भारत में डायबिटीज अंधापन का अब सबसे बड़ा कारण – यदि मोतियाबिन्द को छोड़ दें।
आँखो की देखभाल मधुमेह में:
यह जानना आवश्यक है कि मधुमेह के रोगियों में अन्धापन का मुख्य कारण है – आँखो पर मधुमेह जनित दुष्प्रभाव जिसे ‘डायबेटीक रेटनोपैथी’ कहते हैं। अगर किसी को टाइप-टू मधुमेह की बिमारी है तो करीब 60% से ज्यादा लोगों में रेटीनोपैथी की शिकायत पायी जाती है। जिस समय यह बीमारी पकड़ में आती है करीब 21% को रैटीनोपैथी हो चुकी रहती है।
इसे जानना अत्यन्त आवश्यक इसलिए है कि:
i. मधुमेह के सही नियंत्रण द्वारा रेटीनोपैथी को रोका जा सकता है।
ii. सही समय पर जाँच कर के ईलाज सम्भव है, यानि अन्धापन को रोका जा सकता है।
आपको क्या करना है?
मधुमेह के रोगियों को प्रत्येक 6 महीने में एक बार आँखो की जाँच नेत्र विशेषज्ञ से करानी चाहिए। फन्डोस्कॉपी जाँच की सुविधा हर जगह रहती है। इस यन्त्र से देखकर यह पता चल जाता है कि रेटीना पर शुरु का बैकग्राउन्ड रैटीनोपैथी हुआ है या ज्यादा खराब प्रोलिफरेटीव रेटीनोपैथी, रेटनोपैथी के बढ़ने में उच्च रक्तचाप एवं पेशाब में अल्बुमीन जाने का भी बड़ा हाथ है। अतः रक्तचाप नियंत्रण एवं पेशाब में माइक्रल टेस्ट कराकर अल्बुमीन के बारे में जानना जरुरी है। अपने लिपिड प्रोफाइल को भी जानिए और उसे सही कीजिए।
चिकित्सक की सलाह के अनुसार ‘लेजर फोटो कोवेगुलेशन सर्जरी’ करावें। इस तकनीक से आँखो का अन्धापन रोका जा सकता है।
बचाव के मुख्य रास्ते:
i. मधुमेह का कठोर नियंत्रण।
ii. रक्तचाप का नियंत्रण।
iii. पेशाब में अल्बुमीन की जाँच।
iv. लीपीड प्रोफाइल कराकर उपयुक्त दवा लें(यदि बढ़ा हुआ हो)।
v. सलाना आँखो की जाँच। समय पर लेजर फोटोकोवेगुलेशन।
vi. खाद्य तेलों पर सर्तकता। एन-3 फैट युक्त चीजें खाएं, जैसे – मछली, सरसों का तेल, सोयाबीन)।
vii. एन्टी आक्सीडेन्ट दवाओं का प्रयोग उपयोगी हो सकता है।
viii. उचित व्यायाम करते रहें।
ix. खूब साग, सब्जियों, ताजेफल, अकुंरीत पदार्थ का सेवन करें।
(मधुमेह के मरीजों में ब्लड सुगर के घटते-बढ़ते रहने के कारण आँख का लेन्स कभी फुल जाता है और कभी सिकुड़ जाता है और आँखों के सामने धुँधलापन छा जाता है। कभी-कभी इन्सुलीन चिकित्सा शुरु करने पर भी ऐसा होता है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है अतः डरने की जरुरत नहीं है। यह एक क्षणिक बात है और इससे आँखो को कोई नुकसान नहीं पहुँचता।)
आँखो की जाँच के लिए निर्धारित पैमाना
रोगी | पहली जाँच | कम से कम जाँच का समय |
29 साल के नीचे | निदान के 3 से 5 साल के अन्दर | सालाना |
30 साल से ज्यादा | मधुमेह के निदान के साथ ही | सालाना |
गर्भावस्था | गर्भावस्था प्लानिंग के पहले एवं तीन महीनों में एक बार | चिकित्सक की सलाह के अनुसार |
• याद रखें समय पर किया गया लेजर फोटोकोवेगुलेशन आपको अन्धेपन से बचा सकता है।
• प्रोग्रेसिव डायबेटिक रेटीनोपैथी में लेजर थेरापी से 70% से 75% लोगों में अभूतपूर्व फायदा होता है। इसीलिए समय पर आँखो की जाँच कराते रहें।
• आजकल ग्रीन लेजर का ज्यादा प्रयोग हो रहा है, यह आधुनिक है एवं दर्दरहित है, जहाँ मोतियाबिन्द की समस्या नहीं हो वही उसका उपयोग होता है।
• रेड लेजर का इस्तेमाल मोतियाबिन्द के साथ भी हो सकता है। इसमें एनेसथेसिया की जरुरत होती।