मधुमेह के रोगी ब्रेन अटैक(स्ट्रोक) से कैसे बचें?

आये दिन यह महसूस किया जा रहा है कि स्ट्रोक के मरीज़ों की संख्या मे हुई बढोतऱी से समाज में अशक्तता, लाचारी और अपंगता की भयावह विभीषिका पैदा हो गयी है। उच्च रक्तचाप और मधुमेह् के मरीज़ों की वॄद्धि से स्ट्रोक होने का रिस्क बढ़ जाता है, यह विदित है, वहीं इसके निदान और बचाव की दिशामें उल्लेखनीय प्रगति हुई है। शोध बहुत तेजी से जारी है। अगले कुछ ही वर्षो में ज्ञान की नई आभा, नई जीवन प्रणाली का संदेश लाने वाली है। इस जानकारी से ही हम यह खतरा टाल सकते है।

मामला क्या है?

मुख्यतः जब मस्तिष्क-कोशिकाओं तक रक्त पहुंचाने वाली धमनी में थक्का बन जाता है तो कोशिकाएं मरणशील होने लगती हैं। अगर बाएं भाग में उस स्थल का रक्त प्रवाह् अवरुद्ध हो जाए जिससे दाहिनी भाग के हाथ, पैर की क्रिया का संचालन होता है तो दाहिनी भाग में पैरालाइसिस यानी लकवा मार जाता है। रक्त प्रवाह का अवरुद्ध होना तीन कारणों से हो सकता है-

i. नली में थक्का बन जाना (सेरेब्रल थ्रोम्बोसिस)।
ii. नली का फट जाने से रक्तस्राव होना (सेरेब्रल हिमोरेज)
iii. शरीर के अन्य भाग से प्रवाहित थक्के का मस्तिष्क की धमनी में जाकर रुकना (सेरेब्रल इम्बोलिज्म)।

ईमबोलिज्म ओर थ्रोम्बोसिस से हुए स्ट्रोक को इसचिमिक कह्ते है। इसी तरह् का थक्का यदि ह्दय को रक्त देने वाली नली में हो तो ‘मायोकारडियल इनफारक्शन’ यानि हॄदयाघात होता है। कभी-कभी थोड़े समय के लिए नली अवरुद्ध होती है ओर पुनः खुल जाती है जिसके कारण थोड़े समय के लिए लक्षण आते है – जैसे शरीर के किसी अंग में झनझनाह्ट, थोड़ी देर तक दिखाई न पड़्ना या आवाज का नही निकल पाना – इसे टी. आई.ए. यानि ट्रानजिएन्ट इसचिमिक स्ट्रोक कहते है। इसका मह्त्व यह है कि पूर्ण स्ट्रोक कि यह् सूचना देता है। टी.आई.ए. होने के पाँच साल के अन्दर 35% लोगों को पूर्ण स्ट्रोक होने की संभावना होती है, इनमें से 50% को यह एक महीने के अन्दर ही हो जाता है। टी.आइ.ए. यह कहता है – अभी भी समय है चेतो। जाँच करा कर बचाव की दिशा में चलो।

आंकड़े क्या कहते हैं?

तीसरी दुनिया के देशों में स्ट्रोक मृत्यु ओर अपंगता का एक मुख्य कारण है। 1,00,000 की जन्संख्या पर नए स्ट्रोक की दर 100-250 के बीच में है। जापान ओर चीन में यह दर सबसे ज्यादा है। मह्त्वपूर्ण है यह जानना कि पिछ्ले दशक में स्ट्रोक से मरनेवालो की संख्या में उल्लेखनीय कमी हुई है। मुम्बई में मरने वालों का 32 % था जबकि 1978-1982 के बीच 1.2%। दुनिया के अन्य भागों के आंकड़े ऐसी ही सूचना देते हैं। क्या इस दर को और कम किया जा सकता है। मॄत्यु दर में कमी का कारण क्या है, इसे समझना आवश्यक है।

