अब चावल की फ़ाइन ट्यूनिंग जरूरी।
वैसे तो पुराने समय से ही यह मान्यता रही है कि उसना चावल सेहत के लिए बढ़िया है और अरवा चावल निम्न, मगर हाल में ब्रिटिश मेडिकल जनरल ने जब कई शोधों के निचोड़ में यह प्रकाशित किया कि अरवा चावल खाने वालों में डायबिटीज होने का रिस्क बढ़ जाता है, तो पूरी दुनिया में इसकी खूब चर्चा हो रही है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, बोस्टन (अमेरिका) के शोधकर्ताओं के अनुसार अगर आप रोज अरवा चावल खाते हैं और खासकर ऐशयन हैं, तो डायबिटीज होने की संभावना 27 प्रतिशत उनके मुकाबले बढ़ जाती है, जो रोज उसना चावल खाते हैं। इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ क्यूसुन के अनुसार ऐशियन देशों में बढ़ते डायबिटीज का बड़ा कारण खाद्य पदार्थो को अप्राकृतिक तौर पर रिफ़ाइंड कर उसका पोषक तत्व निकाल देना है। यह सब हम जीभ के स्वाद के लिए कर रहे हैं. कई परिवारों में तो अरवा चावल का इस्तेमाल इस तरह किया जाता है, मानो उसना चावल गरीबी की पहचान हो।
साढ़े तीन लाख लोगों पर शोध।
डॉ क्यूसुन के मेटा एनालिसिस में चार महत्वपूर्ण शोधों को शामिल किया गया है, जो ऐशयन और वेस्टर्न 3,52,384 लोगों पर किया गया है। यह अध्ययन करीब चार से 22 वर्षो तक चला है और उनलोगों पर किया गया, जो मुख्यत: अरवा चावल खाते हैं। एशियाई समुदाय में तो अरवा चावल खानेवालों में 55 प्रतिशत तक डायबिटीज होने का रिस्क बढ़ा हुआ पाया गया।
यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि अरवा चावल की कितनी मात्रा आप कितनी बार खाते हैं। दुनिया के कुछ शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन की आलोचना भी की है। पब्लिक हेल्थ यूनिवर्सिटी, चाले के डॉ डेविट का कहना है कि अरवा चावल खाने के साथ अगर आप रोज शारीरिक मेहनत नहीं करते हैं, तभी अरवा चावल का खराब इफ़ेक्ट जाहिर होने लगता है।
डॉ चार्ल्स क्लार्क (यूएसए) के अनुसार भी मॉडर्न घटिया लाइफ़ स्टाइल के साथ अरवा चावल अपनी मारक क्षमता दिखाने लगता है. इसलिए उनका कहना है-इट लेस (कम खाओ), इट मोर नेचुरल फ़ुड (ज्यादा प्राकृतिक तौर पर खाना लें) एंड मूव मोर (खूब चलिए)। अमेरिका में करीब 70 प्रतिशत अरवा चावल खाया जाता है। भारत में भी मध्यम वर्ग में अरवा चावल खाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है।
अरवा चावल बनाने के क्रम में मिलिंग और पॉलिशिंग की जाती है, जिससे उसमें मौजूद 67 प्रतिशत विटामिन (बी), करीब 80 प्रतिशत विटामिन (बी-वन), करीब 90 प्रतिशत विटामिन (बी-6) और 50 प्रतिशत मैगनेशियम एवं फ़ॉसफ़ोरस, करीब 60 प्रतिशत आयरन और सारा-का-सारा डायटरी फ़ाइबर एवं इशेनसियल फ़ैटी ऐसिड नष्ट हो जाता है। ट्रेस इलेमेंट मैगनेशियम और सेलेनियम के नष्ट होने से यदि शरीर में इसकी कमी हुई, तो इंसुलिन बनाने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है। इंसुलिन का सही ढंग से स्वातित न होना या इसकी कमी होना ही डायबिटीज पैदा करता है।
आंत के कैंसर से बचाता है उसना चावल।
उसना चावल में केवल बाहरी परत हटाया जाता है और सारे पोषक तत्व उसमें मौजूद रहते हैं। अगर आप रोज एक कप उसना चावल खाते हैं, तो शरीर की प्रत्येक दिन की आवश्यकता का 88 प्रतिशत मैग्नेशियम आपको मिल जाता है। यह मैगनेशियम आपके इंसुलिन प्रोडक्शन से लेकर हेल्दी नर्वस सिस्टम, सेक्स हार्मोन, माइटोकौंड्रिया में होनेवाले मेटाबोल्जिम में भी अहम रोल निभाता है। उसना चावल में जो अघुलनशील फ़ाइबर होता है, वह हमारे हेल्थ के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है।
यह आंतों के कैंसर और हार्ट की बीमारी से भी बचाता है। अमेरिका में अरवा चावल को बाजार में बेचने से पहले उसमें विटामिन बी-वन, बी-6 एवं आयरन को मिलाना कानूनी तौर पर अनिवार्य है। अगर अरवा चावल में बाहर से पोषक तत्व मिला भी दिया जाएं, तो भी वह प्राकृतिक विटामिनों, ट्रेस पदार्थो एवं मिनरलों का मुकाबला नहीं कर सकता, जो उसना चावल में मौजूद रहता है।
नौ हजार वर्षो से चावल का उपयोग।
मानवता के इतिहास में नौ हजार वर्षो से चावल का इस्तेमाल हो रहा है। इसकी करीब आठ हजार वेराइटी है। अरवा चावल का इस्तेमाल आधुनिक काल की ही विरासत है. स्वाद के चक्कर में हमारे प्राकृतिक खाद्य पदार्थो का जिस तरह गला घोंटा गया है, उसकी मार ही कुछ आधुनिक बीमारियों का कारण है।
समय आ गया है कि आप अपने घर में चावल का चैनल चेंज कीजिए, कुछ फ़ाइन ट्यूनिंग कीजिए। दुनिया में मौज-मस्ती और स्वादबाजी बुरी नहीं है, मगर कहां, कब और कितनी, इस पर रिमोट का बटन चेंज करते रहिए। रोज खाने के लिए घर में उसना चावल ही ठीक है। पार्टी में या रेस्टोरेंट में कभी-कभी बासमती चावल खाइए, तो कोई हर्ज नहीं।