मरीजों को निराश होने की जरुरत नहीं है

मधुमेह में नपुंसकता की समस्या

नपुंसकता मधुमेह का एक छुपा हुआ दुष्प्रभाव है। मगर यह बताता है कि ऐसे लोगों को हॄदयाघात या स्ट्रोक जैसी बिमारियों का खतरा ज्यादा रहता है।

मधुमेह ग्रस्त पुरुषों में इसकी व्यापकता दर 66% पायी गयी है, यह चिन्ताजनक आंकड़ा है। इसमें से 64% को इरेक्टाईल डिसफक्सन हो जाता है।

अन्य लक्षणों में में यौन क्रिया की इच्छा में कमी, प्रीमेच्युर इजाकुलेशन या रेट्रोग्रेड इजाकुलेशन आदि पाये जाते है। इस तरह की समस्याएँ समान्य लोगों कि अपेक्षा मधुमेह के रोगियों में 10 से 15 साल पहले हो जाती है।

यह जानना जरुरी है कि ऐसे मरीजों को निराश होने की जरुरत नहीं है। आजकल बहुत से जाँचो की सुविधा बड़े शहरों में हो गयी है। सही कारण का जायजा लेकर उचित ईलाज संभव है। साथ में इस तथ्य को न भुलें की यदि आप मधुमेह नियंत्रण सही ढग से करते हैं तो इस तरह की गंभीर समस्या से निजात पा सकते है।

सर्तक रहें, पूरी जाँच करवा लें

क्लिनिकल इवालुएशन
टेसटीकुलर सेनसेशन-एक सरल टेस्ट है जो सायोलोजिकल एंव न्यूरोजेनिक कारण को अलग कर सकता है।नाँकचुनरल पेनाइल टुमेंससेनेम्स टेस्ट एंव स्टाम्प टेस्ट द्वारा भी मानसिक स्तर एंव नसों की खराबी के अन्तर को समझा जा सकता है।
वासकुलर कारणों को भी समझना जरूरी है। इसके लिए ए.बी.इन्डेक्स एक सरल टेस्ट है।यह यदि 0.75 से ज्यादा है तो वासकुलर सिस्टम की खराबी को बताता है। पेनाइल प्लेथिसमोग्राफी भी एक महत्वपूर्ण टेस्ट है।
कुछ हारमोन्स की भी जाँच जरूरी है

i. टेस्टेसटेरोन
ii. एफ.एस.एच
iii. एल.एच
iv. प्रोलेक्टिन
v. टी-3,टी-4,टी.एस .एच
vi. कोरटीजोल

ईलाज में क्या है?

सिडानाफिल ग्रुप की दवा प्रभावकारी

नंपुसकता (इरेकटाईल डिसफंक्शन) एक वार्निग सिगनल है।इसे पुरूषों के स्वास्थय का पोर्टल भी कहा गया है।वायग्रासिडानाफिल ग्रुप की ही दवा है।वरडेनाफिल इसी ग्रुप में हाईली सेलेक्टिभ एंव पोटेन्ट फोसफोडायइस्टरेज 5 इन्हीबीटर दवा है।

कैसे काम करती है यह दवा

यौन इच्छा होते ही नाईट्रिक आक्साइड पेनिस के वासकुलेचर में प्रवाहित होने लगता है।इससे साइलिक जी.एम.पी.की मात्रा बढ जाती है। यह दवा इस जैव-रसायन को नष्ट होने नही देती। इसके प्रभाव में पेनिस में ज्यादा खून भर जाता है जिससे प्रभावकारी इरेक्शन हो जाता है।
इस दवा को लगातार नही खाया जाता। जिस दिन यौन-क्रिया की इच्छा हो उसी दिन इसकी एक गोली खायी जाती है।बिना डाक्टर की सलाह के दवा न लें वरना लेने के देने पड जायेंगे।

‘टेस्टोसटेरोन- खुलते राज

‘टेस्टोसटेरोन हारमोन का डायबिटीज में भारी रोल है।करीब एक तिहाई कम उम्र के रोगियों में इसकी मात्रा घटी रहती है।इसका उनके सेक्सुवल लाईफ पर असर पङता ही है।यौन-इच्छा की कमी,इरेकटाईल डिसफंक्शन के अलावा कारडियो-वासकुलर बिमारियों का खतरा भी बढ जाता है।प्रसिध्द मेडिकल जरनल डायबिटीज केयर के अक्टूबर 08 के एक अंक में इस तथ्य का उजागर किया गया है।ऐसे मरीजों में टेस्टोसटेरोन की दवा देने से फायदा होता है।इसको देने से इन्सुलीन की नाकामी भी सुधरने लगती है।इसके प्रभाव से कमर की नाप भी कमती है। शरीर में फैट भी नियन्त्रित होने लगता है।यह हारमोन न केवल यौन इच्छा को जगाता है बल्कि पेनिस के इरेक्शन में भी इसकी भूमिका है। आजकल खून में टेस्टोसटेरोन हारमोन की मात्रा देख लेनी चाहिए। ‘टेस्टोसटेरोन का टेबलेट और इंजेक्शन उपलब्ध है।

वासोएक्टिभ दवाएँ

i. पापावेरीन का इंजेक्शन 25 से 30 मि,ग्रा
ii. फिनटोलामिल एंव प्रोस्टागलैन्डिन का इंजेक्शन