मधुमेह में घातक है उच्च रक्तचापके प्रति लापरवाही।

प्रेसीडेंट रुजवेल्ट के जमाने से भिन्न है रक्तचाप की आधुनिक मान्यताएं।

अमेरीका के 32वें राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रुजवेल्ट का मेडिकल रिकार्ड देखिए:

1935 में उनका रक्तचाप 136/78
1937 में उनका रक्तचाप 162/98
1949 में उनका रक्तचाप 188/105
1944 में हृदय का बायां वेंटीकल बढ़ा हुआ पाया गया।
1945 फरवरी में रक्तचाप 260/150
1945 – 12 अप्रैल को रक्तचाप 300/190

इस रक्तचाप को उस समय राष्ट्रपति के स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया। समझा गया कि ज्यादा प्रेशर रहने से ब्रेन में ज्यादा खून पहुँचेगा और वे स्वस्थ रहेंगे। मगर 13 अप्रैल 1945 के ‘द न्यूआर्क टाइम्स’ का हेडलाइन देखिए –

अमेरीका के 32वें राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रुजवेल्ट की मृत्यु हो गयी। यह अचानक हुआ। मॄत्यु ब्रेन में खून की नली फट जाने से हुई(स्ट्रोक)।

सन् 2001

अब किसी भी उम्र में 140/90 से ज्यादा रक्तचाप को स्ट्रोक होने के लिए भारी खतरा माना जाता है। इसके इलाज की सख्त जरुरत है।

रक्तचाप, इतिहास के आईने में:

1733 – स्टीफेन हेल्स ने पहली बार रक्तचाप घोड़ों में नापा।
1886 – रिवा-रोकी ने न्यूमेटिककॉफ का अविष्कार किया।
1896 – क्लिफोर्ड एबट ने रक्तचाप में किडनी की भूमिका का जायजा लिया।
1905 – रुस के कोरोटकोफ ने उस आवाज का वर्णन किया, जिसे रक्तचाप के नापने में सुनते हैं।
1904 – एमबॉड ने कोलेराइड आयन की भूमिका के बारे में बताया।
1963 – लॉराग ने रेनिन की भूमिका बताई।
1973 – अमेरिका में नेशनल हाई बल्ड-प्रेशर एडुकेशन प्रोग्राम ने स्टेपड केयर चिकित्सा को शुरु किया, यह जे.एन.सी(ज्वाईंट नेशनल कमिटी) का शुरुवाती दौर था।
1980 – वॉडनर ने सोडियम आयन की भूमिका स्पष्ट की और इसका संबंध रक्तचाप से जोड़ा।
1983 – कापलन ने रक्तचाप को परिभाषित किया।
1988 – जे.एन.सी(4) जारी हुआ। पूरी दुनिया में यह रिपोर्ट रक्तचाप के लिए आथिरीटी मानी गयी।
1993 – जे.एन.सी(5) जारी हुआ।
1997 – जे.एन.सी(6) जारी हुआ।
2003 – जे.एन.सी(7) जारी हुआ।

50% का नियम:

i. करीब 20 करोड़ लोग भारत में रक्तचाप से पीड़ित हैं।
ii. इसका 50%(10 करोड़) को ही पता है कि उन्हें रक्तचाप है। 50% को पता ही नहीं है। जिनको पता है उनके 50% ही नियमतः दवा खाते हैं। जो दवा खा रहे हैं (5 करोड़) उसमें मात्र 50% का ही रक्तचाप नियंत्रित है। शेष में दवा सही मात्रा में नहीं खाने से रक्तचाप बढ़ा हुआ है।

उच्च रक्तचाप – एक साइलेंट कीलर।

बहुत से लोग यह सोचते हैं कि जब कोई लक्षण नहीं है तो रक्तचाप जाँच क्यों कराएं। बहुत से लोगों को मालूम है कि उनका रक्तचाप बढ़ा रहता है मगर वह सोचते हैं कि कुछ लक्षण नहीं तो दवा क्यों खाएं? मगर याद रखिए बढ़ा हुआ रक्तचाप छुपा हुआ रुस्तम है – ‘साइलेंट कीलर’, इसके कारण एक दिन आपको अचानक लकवा मार सकता है या हॄदयघात हो सकता है।