रिस्क फैक्टर, जिसे कम कर सकते हैं।

यह सही है की स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु दर कमी है किन्तु स्ट्रोक होने की संभावना नहीं। मृत्यु दर में कमी का कारण अच्छी और तुरंत चिकित्सा का उपलब्ध होना है। ज्यादा महत्व की बात है बचाव की प्रणाली को जानना। कुछ रिस्क फैक्टरों पर हमारा प्रभाव नहीं, जैसे 55 की उम्र के बाद स्ट्रोक होने की संभावना दुगनी हो जाना, पुरुषो में 65 साल की उम्र के नीचे औरतो से 35% ज्यादा संभावना होना स्ट्रोक के लिए, ब्लैक रेस में स्ट्रोक से ज्यादा मृत्यु दर होना ओर जेनेटिक फैक्टर जिस पर हमारा अधिकार नहीं है।

मगर हमारे वश में है, इन चीजों को समझना।

i. उच्च रक्तचापः यह सबसे म्ह्त्वपुर्ण रिस्क फैक्टर है। रक्तचाप का बढा रहना खतरनाक है। कई लोग उपर वाले(सिस्टोलिक) रक्तचाप को मह्त्व नहीं देते, उनके लिए इस तथ्य को जानना आवश्यक है कि सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक (नीचे का), दोनो का बढ़ा रहना खतरनाक है। यह आश्चर्य का विषय है कि चिकित्सक द्वारा बार-बार रक्तचाप सामान्य रखने के लिए दवाओं का प्रयोग नियमित और हमेशा करने की हिदायत के बावजूद लोग नासमझी करते है। आए दिन पाता हूं कि जिस मरीज का रकतचाप दवाओं के प्रयोग से कुछ दिन सामान्य रहता है, वे बाद में दवा लेना बंद कर देते हैं। इसके बावजूद कि उनको चिकित्सक ने पूरी तत्परता से समझाया है कि यह खतरनाक है। स्ट्रोक के अधिकतर मरीज ऐसे ही मिलते हैं जो उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं और दवाओं को नियमित रुप से लेना बंद कर दिया है – इस विषय पर जनता में जागरुकता पैदा करना स्ट्रोक के बचाव की दिशा में एक मह्त्वपूर्ण कदम होगा। याद रखें, एक समय का खाना छोड दें तो कोइ घाटा नहीं होगा किन्तु रक्तचाप कि दवा नहीं खाकर आप अंपगता और मृत्यु को निमंत्रण दे रहे है।

ii. मधुमेहः पाया गया है की रक्त में शर्करा कि मात्रा 160 मि.ग्रा. से ज्यादा रहे तो स्ट्रोक होने कि संभावना दुगनी हो जाती है, मधुमेह को समुचित चिकित्सा द्वारा नियंत्रित रखना आवश्यक है।

iii. धूम्रपान का सेवन भी स्ट्रोक का महत्वपूर्ण रिस्क फैक्टर है इससे धमनियों में थक्के जमने की सम्भावना बढ़ जाती है। ज्यादा अल्कोहल से भी खतरा है। मोटापा अपने आप में अकेला रिस्क फैक्टर नहीं है। कोलेस्टरोल का बढ़ा रहना, कहां तक महत्वपूर्ण है, अभी यह तय नहीं है।

एसपीरीन – चमत्कारी दवा

25 साल पहले यह मालूम हुआ था कि एसपीरीन थक्के को बनने से रोकती है। पिछले कुछ वर्षों में एसपीरीन का प्रयोग अत्यन्त लाभप्रद सिद्ध हुआ है – यह जीवन को बचाने वाली दवा के रुप में, जहाँ तक स्ट्रोक और हृदयाघात का सबंध है, उभरकर आयी है।

 सारांश:

ब्लड प्रेशर के मरीज दवा नियमित रुप से दवा खाकर रक्तचाप सामान्य बनाएं रखें तो स्ट्रोक बचाव की दिशा में यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। इस संदेश का व्यापक प्रचार होना चाहिए।
एसपीरीन का उपयोग अत्यन्त लाभकारी है।
थ्रोमबोलाइसिस अत्यन्त महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रणाली सिद्ध हो सकती है। समाज को विशिष्ठ स्ट्रोक सेन्टर और मोबाइल स्ट्रोक केयर प्रणाली के लिए प्रयास करना होगा।