मात्र सात महीने की उम्र में टाइप वन डायबिटीज से ग्रसित फील सुदरलैंड की कहानी मानवता के इतिहास में नयी भाषा सृजित कर रही है। 15 सितंबर 2014 को यूरोपीयन एसोसिएशन फॉर स्टडीज आफ डायबिडीज के वार्षिक सम्मेलन में फील सुदरलैंड के संबोधन के बाद वहां बैठे 12 हजार डायबिटीज विशेषज्ञों ने खड़े होकर तालियां बजायी। एक साइंटिफिक सम्मेलन में एक मरीज का संबोधन इतना सशक्त था, जिसकी डॉक्टरों ने कल्पना तक नहीं की थी, एक ऐसा मरीज जिसके बारे में कहा गया था कि 25 साल का होते ही वह डायबिडीज के कारण इस दुनिया से कूच कर जायेगा। वह आज 32 साल कहा है और साकइल रेसिंग की दुनिया में अमेरिका में नया कीर्तिमान गढ़ चुका है। शायद वह पहला मरीज है, जो इस बीमारी में स्वयं शोध कर मेडिकल साइंस को नयी दिशा दे रहा है। उसने बीमारी को ही अपना प्रोफेशन बना लिया है और टीम टाइप-वन, नोवो चीफ एक्सीक्यूटिव बन कर पूरी दुनिया के टाइप-वन डायबिटीज मरीजों के जागरूक कर रहा है। फील मेरे फेसबुक मित्र हैं और टाइप-वन डायबिटजी पर अपने विचारों का शेयर करते हैं मात्र 20 साल की उम्र में फील ने किताब लिखी है – नॉट डेड येट यानी अभी तक मरा नहीं। यह किताब दुनिया के कई हिस्सों में बेस्ट सेलर बनी हुई है।

सात महीने का वह बच्चा।

फील की मां जोवाना 32 साल पहले के दिनों को याद कर सिहर जाती है, जब उसकी उम्र मात्र सात महीने की थी। उसने देखा कि फिल का अचानक वजन घटने लगा और उसका डायपर भींगा रहता था। उसने फैमिली डॉक्टर को दिखाया तो फ्लू की बीमारी का शक हुआ, जबकि फील की सांस तेज चल रही थी, डिहाइड्रेशन के लक्षण साफ दिख रहे थे। डॉक्टर की बात पर जोवाना को विश्वास नहीं हुआ और वह स्वयं नजदीक के अस्पताल जा पहुंची। इतने छोटे को डायबिटीज किटोएसिडोसिस भी हो सकता है, यह भान नहीं हुआ। नर्स ने तो उसे ग्लूकोज का ड्रिप चढ़ा दिया। यह भारी भूल थी। अमेरिका के उस प्रतिष्ठित अस्पताल में जब एक सीनियर डॉक्टर आये, तो यह पता चला कि फिल को टाइप वन डायबिटीज हो गया है। जोवाना को डॉक्टर ने कहा कि उसे जीवन पर्यंत इंसुलीन की सुई लेनी होगी। उन दिनों डॉक्टर ने यही बताया कि जब फील 25 साल का होगा, तो डायबिटीज के दुष्परिणाम के कारण अंधा हो जायेगा और उसकी किडनी फेल कर जायेगी। अंततः वह मर जायेगा।

मगर फील मरा नहीं।

मेडिकल साइंस की सब भविष्यवाणियों को झुठलाते हुए फिल आज 32 साल का है। उसकी मां जोवना फिल को लेकर अमेरिका के तमाम डायबिटीज विशेषज्ञों से मिली। बीमारी में प्रतिदिन ग्लूकोमीटर द्वारा ब्लड चेक कर फिल को स्वयं इंसुलीन की सूई देने की आदत दिलवायी। फिल यदि कैंडी या चाकलेट नहीं खा सकता था, तो उसने भी खाना छोड़ दिया। अमेरिका के अन्य डाइप-वन मरीजों के परिवारों को जोड़ा और यह भाव पैदा किया कि इस बीमारी को भी जीता जा सकता है। जब फिल मात्र पांच साल का था, तब उसकी मां का उसके शराबी पति से तलाक हो गया और बैंक का सारा पैसा लेकर पति खिसक गये। मगर वह हारी नहीं। यह समय ऐसा था कि फिल की इंसुलीन खरीदने के भी पैसे नहीं थे। उसने नौकरी की और फिल को अच्छे स्कूल में दाखिला कराया।

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बाइकिंग की दुनिया का हीरो।

जब फील की उम्र 10 साल की थी, तो साइकिल चला कर मिठाई की दुकान पर पहुंचा और उसने नोटिस किया कि यदि खूब साइकिल चलाता है, तो उसका ब्लड सुगर बढ़ता नहीं और वह एक कैंडी खा सकता है। उस समय तक मेडिकल साइंस टाइप वन डायबिटीज के मरीजों को ज्यादा व्यायाम करने की सलाह नहीं दी जाती थी। मगर फिल ने अपने करतबों से यह मिथ भी तोड़ दिया है। उसने टाइप वन डायबटीज मरीजों की एक साइक्लिंग टीम बनायी और 2005 में रेस एक्रॉस अमेरिका चैंपियनशिप में भाग लेकर अव्वल नंबर पर रहा। आज उसकी टीम में सौ से ज्यादा टाइप वन डायबिटीज के मरीज हैं और वह इस टीम का चीफ एक्सीक्यूटिव है। इस टीम का मिशन है दुनया के इन बच्चों तक यह संदेश पहुंचाना, जो अपनी इस बीमारी से उदास और लाचार हैं। इसी संदेश को लेकर जब वह मैसिडोनिया पहुंचा, तो सन 2011 में उसकी मुलाकात डॉ बिलजाना से हुई। वह फिल से इतनी ज्यादा प्रभावित हुई कि सब कुछ जानते हुए फील से शादी रचायी। आज दोनों का दो साल का बच्चा भी है, जो पूर्णतः स्वस्थ है, यह कहानी इस मायने में अप्रतिम है कि एक मरीज ने शोध कर बताया कि टाइप वन डायबिटीज के लिए भी एक्सरसाइज एक जादू है। यदि ब्लड सुगर की मात्रा सही रखी जाये, तो डायबिटीज का मरीज भी सौ साल तक स्वस्थ रह सकता है।