रक्तचाप किससे और कैसे नपवाएं।

कई बार रक्तचाप दो जगह नापा जाएं तो अंतर आ जाता है। ऐसा भी देखा जाता है कि नर्स किसी का रक्तचाप नापे तो कम आता है और डाक्टर नापे तो ज्यादा। कई बार आफिस में रक्तचाप नापा जाए तो ज्यादा आता है और घर में कम, इसे ह्वाईट कोट हाईपरटेंशन कहते हैं। इस तरह के बढ़े रक्तचाप का इलाज करने की जरुरत नहीं होती। अगर रक्तचाप मापक यंत्र (स्फीगमोमैनोमीटर) के बाँह में लगाने वाले कफ की चौड़ाई कम हो, उसे धीरे-धीरे या बहुत तेजी से फुलाया जाए तो रक्तचाप ज्यादा आएगा। बाँह में बाँधी गयी पट्टी को हॄदय के लेवेल में न रखा जाए तो रक्तचाप गलत आयेगा। इस तरह के कई और भी कारण हो सकतें है जिनका यदि विशेष ध्यान न रखा जाये तो रक्तचाप गलत आएगा। मरकरी के जो यंत्र हैं वे इलेक्ट्रानिक यंत्रों से ज्यादा सही रीडिंग देते हैं। इन सब फैक्टरों के कारण यह जरुरी है कि यदि एक बार रक्तचाप बढ़ा हुआ आता है तो तुरंत दवा शुरु न की जाए। कम से कम तीन बार कुछ दिनों के अंतराल पर रक्तचाप नापा जाए। यदि कई रीडिंग का एवरेज बढ़ा हो तो चिकित्सा शुरु होनी चाहिए।

अगर आप भारी चिन्ता में हों तो थोड़ी देर के लिए रक्तचाप बढ़ जाएगा। प्रयाप्त व्यायाम के बाद भी रक्तचाप बढ़ा मिलेगा । यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसका इलाज नहीं किया जाता।

जहाँ दुविधा हो, आजकल नयी तकनीक एम्बुलेटरी ब्लड प्रेशर मानिटरिंग द्वारा सही स्थिति का जायजा लिया जाता है।

रक्तचाप के नये पैमाने – जे एन सी, सात – 2003

18 साल के ऊपर के व्यक्तियों का रक्तचाप (मि.मी. मरकरी)


उपर का सिस्टोलिकनीचे का डायस्टोलिक
प्री हाइपरटेन्शन120 से 13980 से 89
सामान्य120 से कम80 से
रक्तचाप स्टेज-1140 से90 से 99
रक्तचाप स्टेज-2160 से ज्यादा100 से ज्यादा

रक्तचाप के मरीज शुरुवाती दौर में अवश्य जाँच करा लें:

आँख/गुर्दों/हॄदय पर रक्तचाप का दुष्प्रभाव हुआ है कि नहीं।
पेशाब की जाँच।
सिरम पोटाशियम, सोडियम, फास्टिंग-ग्लुकोज, लिपिड प्रोफाइल(कोलस्टेरोल/टी.जी/एल.डी.एल एवं एच.डी.एल. कोलेस्टेरोल)।
ई.सी.जी. , ईकोकारडियोग्राफी

उच्च रक्तचाप से उत्पन्न खतरे।

स्ट्रोक(लकवा) होने का खतरा 10 गुणा बढ़ जाता है। स्ट्रोक होने का मुख्य कारण रक्तचाप का 140/90 से उपर बढ़ा रहना है।
इसचीमीक हॄदय रोग (हॄदयघात) होने का खतरा 3 से 5 गुणा बढ़ जाता है।
एथरोस्केलेरोसिस (रक्त वाहिनियों में लीपिड प्लेक का जमाव से संकरापन होना) की संभावना बढ़ जाती है।
जीने की आयु सामान्य लोगों से 10 से 15 साल कम हो जाती है।
गुर्दें के खराब होने की संभावना 3 गुणा बढ़ जाती है।
मधुमेह के मरीजों में रक्तचाप हर हाल में 130/80 के नीचे रखना आवश्यक है।
अचानक मॄत्यु होने की संभावना तीन गुणा बढ़ जाती है।

ऊपर का (सिस्टोलिक) रक्तचाप खतरनाक है कि नीचे का (डायस्टोलिक)
जनसाधारण के मन में इस बात को लेकर दुविधा है। बहुत दिनों तक केवल नीचे वाले रक्तचाप को खतरनाक माना जाता रहा। मगर ज्यादा खतरनाक ऊपर का सिस्टोलिक रक्तचाप है जिसे 140 से नीचे होना चाहिए। नीचे का रक्तचाप सामान्यतः 90 से नीचे रहना चाहिए। कभी-कभी दवाईयाँ लेने के बाद जब मरीज घ्रर में रक्तचाप की जाँच करते हैं और नीचे का 60 – 70 मिलता है तो घबड़ा जाते हैं। यदि ऐसी स्थिति में ऊपर का यदि 140 के आसपास है तो निश्चिंत रहिये। आप सुरक्षित हैं।

ऊपर के रक्तचाप पर ज्यादा ध्यान दीजिए। वैसे, नीचे का बढ़ा हो तो उसे भी कम करना आवश्यक है।

जीवन पद्धति में बदलाव रक्तचाप नियंत्रणा का प्रथम चरण।

रक्तचाप थोड़ा बढ़ा हो, जैसे (146/96) तो तुरंत दवा शुरु न करें। पहले लाइफ स्टाइल मोडीफिकेशन शुरु कीजिए इस तरह:

