणों काफी गलत रिपोर्ट दे सकता है। विभिन्न ग्लुकोमीटरों से एक ही समय एक ही आदमी का अलग-अलग रिडिंग आ सकता है,जैसे 5 आदमी की घङियों में एक ही समय ,मान लीजिए 10 बजे समय पूछा जाये तो किसी की घङी में 10.5 होगा तो किसी में 9.55। इससे इतना तो पता चल ही जाता है कि 10 बजे के आसपास का समय हो रहा है।एक आइडिया तो इस तरह मिल ही जाता है। इससे ग्लुकोमीटर की महत्ता कम नही हो जाती।यह उन लोगों के लिए खासकर उपयोगी है जो इन्सुलीन लेते हैं।

गलत रिडिंग के कई कारण हो सकते हैं।अगर ठीक से पंक्चर न किया गया हो और सही ढग से जाँच करने का तरीका फौलो न किया गया हो तो गलत रिडिंग आती है।एनिमिया या शरीर से खून बहा हो ,तब भी गलत रिडिंग आयेगी। पारासीटामोल या विटामिन-सी की दवा ले रहे हों तो रिडिंग में वैरिएशन हो सकती है। टेस्ट स्ट्रीप यदि गर्मी में रख दिया गया हो,उस पर आद्रता का असर पङ गया हो,या ऊँचे स्थल पर रखा गया हो तो बहुत गलत रिडिंग आयेगी।यह जरूरी है कि हर 3 महीने पर लैबोरेटरी में ब्लड सुगर एंव ग्लायकोसेलेटेड हीमोग्लोबीन करा कर निशिचत कर लें कि ग्लुकोमीटर सही ढंग से काम कर रहा है।

4. अगर खाने के दो घन्टे बात का पी.पी. सुगर कम है और फास्टिंग सुगर ज्यादा है तो रिडिंग गलत है।

एक ही आदमी में कभी- कभी फास्टिंग सुगर ज्यादा हो सकता है (हेपाटिक ग्लुकोज आउटपुट के अनियंत्रित होने से) एवं पी.पी. सुगर सामान्य रह सकता है (मील स्टीमुलेटेड इन्सुलीन रिस्पान्स के कारण)। इसी तरह किसी का फास्टिंग सुगर बहुत ज्यादा रह सकता है।

5. मुझे कोई लक्षण नहीं है इसलिए जाँच की कोई जरुरत नहीं है।

शुरुवाती दौर में बिना किसी लक्षण के भी ब्लड सुगर बढ़ा हुआ रह सकता है। आजकल चूँकि 25 से 40 साल के लोगों में भी बीमारी तेजी से उभरी है, अच्छा यही होगा कि सालाना एक बार फास्टिंग सुगर की जाँच अवश्य करायें।

6. घर में फ्रिज नहीं है इसलिए इन्सुलीन लेना ठीक नहीं होगा।

इन्सुलीन का स्टोरेज फ्रिज के नीचले हिस्से में होना चाहिए। मगर एक इन्सुलीन का वायल खोलने के बाद उसे कमरे के तापमान पर बाहर एक महीने तक रखा जा सकता है।

7. बादाम खाना ठीक नहीं है।

बादाम रोज खाने से डायबिटीज से बचाव होता है एवं नियंत्रण में भी मदद मिलती है।