(इसका असर 3 महीने में दिखाई देगा)

धूम्रपान पूरा बंद कर दें।
वजन संतुलित करें।
भोजन में सोडियम की मात्रा कम करें, सामान्यतः 10 ग्राम नमक लोग एक दिन में खाते हैं। इसे कम करके 3 ग्राम तक लाना है। नमकीन चीजें जैसे दालमोट, आचार, पापड़ का पूर्णतः परहेज करें। शरीर में ज्यादा सोडियम होने से पानी का जमाव होता है जिससे रक्त का आयतन बढ़ जाता है जिसके कारण रक्तचाप बढ़ जाता है।
भोजन में पोटाशियम युक्त चीजें बढ़ा दें। जैसे ताजे फल, डाब का पानी आदि। डिब्बे में बंद सामाग्री का इस्तेमाल न करें।
भोजन में कैलशियम (जैसे दूध में) और मैगनिशियम की मात्रा संतुलित करें।
रेशेयुक्त पदार्थों को खूब खायें। जैसे फलों के छिलके, साग/चोकर युक्त आटा/इसबगोल आदि। सैचुरेटेड फैट (मांस/वनस्पति घी) की मात्रा कम करें।
शराब एक पैग से ज्यादा न पीयें।
नियमित व्यायाम करें। खूब तेज लगातार 30 मिनट पैदल चलना सर्वोंत्तम व्यायाम है।
योग/ध्यान/प्राणायाम रोज करें।

दवाइयां जिनका उपयोग अब हो रहा है:

डायरुटिक्स (बायडुरेट)
इसकी महिमा जे एन सी (7) ने काफी गाई है। दुरगामी प्रभाव निरापद हैं। वृद्ध लोगों में यदि उपर का (सिस्टोलिक) रक्तचाप बढा हो तो यह ड्रग आफ च्वाइस है।
 
बीटा ब्लाकर (एटेनोलॉल)
1965 के बाद से इसका उपयोग शुरू हुआ। दुनिया भर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल इसी दवा को हो रहा है। शुरुवाती दौर में इस्तेमाल के लिए यह सुरक्षित दवा मानी गयी है।
 
एस-इन्हीबीटर (न्यूरील-एनवास आदि)
पिछले दशक से इस ग्रुप की दवाओं का इस्तेमाल बड़ी संख्या में हो रहा है। सुरक्षा एवं प्रभाव की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी हैं ये दवाइयां। मधुमेह के मरीजों में इस ग्रुप की खास उपयोगिता है। कभी-कभी इन दवाइयों के कारण सूखी खाँसी (3 से 5 प्रतिशत) हो जाती है तब इनको छोड़ना पड़ता है।
 
एनजियोटेन्सिन-रिसेप्टर एन्टोगोनिस्ट
इस ग्रुप में लोसरटन ,ओलमिसारटन,टेलमिसारटन आदि दवाइयां आती हैं। इस ग्पु का प्रचलन अभी हाल में शुरु हुआ है। ये एस-इन्हीबीटर टाइप की ही हैं। मधुमेह के मरीजों में इस ग्रुप की खास उपयोगिता है
 
कैल्शियम चैनल ब्लाकर (नाइफेडीपीन, एमलोपीडीन, लेसीडीपीन आदि)
भारत में ये दवाइयां प्रभावकारी होने के कारम खूब लोकप्रिय हैं। 1980 के बाद इस ग्रुप की दवाइयां बाजार में आयी।
 
अल्फा ब्लाकर (प्रोजप्रेस-टेराजोसीन)
बहुत सी खूबियों के रहते हुए भी ये दवाइयां लोकप्रिय नहीं हो सकी हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ही इनका प्रयोग हो रहा है।

उपरोक्त सभी दवाइयां अच्छी हैं। सही मात्रा में लगातार वर्षों तक खाने से कोई खराब असर शरीर पर नहीं होता। हर हाल में किसी भी दवा द्वारा रक्तचाप नियंत्रित रखना जरुरी है।

नये रिसर्च की दिशा।

कैन्डिडेट जीन पर कार्य जारी है। एनजीयोटेन्सीन जीन को मापा जा रहा है। भविष्य में जीन थेरापी सुलभ हो जाएगी।
नाइट्रिक आक्साइड और इनडोथेलियम (खून की नली का भीतरी हिस्सा) को लेकर रिसर्च प्रगति में है। नये अनुसंधानों से नई चिकित्सा उपलब्ध होगी।
सुपर आक्साइड मोलेक्यूल का महत्व रक्तचाप के होने में मालूम हो चुका है। इसके बढ़ने से नाइट्रिक आक्साइड का जो लाभकारी प्रभाव है वह खत्म हो जाता है। सुपर आक्साइड को कम करने के तरीके पर रिसर्च जारी है।
इन्सुलीन रेसिसटेन्स का महत्व रक्तचाप होने में खोज लिया गया है।